जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. गोमती नदी के किनारे खड़ी लखनऊ यूनिवर्सिटी की शानदार इमारत फिल्मकारों को तो अब भी अपनी तरफ आकर्षित करती है. यह यूनिवर्सिटी उन पढ़ने-लिखने वालों को भी अपनी तरफ खींचती है जो काबिल शिक्षकों से पढ़ना चाहते हैं लेकिन हकीकत की तस्वीर अब उतनी खूबसूरत नहीं रही है जिसे दुनिया के सामने इक्जाम्पिल की तरह से पेश किया जा सके.
इस यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के साथ ही ज़बरदस्त सियासत का खेल खेला जा रहा है. शिक्षक उस शतरंज का मोहरा बन गए हैं जिसमें इन्साफ हासिल करने के लिए सिर्फ ईमानदारी काफी नहीं होती है. ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की खाल इतनी मोटी हो गई है कि वह राजभवन से आई चिट्ठियों को भी घुमा देते हैं. कुलाधिपति के पास जो शिकायतें जाती हैं उस पर अगर कुलाधिपति की तरफ से पूछताछ भी होती है तो चांदी के चम्मच से खा रहे लोग अपने झूठ को इस अंदाज़ में पेश कर देते हैं कि राजभवन भी खामोशी अख्तियार कर लेता है.
हद तो यह है कि लखनऊ यूनिवर्सिटी में हो रही बेईमानियों की शिकायत प्रमुख शिया धर्मगुरु कल्बे जवाद भी करें तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता है. मौलाना कल्बे जवाद ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल 22 अक्टूबर 2021 और 30 मार्च 2022 को पर्शियन विभाग के एसोसियेट प्रोफ़ेसर डॉ. अरशद जाफरी के प्रमोशन के मामले में हो रही धांधली की तरफ ध्यान दिलाने के लिए पत्र लिखे लेकिन इन पत्रों को लखनऊ यूनिवर्सिटी ने उसका संज्ञान तक नहीं लिया.
मौलाना कल्बे जवाद विश्वख्याति के धर्मगुरु हैं और आमतौर पर किसी की सिफारिश के लिए सरकार या गवर्नर को चिट्ठी नहीं लिखते हैं लेकिन डॉ. अरशद जाफरी के प्रमोशन के मामले में जिस तरह की धांधली हुई उसे लेकर उन्होंने राजभवन दो चिट्ठियां भेजीं.
अपनी चिट्ठी में मौलाना कल्बे जवाद ने राज्यपाल को अवगत कराया था कि लखनऊ यूनिवर्सिटी में 24 अक्टूबर 2019 को शिक्षकों के प्रमोशन को लेकर चयन समिति की बैठक हुई थी और बैठक में जो लिफ़ाफ़े बंद किये गए थे वह इतना वक्त बीत जाने के बाद भी नहीं खोले गए. इस तरह से तो जिन शिक्षकों के लिफ़ाफ़े बंद हैं उनका उत्पीड़न हो रहा है.
मौलाना कल्बे जवाद ने कुलाधिपति को लिखा कि किसी मामले को यूनिवर्सिटी द्वारा लम्बे समय तक निस्तारित न किया जाना बहुत ही खेद और चिंता का विषय है.
राज्यपाल ने मौलाना कल्बे जवाद की चिट्ठी को लखनऊ यूनीवर्सिटी के कुलपति के पास भेजा भी लेकिन क्योंकि सारी धांधली तो वहीं से हुई थी इसलिए इस चिट्ठी पर कुछ भी नहीं हुआ. पूर्णकालिक कुलपति की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक पर सवालिया निशान लग गए और कार्यवाहक कुलपति के समय में हुई बैठकें पूरी तरह से वैध बनी रहीं.
लखनऊ यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के चयन में धांधली के पीछे जो वजहें हैं उन पर अगली कड़ी में बहुत विस्तार से रौशनी डाली जायेगी. इस धांधली के पीछे कौन-कौन से चेहरे हैं और अपनी धांधलियों की वजह से वह किस तरह की जिम्मेदारियां सम्भाल रहे हैं वह भी बताया जायेगा. लखनऊ यूनिवर्सिटी की धांधलियों पर यह तीसरी कड़ी है. चौथी कड़ी बहुत जल्द आपके सामने होगी कुछ और खुलासों के साथ.
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