न्यूज़ डेस्क
लोकसभा चुनाव के बीच अयोध्या में चल रहे राम जन्मभूमि विवाद में एक और याचिका दाखिल की गई है। निर्मोही अखाड़ा ने अयोध्या की गैर विवादित ज़मीन लौटाने से सम्बंधित केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका का विरोध किया है और नई याचिका दाखिल की है।
अखाड़ा का कहना है, कि सुप्रीम कोर्ट को पहले भूमि विवाद पर फैसला लेना चाहिए। सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन से वहां स्थित कई मंदिर नष्ट हो सकते हैं जो की अखाड़ा द्वारा संचालित किये जा रहे है। इस पर अखाड़ा ने अदालत से फैसला लेने को कहा है।
बता दें कि केंद्र सरकार ने जनवरी मे सुप्रीमकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। जिसमें उसने अयोध्या में विवादास्पद राम जन्मभूमि स्थल के पास अधिग्रहित की गई 67 एकड़ ज़मीन को उनके मालिकों को वापस लौटाना की बात कही थी। हालांकि, कोर्ट ने अभी तक इस पर सुनवाई नहीं की है।
वहीं, सरकार की मंशा यह है की सुप्रीम कोर्ट इसकी इज़ाज़त दे की उस ज़मीन का बड़ा हिस्सा राम जन्मभूमि न्यास को दिया जाए।
क्या है निर्मोही अखाड़ा
बता दें कि निर्मोही अखाड़ा, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त 14 अखाड़ों में से एक है। इसका संबंध वैष्णव संप्रदाय से है और महंत भास्कर दास इसके अध्यक्ष हैं। इस अखाड़े ने 1959 में बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि पर अपना मालिकाना हक जताते हुए एक मुकदमा दायर किया किया था, तभी से यह चर्चा में है
अयोध्या मामले में सबसे पहली कानूनी प्रक्रिया 1885 में इसी अखाड़े के महंत रघुवीर दास ने प्रारम्भ करी। उन्होने एक याचिका दायर कर राम चबूतरे पर छतरी बनवाने की अनुमति मांगी, लेकिन एक साल बाद फैजाबाद की जिला अदालत ने अनुरोध खारिज कर दिया।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटा गया। अदालत ने 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटे जाने का आदेश दिया था।