जुबिली स्पेशल डेस्क
यूपी की सियासत में कांशीराम बड़ा नाम हुआ करतेे थे और उन्होंने 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था।
इसके बाद उन्होंने 90 के दशक में कांशीराम ने बसपा को नई पहचान दिलाते हुए अपने साथ कई नेताओं को जोड़ा।
इतना ही नहीं सपा-बसपा से निकले कई नेताओं ने जाति आधारित पार्टियों का गठन कर यूपी की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनानी शुरू कर दी।
ओमप्रकाश राजभर से लेकर अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद जैसे नेता पिछड़ी जाती के सहारे अपनी राजनीतिक को चमका रहे हैं और दलितों का सबसे बड़े नेता कहने से भी नहीं चूकते हैं। यूपी की सियासत में ओबीसी अपना अहम रोल रखते हैं।
पूर्वांचल में इनका दखल ज्यादा देखने को मिलता है। दूसरी तरफ पूर्वांचल की 27 लोकसभा सीटें पर सबकी नजरे हैं और एनडीए गठबंधन में शामिल सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल (एस) जैसे दल एनडीए को कितना फायदा पहुंचाते हैं, ये एक बड़ा सवाल है। इन नेताओं की सियासी प्रतिष्ठïा भी दांव पर लगी है।
ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा 2017 के चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी और 4 सीटें पर फतह हासिल कर बीजेपी को बड़ा तोहफा दिया था जबकि 2022 में सपा के संग मिलकर चुनाव लड़े और छह सीटें जीतने में सफल रहे और इस बार एक बार फिर बीजेपी के साथ मिलकर चुनावी दंगल में उतरे हैं।
योगी सरकार में मंत्री डा. संजय निषाद की निषाद पार्टी भी अपनी अलग पहचान रखता है और संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद बीजेपी के टिकट पर संत कबीर नगर सीट से दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं और इनकी नजर पूर्वांचल में निषाद समुदाय के वोटरों पर खास तरीके से रहती है। संजय निषाद के अनुसार 16 सीट पर निषाद समाज का प्रभाव हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए अहम साबित हो सकते हैं।
कुर्मी समुदाय के सियासी आधार रखने वाले अपना दल दो गुटों में बंटा हुआ है, जिसमें एक धड़ा केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की अगुवाई में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहा है तो दूसरा कृष्णा पटेल का है। दोनों ही दल कुर्मी वोटरों पर अपनी पकड़ रखते हैं।