संजय भटनागर
लोक सभा चुनाव के अंतिम चरण का मतदान होने से पहले ही उत्तर प्रदेश में नयी सरकार के गठन की सरगर्मियां शुरू हो गयीं। उत्तर प्रदेश ही क्यों? ज़ाहिर है केंद्र में किसी भी सरकार का रास्ता इसी प्रदेश से हो कर गुज़रता है। एक तो लोकसभा में कुल 545 सीटों में सर्वार्धिक 80 सीटें उत्तरप्रदेश से हैं और किसी भी पार्टी को सरकार बनाने लायक बहुमत मिले, प्रधानमंत्री के उम्मीदवारों की मौजूदगी भी इसी प्रदेश में है।
अगर भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती है तो नरेंद्र मोदी हैं ही वाराणसी लोक सभा सीट से प्रत्याशी। कांग्रेस की सरकार बनती है तो अमेठी से राहुल गाँधी ( हालाँकि वह दक्षिण भारत की वायनाड सीट से भी लड़ें हैं। अब अगर गठबंधन की सरकार बनती है तो मायावती का नाम भी प्रधान मंत्री पद के दावेदारों में है और वह भी उत्तर प्रदेश की ही मानी जा सकती हैं। मतलब साफ़ है कि देश को सात प्रधानमंत्री देने वाले प्रदेश यानि उत्तर प्रदेश का महत्त्व कभी कम नहीं हो सकता है।
शायद यही कारण है कि तेलगु देशम पार्टी के प्रमुख और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने तनिक भी देर नहीं की और चुनाव परिणाम की प्रतीक्षा किये बगैर शनिवार उत्तर प्रदेश का दौरा करके प्रधानमंत्री पद के लिए अटकलों को हवा दे दी। वह हालाँकि देश के अनेक वरिष्ठ नेताओं से मिल लिए और अंत में उन्होंने उत्तर प्रदेश आना बेहतर समझा।
उन्होंने आनन फानन में पहले समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से भेंट की और बाद वह बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती से मिले। उन्होंने त्रिशंकु लोक सभा की सूरत में सरकार के दावे के सम्बन्ध में प्रदेश के दो दिग्गजों से मुलाकात कर विचार विमर्श किया। स्पष्ट है कि किसी लहर के अभाव में चुनाव परिणाम की अनिश्चितता सभी नेताओं के सर चढ़ कर बोल रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने तो इस तनाव से पार पाने के लिए केदारनाथ का सहारा लिया लेकिन बाकी नेताओं के आवास और कार्यालयों में जमघट लगने शुरू हो गए हैं।
अखिलेश यादव भी आज अपने लखनऊ स्थित कार्यालय पहुंचे और नेताओं और कार्यकर्ताओं से चुनाव का फीडबैक लिया। गठबंधन की राजनीति में अखिलेश ने अपने को ही नहीं बल्कि अपने पिता और सपा के पितामह मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री की दौड़ से अलग रखा जबकि दोनों ही प्रदेश की आजमगढ़ और मैनपुरी सीटों से चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं। अखिलेश यह इशारा अनेक बार कर चुके हैं कि अगला प्रधानमंत्री प्रदेश से होगा और इनका साफ़ साफ़ संकेत मायावती की तरफ है।
कांग्रेस के उत्तर प्रदेश से वरिष्ठ प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत का इस घटनाक्रम पर कहना है कि नायडू पहले भी राहुल गाँधी को पीएम के लिए प्रोजेक्ट कर चुके हैं और इसलिए वह पहले दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष से मिले और त्रिशंकु लोक सभा की स्थिति में वह उनके नाम पर सहमति के लिए ही संभवतः उत्तर प्रदेश आये हैं। उनका विश्वास है कि गैर- भाजपा सरकार बनने की परिस्थिति में कांग्रेस ही राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबंधन की सरकार बनाने में सक्षम होगी।
समाजवादी पार्टी के सूत्रों ने बताया कि उनकी लीडरशिप फिलहाल 23 मई तक इंतज़ार करने की पक्षधर है। दूसरी ओर बसपा का कैंप बेहद उत्साहित है और जैसे जैसे चुनाव प्रक्रिया समाप्त हुई, मायावती के करीबी अफसर, सलाहकार और नेताओं का जमावड़ा उनके आवास पर बढ़ना शुरू हो गया।
नाम न छापने की शर्त पर बसपा के एक नेता ने दावा किया किया कि चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं पाएंगी और मायावती एक सशक्त विकल्प है प्रधानमंत्री बनने के लिए। मायावती ने यह लोक सभा चुनाव लड़ा तो नहीं लेकिन वह राज्य सभा से सांसद हैं।
अंदरूनी सूत्रों के अनुसार इस बीच अखिलेश और मायावती के बीच बातचीत के दौर चल रहे हैं लेकिन इस बारे में दोनों ही पक्ष मीडिया से कुछ भी साझा करने के लिए तैयार नहीं हैं। भाजपा के उत्तर प्रदेश के प्रवक्ता चंद्रमोहन ने हालाँकि नायडू के दौरे पर टिप्पणी करते हुए कहा ये सारे नेता हार का ग़म बांटने के लिए मिले हैं।
बहरहाल बयानबाजी अपनी जगह है लेकिन उत्तर प्रदेश अगले कुछ दिनों में राजनीतिक गहमागहमी का केंद्र रहने वाला है इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )