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Lok Sabha Election : जानें घोसी लोकसभा सीट का इतिहास 

पॉलिटिकल डेस्क

घोसी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र पूर्वांचल के मऊ जिले का हिस्सा है। वर्तमान में मऊ और बुनाई एक दूसरे के पर्यायवाची बन चुके हैं। मऊ में बुनाई की शुरुआत मुगल सम्राट जहांगीर के काल में हुई ।अगर यूं कहे की बुनाई की कला इस क्षेत्र की आबोहवा में बहती है और अब यह कला मऊ की संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में हथकरघों से कपडा बनाने की शुरुआत 16वीं शताब्दी में मऊ से हुई थी जो आगे चलकर अन्य इलाकों में फैली। 1957 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने इसे भारत का मैनचेस्टर बताया था।

एक अनुमान के मुताबिक यहां वर्तमान में 85 हजार से ज्यादा लूम चल रहे है। साडिय़ों की बुनाई अब यहां के लोगों की पहचान बन चुकी है। यह कला आज पीढ़ी दर पीढ़ी चलती जा रही है यही कारण है की इस इलाके में बेरोजगारी अपेक्षाकृत कम है।

घोसी संसदीय सीट क्षेत्र के दिग्गज नेता कल्पनाथ राय के नाम से जानी जाती है। 90 के दशक में कल्पनाथ राय पूर्वांचल के दिग्गज नेताओं में गिने जाते थे। यह उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है जिस कारण मऊ को जिले का दर्जा मिला। उन्होंने घोसी से सांसद रहते हुए मऊ को जिला बनाने के लिए लंबा संघर्ष किया और अपने मकसद में कामयाब रहे।

आबादी/ शिक्षा

घोसी तहसील मऊ जिले का हिस्सा है, यह आजमगढ़ मंडल में पड़ता है और इसका प्रशासनिक मुख्यालय मऊनाथ भंजन है। 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 22,05,968 लाख है जिनमें पुरुषों की आबादी 11,14,888 लाख और महिलाओं की संख्या 10,90,282 लाख है।

यूपी के लिंगानुपात 912 के मुकाबले 1,713 किमी में फैले इस जिले में प्रति 1000 पुरुषों पर 978 महिलायें है। यहां की औसत साक्षरता दर 75.16 प्रतिशत है, जिनमें पुरुषों की 84.16 प्रतिशत और महिलाओं की साक्षरता दर 65.59 प्रतिशत है। मऊ की 77.34 प्रतिशत जनता ग्रामीण इलाकों में जबकि 22.66 प्रतिशत जनता शहरों में रहती है। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 1,891,112
है जिसमें महिला मतदाता 850,934 और पुरुष मतदाता 1,040,033 हैं।

राजनीतिक घटनाक्रम

घोसी के लोकसभा इतिहास की बात करें तो यह प्रदेश के उन चंद सीटों में शामिल है जहां कांग्रेस का कभी भी गढ़ नहीं रहा। कांग्रेस के टिकट पर कल्पनाथ राय 2 बार चुनाव जरूर जीते, लेकिन यहां पर चुनाव जीतने के लिए उनकी अपनी ही छवि ही काफी थी। बाद में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी उन्होंने चुनाव जीता था।

यहां पहली बार आम चुनाव 1957 में हुआ जिसमें कांग्रेस को पहली जीत मिली। कहा जाए तो पूर्वांचल में वामपंथ का गढ़ घोसी सीट ही रहा है, जहां से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का कई सालों तक कब्जा रहा। 1957 से अब तक 16 बार हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महज 4 बार जीत मिली, जबकि सीपीआई ने 5 बार जीत हासिल की है।


गोरखपुर यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान छात्र राजनीति करने वाले कल्पनाथ राय के नाम से इस सीट को पहचान मिली। कांग्रेस के टिकट पर कल्पनाथ राय ने पहली बार 1989 में जीत हासिल की थी, इसके बाद वह 1991, 1996 और 1998 में जीत कर लोकसभा पहुंचे। कांग्रेस से मनमुटाव होने के बाद 1996 के चुनाव में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की। इसके बाद 1998 में समता

पार्टी के टिकट पर चौथी बार लोकसभा पहुंचे। 1999 में कल्पनाथ राय के निधन के बाद बसपा (1999), सपा (2004), 2009 (बसपा) और 2014 (बीजेपी) ने इस सीट से जीत हासिल की। 2014 में बीजेपी यहां से पहली बार जीत हासिल करने में कामयाब रही।

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