हेमंत तिवारी
उत्तर प्रदेश में फिलहाल न तो किसान मुददा बन पा रहे हैं और न ही भगवान। कुछ माह पहले जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अयोध्या पहुंचकर राम मंदिर के लिये हुंकार भरी और भाजपा सरकार से मंदिर निर्माण की तारीख पूछी तो सत्तारूढ़ दल के साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद सक्रिय हो गये।
राम मंदिर का मुद्दा भी गुम हो गया
धर्म संसद के आयोजन हुये और अदालत से जल्द ही इस विवाद के हल की मांग की जाने लगी। अब, जबकि चुनाव प्रक्रिया शुरू हो गयी है, आश्चर्यजनक ढंग से राम मंदिर का मुद्दा भी गुम हो गया।
उत्तर प्रदेश में करोड़ों किसानों की गांव-गांव खेती चर रहे आवारा जानवर, लंबे समय के बाद भी बकाया भुगतान के लिए जूझते गन्ना किसान, आलू सड़क पर फेंकते या औने-पौने भाव बेचते मजबूर खेतिहर चुनाव के लिए मुद्दा नहीं है।
पाकिस्तान और पुलवामा को गांव-गांव पहुंचाने में कामयाब सत्ताधारी भाजपा किसान नहीं राष्ट्रीय सुरक्षा को आगे रख बारास्ते यूपी दिल्ली फतह करने की योजना में सफल दिखती नजर आ रही है। सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के मारक जातीय अंकगणित की काट में भाजपा बदला, मारो काटो और बम की गूंज को मुफीद पा रही है।
किसान दरकिनार हो गये
अभी महीना भर पहले भाजपा की चिंता के केंद्र में रहे किसान दरकिनार हो गये हैं। उन्हें समझाया जा रहा है कि बकाया बकाया भुगतान तो फिर मिल जाएगा पर पहले पाकिस्तान से निपट लें। आवारा जानवरों को ही आतंकी समझ रहे बेहाल किसानों को असली आतंकी और पुलवामा हमले का सच समझया जा रहा है। कुल मिलाकर पुलवामा हमले व पाकिस्तान में एयर स्टृाइक के बाद उपजी
राष्ट्रवाद की भावना को हवा देते हुए भाजपा एक बार उत्तर प्रदेश में वही माहौल बनाने में जुट गई है जिसके बलबूते 2014 में दिल्ली फतह किया था।
उत्तर प्रदेश में दिन-रात खड़ी फसल चरते आवारा मवेशियों, गन्ना किसानों का चालू पेराई सत्र का 10000 करोड़ रूपये के लगभग का बकाया भुगतान और आलू किसानों के बेभाव बिकते माल का सवाल पीछे छूट रहा है।
प्रदेश की योगी सरकार के नया-पुराना बकाया मिला कर 52000 करोड़ रूपये गन्ना भुगतान के दावों के बीच हकीकत यह भी है कि कई चीनी मिलों ने महीनों से किसानों को फूटी कौड़ी नहीं दी है और न ही देने की कोई समय सीमा बताई है। भुगतान के सवाल पर पूरब से लेकर पश्चिम तक लामबंद हो रहे किसानों को हाशिये पर डाल दिया गया है।
जनता जनार्दन से जुड़े किसान चुनावी मुद्दा नहीं
राष्ट्रवाद पर बैकफुट पर आ चुके विपक्षी दल इसकी काट ही तलाशने में जुटे हैं। मार्च की शुरूआत में हजारों किसानों ने 20 किलोमीटर पैदल मार्च पर बलरामपुर जिले में कलेक्ट्रेट का घेराव किया और मिलों से बकाया गन्ना भुगतान की मांग उठाई। राजधानी से सटे बाराबंकी जिले में बेहाल किसानों ने आलू की गिरती कीमतों का विरोध सड़क पर फसल फेंककर किया।
आवारा जानवर से परेशान किसान मवेशियों को जिले-जिले में सरकारी भवनों में बंद कर रहे हैं तो रात-रात भर जागकर फसलें बचा रहे हैं। योगी सरकार ने इस सिलसिले में कुछ प्रयास तो शुरू किये लेकिन यह भी गजब चुनावी तमाशा है कि जनता जनार्दन से जुड़े किसानों के ये विषय चुनावी मुद्दा नहीं बन सके।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)