पॉलिटिकल डेस्क
इटावा जिला पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े जिलों में से एक है। इटावा कानपुर मंडल का हिस्सा है। जिले का मुख्यालय इटावा है। यह देश की राजधानी दिल्ली से 302 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह दिल्ली-कलकत्ता राष्ट्रीय राजमार्ग 2 पर स्थित है। उत्तर प्रदेश की इटावा लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इटावा शुद्ध देशी घी का बड़ा केंद्र है। इसके अलावा कपास और रेशम बुनाई के महत्वपूर्ण उद्योग हैं तो तिलहन व आलू यहां की मुख्य फसल है। ये इलाका समाजवादी राजनीति का बड़ा केंद्र रहा है।
आबादी/ शिक्षा
इटावा संसदीय सीट के अंतर्गत कुल पांच विधानसभा सीटें है जिसमें इटावा, भरथना(अ.जा.), दिबियापुर, औरैया (अ.जा.) और सिकन्दरा शामिल है। इटावा का कुल क्षेत्रफल 2311 वर्ग किलोमीटर है। यहां की कुल आबादी 15, 75,247 है। पिछले 10 साल में जिले के आबादी 18.1 प्रतिशत बढ़ी है। यहां प्रति 1000 पुरुषों पर 970 महिलाएं है।
यह आबादी के मामले में भारत 640 जिलों में 316वें नंबर पर है। जिले की 77 प्रतिशत आबादी (लगभग 12.2 लाख) आबादी जिले के ग्रामीण इलाकों में जबकि 23 प्रतिशत आबादी(लगभग 3.7 लाख) शहरों में रहती है। इटावा हिंदू बहुल क्षेत्र है। यहां मतदाताओं की कुल संख्या 1,707,237 है जिसमें महिला मतदाता 768,913 और पुरुष मतदाता की संख्या 938,271 है।
राजनीतिक घटनाचक्र
आजादी के बाद हुए पहले चुनाव में इटावा की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी। 1957 में हुए चुनावों में सोशलिस्ट पार्टी के अर्जुन सिंह ने जीत दर्ज की थी। 1967 में यह सीट परिसीमन के बाद सामान्य हो गई और परिसीमन के बाद हुए चुनावों में अर्जुन सिंह भदौरिया दोबारा निर्वाचित हुए। 1971 में हुए चुनावों में अपनी तीसरी जीत की उम्मीद लगाये अर्जुन सिंह की उम्मीदों पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के श्री शंकर तिवारी ने पानी फेर दिया।
1977 में अर्जुन सिंह राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत गए। 1996 तक अलग-अलग पार्टियों के प्रत्याशी यहां से जीतकर सांसद बने। 1998 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सुखदा मिश्र समाजवादी पार्टी के राम सिंह शाक्य को हराकर इटावा की पहली महिला सांसद निर्वाचित हुई। 2009 में परिसीमन के बाद इटावा की सीट वापस से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई। परिसीमन के बाद हुए चुनावों में सपा के प्रेमदास कठेरिया ने जीत दर्ज की। 2014 चुनाव में भाजपा ने यहां जीत दर्ज की।