रश्मि शर्मा
चुनाव नतीजे आने के कुछ घंटों के भीतर ही जुबली पोस्ट ने खबर लिख उत्तर प्रदेश में आठ लोकसभा सीटों पर ईवीएम में पड़े वोट और कुल गिने गए वोटों के फर्क की कहानी पेश करते हुए मशीन से उपजे लोकतंत्र पर सवाल खड़े किए थे। अब बड़ी पड़ताल बता रही है कि एक दो नही 373 लोकसभा सीटों पर ईवीएम में दर्ज वोट और कुल गिने गए वोटों में भारी अंतर है। चुनाव आयोग इससे बचता रहा अपनी वेबसाइट से आंकड़े हटाता, बदलता, छिपाता रहा है और अब कह रहा है मतदान के बाद वह कुल पड़े मतों की लगभग जानकारी देता है जिसके चलते यह अंतर दिख रहा है।
हालांकि, आयोग यह नहीं बता रहा कि यह लगभग मतों की जानकारी इसी बार के चुनावों से क्यों दी जानी शुरु की गयी और पहले क्यों सटीक जानकारी दी जाती रही है।
ईवीएम को लेकर एक वैज्ञानिक, कुछ अलग-अलग दलों के नेताओं के संदेह को दरकिनार भी कर दें या हताशा में लगाए गए आरोप भी मान लें तो भी बड़े पैमाने पर जनता के बीच उपजे संदेह को मिटाना शायद चुनाव आयोग की पहली जिम्मेदारी बनती है। मज़ाक में ही सही सत्तारुढ़ भाजपा के सहयोगी शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि हम अमेरिका में भी चुनाव जीत सकते हैं गर वहां ईवीएम हो तो।
ईवीएम और वीवीपैट की पर्ची के मिलान को लेकर इस मशीन की निर्माता कंपनी भारत इलेक्ट्रानिक लिमिटेड (बेल) का बयान भी आ चुका है जिसमें इस पर संतोष जताया गया है। हालांकि 20 लाख ईवीएम का पता न मिलने के बारे में कोई संतोषजनक जवाब अब तक नही आया है।
कर्नाटक के निकाय चुनावों के नतीजों से संदेह गहराया
ईवीएम में दर्ज और गिने गए वोटों में फर्क की बहस चल ही रही थी कि कर्नाटक में स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजे आने शुरु हो गए। कर्नाटक में हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने एतहासिक विजय दर्ज की थी। कुल 29 सीटों में राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस व जनता दल सेक्यूलर को एक-एक सीट व निर्दलीय को मिली एक सीट छोड़कर भाजपा ने सारी सीटें जीती थीं। उन्हीं लोकसभा चुनावों के अभियान के साथ ही कर्नाटक में स्थानीय निकाय के चुनाव भी चल रहे थे।
स्थानीय निकाय चुनावों के लिए मतदान लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के बस तीन दिन ही बाद हुए। हैरत की बात है कि लोकसभा में विपक्ष का सफाया कर देने वाली भाजपा को नतीजों के 72 घंटे बाद ही स्थानीय निकाय के चुनावों में सम्मानजनक दूसरा सीटें तक न नसीब हुयी। निकाय चुनावों में भाजपा की बुरी हालत हुयी और इसे सत्तारुढ़ गठबंधन कांग्रेस-जेडी एस (दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था) की कुल सीटों के मुकाबले एक तिहाई सीट ही मिली। पहली बार कांग्रेस ने बंगलौर और मैसूर जैसे ठेठ शहरी व भाजपा का गढ़ समझे जाने वाले निकायों में भारी जीत दर्ज कर डाली।
बैलेट से मिले नतीजों के बाद कांग्रेस ने खड़े किए ईवीएम पर सवाल
अब गौर करने की बात यह है कि निकाय चुनावों में कर्नाटक में ज्यादातर जगहों पर ईवीएम की जगह कागज के बैलट पर मतदान हुआ। केवल कुछ बड़े शहरों में ही ईवीएम प्रयोग में लायी गयी। बैलेट से मिले नतीजों ने एक बार फिर से ईवीएम पर सवाल खड़े करने शुरु कर दिये हैं।
मोदी मैजिक
हालांकि, लोकसभा और निकाय चुनावों में कर्नाटक में मिले अलग नतीजों पर ईवीएम का बचाव करने वाले मासूम सा तर्क देते हुए कहते हैं कि यह सब मोदी मैजिक के चलते हुआ है। उनका कहना है कि लोकसभा में मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया जबकि निकाय चुनाव स्थानीय मुद्दे पर लड़े गए।
स्थानीय चुनावों में मजबूत आधार, वोट बैंक के चलते विपक्ष जीता जबकि कर्नाटक के लोगों ने देश को चलाने के लिए मोदी को उपयुक्त माना है। उनका कहना है कि स्थानीय निकाय चुनावों में हार को ईवीएम बनाम बैलेट पेपर की तरह से नही देखा जाना चाहिए।
हालांकि, चुनाव विश्लेषकों से लेकर समाजशास्त्र के अध्येताओं के लिए यह जरुर शोध का विषय हो सकता है कि महज 72 घंटे बाद वोट देने वाली कर्नाटक की जनता का मानस कैसे बदल जाता है और वह बंपर जीत हासिल करने वाली पार्टी को धूल चटा देती है। इस अध्ययन का सभी को इंतजार रहेगा।
बहरहाल इन सबके बीच केंद्र में फिर से मोदी की सरकार बनवाने वाली 38 फीसदी जनता तो यही कह रही है कि….मोदी है तो मुमकिन है।