राजीव ओझा
लंदन से ठंडा लखनऊ। लंदन में जब तापमान 10 डिग्री था उस समय लखनऊ में 9 और दिल्ली में 8 डिग्री सेल्सियस था। लखनऊ, दिल्ली तो जैसे शिमला हुआ जा रहा है। लद्दाख के द्रास के आगे साइबेरिया फेल है।
ठण्ड में आइसक्रीम खाते हुए गंजिंग के साथ ‘चिल’ करने वाले चिलबीर अब सिहर कर छुहारा हुए जा रहे और ‘चिल्ला’ ‘चिल्ला’ चिल्ला रहे हैं। लोग कहने लगे थे अमा यार अब ठण्ड नहीं पड़ती, और जब पड रही है तो ‘चिल्ला’ ‘चिल्ला’ कर काँप रहे।
चिल्ला जाड़ा दिन चालीस
इस बार तो मौसम विभाग भी फेल है। रोज नए रिकार्ड बन रहे, कभी दस साल का रिकार्ड टूट रहा कभी सौ साल का। कहा जा रहा कि हाड जमाने वाली “चिल्ला’ ठण्ड इस बार दिसंबर में ही आ धमकी है। बड़े बुजुर्गों में एक कहावत मशहूर है- धन के पंद्रह, मकर पचीस, चिल्ला जाड़ा दिन चालीस। यानी मकर संक्रांति के 15 पहले से और 25 दिन बाद तक चिल्ला ठण्ड पड़ती है। मकर संक्रांति आमतौर पर 14 जनवरी को पड़ती है। इस हिसाब से पहली जनवरी से कड़ाके की ठण्ड आती है और संक्रांति के 25 दिन बाद तक यानी वसंत पंचमी तक कड़ाके की ठण्ड पड़ती है। लेकिन इस बार तो चिल्ला ठण्ड दस दिन पहले ही आ गई।
सैटेलाइट और अन्य एडवांस्ड एक्यूपमेंट की बदौलत मौसम की सटीक जानकारी देने वाला मौसम विभाग भी इस बार गच्चा खा गया। मौसम विभाग के अनुसार इस वर्ष उत्तर भारत में अधिक ठंड नहीं पड़ने वाली थी।
दिसम्बर का पहला हफ्ता गुलाबी ठण्ड में गुजरा। बड़े बुजुर्ग कहने लगे अब ठण्ड पड़ती ही कहाँ है। ठण्ड तो हमारे ज़माने में पड़ा करती थी जब दीपावली से ही स्वेटर निकल आते थे। उत्तर प्रदेश पिछले दस सालों में दिसंबर में बहुत अधिक ठण्ड नहीं पड़ी। क्रिसमस के बाद से धुंध और ठण्ड दोनों का अहसास होता था। पिछले साल तो ठीक से धुंध भी नहीं पड़ी। लेकिन इस साल अचानक 14 दिसम्बर के बाद उत्तराखंड, हिमाचल और कश्मीर में जो बर्फ़बारी शुरू हुई उसने उत्तर भारत को ठिठुरा दिया। लोग त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगे। और बड़े बुजुर्गों को चिल्ला ठण्ड की पुरानी कहावत याद आने लगी।
मेरा शहर तुम्हारे शहर से ठंडा
ये तो रही पुरानी बात, आजकल तो स्मार्ट प्रेडिक्शन और स्मार्ट फोन पर मौसम अपडेट का जमाना है। जैसे लोग घड़ी में टाइम चेक करते हैं, उसी तरह अपने स्मार्ट फ़ोन पर हर घंटे तापमान चेक करते हुए तदनुसार ठण्ड को फील करते हैं। भले ही ठण्ड न लग रही हो लेकिन अगर फ़ोन पर तापमान कम बता रहा है तो ठिठुरन महसूस करने लगेंगे। वैसे अब लोग ठण्ड को जितना महसूस करते उससे ज्यादा उसके बारे में बतियाते हैं। जिस शहर का तापमान सबसे कम हो, वहां के लोग अपने को ख़ास “चिलबीर” समझते और दूरे शहरों में पुराने दोस्तों और रिश्तेदारों से मौसम का हालचाल पूछने के बहाने “तुम्हारे शहर से मेरा शहर ठंडा” स्टाइल में डींग मारते हैं।
ठंड से बचने के लिए अलाव और कौड़ा तो बेचारे चौकीदार और सिक्यूरिटी गार्ड तापते हैं। चिल करने वाले तो बॉनफायर में मजे मारते हैं या फिर कमरे में ब्लोअर के सामने बैठ ऑन द रॉक्स ग्लेशियर और स्नोफाल पर चर्चा करते हैं। वैसे भी उत्तर भारत में साल में दो महीने ही कायदे से ठण्ड पड़ती है। जब अलाव न जलाने और गरीबों को कम्बल बांटे जाने की खबरें अखबारों और टीवी में दिखने लगें तो समझिये ठण्ड पड रही है। “चिल्ला” हो या गुलाबी ठण्ड, दो महीने से ज्याद कहां रह पाती है। सो “चिल्ला” “चिल्ला” चिल्लाने के बजाय ‘चिल’ मारिये और नए वर्ष को कीजिये एन्जॉय।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)