स्पेशल डेस्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बहुत जल्द हिंसा अथवा दंगे के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को आगजनी या तोड़- फोड़ के जरिए नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ नया कानून बनाने की तैयारी में है।
दरअसल इस मामले में योगी सरकार की शुक्रवार को कैबिनेट बैठक हुई और इस पर विचार किया गया। उत्तर प्रदेश रिकवरी फॉर डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट अध्यादेश-2020 को लाने का प्रस्ताव रखा है।
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इसके साथ ही सरकार इस अध्यादेश की रूपरेखा पर लगभग कार्य पूरा कर चुकी है। इसमे ये कहा गया है कि अध्यादेश में नुकसान की वसूली के साथ ही सज़ा आदि का प्रावधान भी जोड़ा जाएगा।
बता दें कि बीते साल 20 दिसंबर को हुई हिंसा के दौरान यूपी में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक संपत्ति को आगजनी या तोड़- फोड़ के माध्यम से काफी नुकसान हुआ था। इसके बाद सरकार इस पूरे प्रकरण में सख्त नजर आ रही थी और वसूली की प्रक्रिया शुरू कर दी।
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इसके तहत आरोपियों के पोस्टर तक लगाये गए थे लेकिन पोस्टर लगाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर आपत्ति जतायी थी और पोस्टर हटाने के लिए कहा। हालांकि इसके बाद योगी सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया है।
माना जा रहा है कि सरकार ने उत्तर प्रदेश रिकवरी फॉर डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट अध्यादेश-2020 लाने का फैसला भी ध्यान में रखकर किया है। जानकारी के मुताबिक सरकार इसे विधेयक के तौर सदन में पेश कर कानून की शक्ल देने की तैयारी में है।
पूरे मामले में कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि हाईकोर्ट में रिट याचिका 2007 में माननीय उच्चतम न्यायालय ने विशेष रूप से यह कहा था कि देश में राजनीतिक दलों को अवैध प्रदर्शनों हड़ताल बंद के आह्वान पर सार्वजनिक व निजी संपत्तियों पर उपद्रवियों द्वारा नुकसान पहुंचाया जाता है।
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इसमें अवैध उपद्रवियों से रिकवरी के लिए संपत्ति के नुकसान की भरपाई होनी चाहिए। इसी मद्देनजऱ कैबिनेट में प्रस्ताव रखा गया जिसे सर्वसम्मति से पास कर दिया गया।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सड़कों के किनारे उपद्रवियों के पोस्टर फौरन हटाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार भी कर दिया था।
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जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने साफ तौर पर कहा था कि बेशक दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए और उन्हें दंडित भी किया जाना चाहिए। मगर ऐसा कोई कानून नहीं है, जो सड़क के किनारे उपद्रवियों के पोस्टर लगाने को सही ठहरा सके।
अवकाश कालीन पीठ ने इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को इस मामले को तत्काल मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के सामने रखने को कहा, ताकि कम से कम तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया जा सके, जो अगले हफ्ते इस मामले को सुन सके।