न्यूज डेस्क
लोकसभा चुनाव के पांच चरणों के मतदान के बाद यूपी में सबकी नजरें पूर्वांचल की सीटों पर लगी हैं। एक समय समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गढ़ रहा पूर्वी यूपी में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 2014 के आम चुनाव में दोनों दलों का सुफड़ा साफ कर दिया था, लेकिन इस बार दोनों दल साथ आने के बाद समीकरण बदल गए हैं।
छठे और सातवें चरण के लिए जोर-आजमाइश कर रही बीजेपी की टेंशन गठबंधन ने बीजेपी बढ़ा दी है। पूर्वांचल की 27 सीटों के लिए अगले दो चरणों में होने वाले मतदान के लिए गठबंधन और बीजेपी के बीच महामुकाबला देखने को मिलेगा।
पूर्वांचल में बीजेपी अपना किला बचाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी का चेहरा आगे करके वोट मांग रही है। वहीं सपा-बसपा गठबंधन इस बार इस किले में सेंध लगाने की संभावना तलाश रहा है।
दूसरी तरफ कांग्रेस भी प्रियंका गांधी वाड्रा के सहारे उत्तर प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरण के साथ वापसी की सपना संजोए बैठी है। ऐसे में पूर्वांचल की लड़ाई देश की राजनीतिक दिशा और दशा तय कर सकती है।
गौरतलब है कि पूर्वांचल में सपा-बसपा गठबंधन को अपने वोटबैंक को बरकरार रखने की कठिन चुनौती है। आजमगढ़ में मायावती और अखिलेश यादव की रैली, इसी बात को सही साबित करती है। मायावती ने अपने संबोधन में बसपा कार्यकर्ताओं से कहा कि आप ऐसा समझे कि अखिलेश यादव नहीं बल्कि मायावती चुनाव लड़ रही हैं।
पूर्वांचल में बीजेपी से सपा-बसपा को अपने वोटों के ट्रांसफर की कड़ी चुनौती मिल रही है। इसी को ध्यान में रखकर अखिलेश यादव और मायावती ने पूर्वांचल के लिए इस बार अलग रणनीति बनाई है। इसी के तहत सपा-बसपा ने अपने-अपने वोटबैंक को बरकरार रखने के लिए रणनीति बना रखी है। दोनों पार्टियां अपने-अपने वोटबैंक को एक साथ रखने के लिए अब चुनावी रैली अलग-अलग करने वाले हैं।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव अब उन सीटों पर खास ध्यान रख रहे हैं, जहां बसपा प्रत्याशी मैदान में है। अखिलेश यादव छठे चरण की श्रावस्ती, प्रतापगढ़ और सुल्तानपुर जैसी सीट पर अकेले जाकर बसपा के पक्ष में चुनाव प्रचार किया है। वहीं, बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी गोंडा, बाराबंकी, फैजाबाद और बहराइच जैसी सीटों पर सपा उम्मीदवार के पक्ष में जाकर प्रचार किया है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सपा-बसपा के वोट ट्रांसफर होने में दिक्कतें आने शुरू हो गई हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ सीटों पर शुरुआती दो-तीन चरणों में दोनों पार्टियों के वोट ट्रांसफर जरूर हुए, लेकिन चौथे और पांचवें चरण में दिक्कतें आनी शुरू हो गईं।