Tuesday - 29 October 2024 - 6:19 PM

‘सरकार ने काम किया लेकिन मोदी के विरोध में जो होगा उसे देंगे वोट’

गिरीश चंद्र तिवारी

वर्तमान में राजनीतिक दलों को अपना वोट वैंक पता है। उन्हें मालूम है कि किसकों साधने से उन्हें वोट मिलेगा। शायद इसीलिए अपने वोटरों के हिसाब से ही वह अपना मेनिफेस्टों तैयार करते हैं।

देश में सबसे बड़ा वोटर गांवों में में बसता है और उनकी आबादी भी ज्यादा है। सबसे बड़ी विडंबना है कि वह बुनियादी सुविधाओं से तो महरूम हैं ही उन्हें सरकारी योजनाओं का भान भी नहीं। लेकिन अपनी सुरक्षा और कुछ मुद्दों की वजह से वह एक पार्टी की विचारधारा से प्रभावित है।

वहीं, कुछ लोगों को नेताओं में बहुत रूचि नहीं है। नेता और राजनीतिक दल उनके आदर्श नहीं है, लेकिन राजनीति में उनकी दिलचस्पी है तो वह नजर बनाए हुए हैं। उन्हें बहुत उम्मीद किसी से नहीं है लेकिन वह चुनावी उत्सव को खूब एंजाव्य कर रहे हैं। नेताओं की रणनीति उनको खूब भाती है तभी शाम को जुटने वाली चौपाल में इस पर गहन चर्चा होती है।

2011 की जनगणना के अनुसार, अंबेडकर नगर की आबादी 24 लाख है और यहां पर 12.1 लाख (51 प्रतिशत) पुरुष और 11.9 लाख (49 प्रतिशत) महिलाएं रहती हैं। इसमें 75 प्रतिशत आबादी सामान्य वर्ग और 25 प्रतिशत आबादी अनूसूचित जाति की है। धर्म के आधार पर 83 प्रतिशत आबादी हिंदुओं और 17 प्रतिशत मुस्लिमों की है। जिले की साक्षरता 2011 की जनगणना के अनुसार, प्रति हजार पुरुषों को 978 महिलाएं हैं। यहां की साक्षरता दर 72 प्रतिशत है जिसमें 82 प्रतिशत पुरुष और 63 प्रतिशत महिलाएं शिक्षित हैं।

 

अकबुरपुर से सटे गांव रूद्रपुर भगाही में चुनावी सरगर्मी चरम पर है। यहां मुस्लिम, दलित और यादव बिरादरी रहती है। शाम को लगने वाले चौपाल में इस समय चुनावी चर्चा चरम पर है। यहां साइकिल और हाथी चुनाव चिन्ह की चर्चा ज्यादा होती है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों पर भी बहस होती है।

चौपाल में कुछ लोगों को पीएम मोदी की बातें, घोषणाएं अच्छी लगती है लेकिन जब वोट देने की बात आती है तब साइकिल और हाथी अच्छी लगती है। रिजवान अली कहते हैं, वोट देने की बात तो हम उन्हीं को देते है जो हमारे हक की बात करता है। हमारे लिए सोचता है। अखिलेश यादव पढ़े-लिखे हैं। जब आपका नेता पढ़ा-लिखा होता है तो वह सबकी सोचता है। वह विकास को प्राथमिकता देता है। इस गांव में जहां युवा अखिलेश यादव के मुरीद है तो वहीं बुजुर्ग काशीराम और मायावती के।

इसी गांव के सैयद एहरार हुसैन जो राजनीति पर पैनी नजर रखते हैं, कहते हैं समस्याएं तो बहुत है। सबसे बड़ी समस्या तो रोजगार की है। गांव के लड़के बेरोजगार है। मोदी सरकार ने वादा किया था कि रोजगार के अवसर उपलब्ध करायेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मोदी सरकार के कामकाज पर कहते हैं कि इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने कुछ अच्छा काम किया है फिर भी हम उनके बारे में नहीं सोच पाते। अपने मंत्रियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं करते। मॉब लिचिंग पर आज तक उन्होंने कुछ नहीं बोला। कितनी सीटें किसको मिलेंगी पर वह कहते हैं कि बीजेपी को 187 मिलेगी तो कांग्रेस को 150। देखिए यूपी में सपा-बसपा गठबंधन को 55 सीट तो मिलेगी ही।

इसी गांव के राम सुधार, हरी प्रसाद यादव, राम करन और लूमे यादव कहते हैं कि गांवों में बहुत सारी बुनियादी समस्याएं हैं। सबसे बड़ी समस्या रोजगार का है। गांव के लड़कों को बाहर रोजी-रोटी के लिए जाना पड़ रहा है। नौकरी मिल नहीं रही।  किसे वोट देंगे के सवाल पर कहते हैं कि हम तो वोट उसी को देते हैं जो जीत रहा हो। मोदी के विरोध में जो होगा उसे देंगे। हमारा पूरा गांव ऐसा ही करता है।

अकबरपुर के पास ही दौलतपुर महमूदपुर गांव में भी ऐसा ही माहौल है। यहां पिछड़े मुस्लिम, दलित, राजभर और यादव लोग रहते हैं। यहां के चौपाल में लोग बीजेपी सरकार के खिलाफ है। उनका मानना है कि मोदी सरकार मुस्लिमों के बारे में नहीं सोचती।

गांव के रमजान और इजहार कहते हैं पिछले दिनों किस तरह मुस्लिमों को मारा पीटा गया। ये ठीक नहीं है। हम देश के दुश्मन थोड़े ही है। मॉब लिचिंग के कितने सारे मामले संज्ञान में आये लेकिन सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की बल्कि हिंदू-मुस्लिम खेलने लगी। इसी गांव के रामतीर्थ, किशोर, सुरेन्द्र और अंबिका कहते हैं सबकी अपनी-अपनी राय है। लेकिन समस्याएं सबकी एक है। जब चुनाव होता है तो एक उम्मीद पर वोट देते हैं कि जिदंगी में बदलाव आयेगा लेकिन ऐसा नहीं है। पास ही के पिपरी सैदपुर गांव जहां कुर्मी, दलित और यादव

लोग रहते हैं। यहां के लोगों को सपा-बसपा गठबंधन रास आ रहा है। यहां की चौपाल में 90 फीसदी लोगों को सपा-बसपा गठबंधन पंसद है तो 10 प्रतिशत को मोदी।

अंबेडकरनगर बसपा का गढ़ माना जाता है। यह सीट मायावती के संसदीय क्षेत्र के रूप में जानी जाती है। मायावती ने यहां से 4 बार लोकसभा चुनाव (अकबरपुर) में जीत हासिल की है। सबसे पहले वह 1989 में चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं। इसके बाद उन्होंने 1998 और 1999 में जीत हासिल की। लेकिन 2002 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ दी। फिलहाल यहां सपा ने सेंधमारी कर ली है। अब देखना दिलचस्प होगा कि मोदी लहर में 2014 में भले ही बीजेपी यहां कमल खिलाने में कामयाब हो गई थी, क्या इस बार वह बसपा-सपा गठबंधन को टक्कर दे पायेगी।

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