शबाहत हुसैन विजेता
क्यों मुफ्ती को मोहब्बत का हक़ नहीं है क्या? सुब्रह्मण्य स्वामी की बेटी सुहासिनी किससे शादी करेगी यह कोई और तय करेगा? दिग्विजय सिंह को किस उम्र में शादी करनी चाहिए इसका भी कोई पैमाना होना चाहिए था? शशि थरूर औरतों के बीच इतना ज्यादा लोकप्रिय हैं तो फिर उन्हीं पर चर्चा क्यों होती रहनी चाहिए?
भजन सम्राट अनूप जलोटा को लेकर क्या-क्या नहीं कहा गया. नाना पाटेकर के सम्बन्धों पर चर्चा ऐसे की गई जैसे कि वह राष्ट्रीय विषय हो. कौन सा हीरो कौन सी हीरोइन से रिश्ते रखता है? कौन सा नेता किस महिला के साथ घूमता-फिरता है?
सना खान एक्ट्रेस है. ज़ाहिर है कि उसकी तरह-तरह की तस्वीरें इंटरनेट पर मौजूद हैं. बिग बॉस वाली सना खान को हर कोई पहचानता है. सना खान ने रिश्ता भी जोड़ा तो एक मुफ्ती से जोड़ा. मुफ्ती और सना खान बेशक अलग-अलग ट्रैक पर चलने वाले लोग हैं मगर दोनों इसी ज़मीन के हैं. न तो मुफ्ती मंगल गृह से आया है न सना खान. फिर इस शादी पर हंगामा क्यों बरपा किया जा रहा है.
वो कहते हैं ना कि बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना. यही हाल इस सोसायटी का है और यही हाल हमारी सरकारों का है. पब्लिक परेशान है कि आखिर एक मुफ्ती की झोली में एक एक्ट्रेस कैसे आ गई.
हिन्दुस्तान के कई सूबों में मोहब्बत पर पाबंदी लगाने के लिए क़ानून बनाने की तैयारी चल रही है. मतलब अब मोहब्बत से पहले यह देखना होगा कि जो दिल में जगह बनाने लगा है वो कहीं किसी दूसरे मजहब का तो नहीं है.
आप ताकतवर हों, आपके हाथ में हुकूमत हो, आपके पीछे भीड़ हो तो आपके लिए न क़ानून की अहमियत है और न ही आपकी ज़बान फिसलने पर माफी की ज़रूरत है. आप ताकतवर हों तो किसी की बीवी को 50 लाख की गर्लफ्रेंड बोल सकते हैं. आप हुकूमत के करीबी हों तो छठ पूजा की अहमियत बताते वक्त किसी 70 साल की उम्र की औरत पर भी छींटाकशी करने को आज़ाद हैं.
फिल्म डायरेक्टर मुज़फ्फर अली ने चार शादियां कीं. चारों शादियां हिन्दू औरतों से कीं. उनकी पूर्व पत्नी सुभाषिनी अली सांसद हैं. मौजूदा पत्नी मीरा अली आर्किटेक्ट हैं. डॉ. गीति सेन उनकी पहली पत्नी थीं. उन्होंने मीरा सलूजा से भी शादी की.
मुज़फ्फर अली की चारों पत्नियां हिन्दू और चारों खूब पढ़ी-लिखी और समझदार. मतलब शादी दोनों की मर्जी से हुई थी. यह लव जिहाद का मुद्दा नहीं था. मीरा अली उनकी चौथी पत्नी हैं और साथ रहती हैं. बाकी तीनों पूर्व पत्नियों से भी कोई दुश्मनी नहीं है. आज भी उनसे मुलाक़ात होती है तो सम्मानजनक तरीके से होती है.
शादी जोड़ने का नाम है और तलाक बिखराव का नाम है. मुज़फ्फर अली ने इस बिखराव को भी इतने सलीके से सजाया है कि कहीं कोई नफरत नहीं, कहीं कोई शिकायत नहीं. कुछ साल पहले मुज़फ्फर अली और सुभाषिनी अली के फिल्मकार बेटे की लखनऊ के ताज होटल में शादी थी. मीरा अली दौड़-दौड़कर इंतजाम में लगी थीं और मुज़फ्फर अली सुभाषिनी अली के साथ सोफे पर बैठे थे.
यह रिश्तों की दास्तान रिश्ते निभाने वाला ही तो समझ सकता है. कहीं दूर-दूर तक लव जेहाद की कहानी नज़र नहीं आती.
शादी बहुत निजी मामला है. आने वाले दिनों में भी दूसरे मजहबों में भी शादियां होती रहेंगी. उन्हें कोई भी क़ानून रोक नहीं पाएगा.
हुकूमत का मतलब यह नहीं होता कि जनता ने मालिक बना दिया है. हुकूमत का मतलब यह है कि जनता ने मैनेजमेंट सौंपा है. जनता ने लॉ एंड ऑर्डर पर नज़र रखने की ज़िम्मेदारी दी है. हुकूमत सभी की होती है. यह किसी मज़हब ख़ास की नहीं होती है.
पिछले कुछ सालों में सियासत और मज़हब के बीच जो जंग का माहौल तैयार हुआ है उसने सोसायटी में नफरत का विस्तार किया है. नफरत का यह विस्तार वोटों का ध्रुवीकरण करने लगा है तो हुकूमतों को इसी में मज़ा भी आने लगा है.
यह लव जेहाद का मामला जो कई सूबों में तूल पकड़ने वाला है यह सिर्फ हास्यास्पद मामला है. ऐसे क़ानून मोहब्बत को किसी घरौंदों में कैद नहीं कर पायेंगे. सना खान और मुफ्ती की शादी यही बताने के लिए है. इत्तफाक से सना और मुफ्ती दोनों मुसलमान हैं इसी वजह से सोशल मीडिया पर यह मज़ा लेने का मुद्दा बना हुआ है लेकिन हो तो यह भी सकता था कि मुफ्ती की जगह कोई पुजारी होता. हो यह भी सकता था कि सना खान सना शर्मा होती.
किसी भी दिल के रिश्ते को जोड़ने या तोड़ने का हक़ उसी को होता है जो उसमें शामिल हो. हुकूमत और क़ानून से जुड़े लोग तभी हस्तक्षेप कर सकते हैं जब दोनों में से कोई एक शिकायत करे. हुकूमत को कोई हक़ नहीं है कि बेगानों की शादी में अब्दुल्ला दीवाना बने.
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दूसरे मजहबों में हमेशा से शादियाँ होती रही हैं. सम्राट अकबर और जोधाबाई की शादी से लेकर शाहनवाज़ हुसैन और रेनू शर्मा तक. सम्राट अकबर की हुकूमत थी और शाहनवाज़ हुकूमत में हैं तो किसी की हैसियत नहीं बोलने की. तो फिर क़ानून किसके लिए बन रहा है क्या गुड्डू, पप्पू, घसीटे और बब्लू को ही जेल भेजने की ताकत हुकूमत के पास है. अगर यही बात है तो मोहब्बत ऐसे क़ानून को मानने से इनकार करती है.