न्यूज डेस्क
लोकसभा चुनाव के छठे चरण के प्रचार का आज अंतिम दिन है। इस बीच बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले को मध्यस्था के लिए भेजने के दो महीने बाद सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले पर सुनवाई हुई।
इस दौरान जस्टिस एफएमआई खलीफुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दाखिल की, जिसमें मध्यस्थता प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 15 अगस्त तक का समय मांगा गया। इसके बाद कोर्ट ने मामले की मध्यस्थता का समय 15 अगस्त तक बढ़ा दिया।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, ‘हम मामले में मध्यस्थता कहां तक पहुंची, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं। इसको गोपनीय रहने दिया जाए।
इस बीच अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकारों ने मध्यस्थता कमेटी का समर्थन किया है। वहीं, हिंदू पक्षकारों ने मध्यस्थता कमेटी का विरोध किया है।
गौरतलब है कि मामले के सौहार्दपूर्ण निपटान की संभावना तलाशने के लिए शीर्ष अदालत ने तीन-सदस्यीय मध्यस्थता समिति का गठन किया था। समिति सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप चुकी है।
सूत्रों की माने तो अंतरिम रिपोर्ट 6 मई को कोर्ट में दाखिल की गई, शुक्रवार को मामले पर सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को मध्यस्थता समिति के पास ये मामला भेजा था।
बता दें कि मध्यस्थता समिति में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एफएमआई कलीफल्ला, आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर तथा वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राम पांचू का नाम शामिल था।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोडले, डी वाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ अब मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट पर विचार करके आगे का रास्ता तय करेगी।
सुप्रीम कोर्ट के 8 मार्च के आदेश के बाद शुक्रवार को पहली सुनवाई हुई। 8 मार्च को कोर्ट ने कहा था कि मध्यस्थता प्रक्रिया एक सप्ताह के भीतर शुरू होगी और समिति चार सप्ताह के भीतर प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
कोर्ट ने समिति को इन-कैमरा प्रॉसिडिंग और उसे आठ सप्ताह के भीतर पूरा करने के लिए कहा था। संविधानिक पीठ ने कहा था कि विवाद के संभावित समाधान के लिए मध्यस्थता के संदर्भ में कोई ‘कानूनी बाधा’ नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि मध्यस्थता की कार्यवाही ‘अत्यंत गोपनीयता’ के साथ की जानी चाहिए और मध्यस्थों सहित किसी भी पक्ष द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को गोपनीय रखा जाना चाहिए तथा किसी अन्य व्यक्ति के सामने प्रकट नहीं किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने अयोध्या से लगभग 7 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में मध्यस्थता का स्थान तय किया था और कहा था कि राज्य सरकार द्वारा मध्यस्थों के ठहरने के स्थान, उनकी सुरक्षा, यात्रा सहित सभी व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि कार्यवाही तुरंत शुरू हो सके।
बता दें कि साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला के बीच बराबर बांट दिया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दायर की गई हैं।