पॉलीटिकल डेस्क
अमरोहा जिला मुख्यालय है। यह मुरादाबाद से तीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अमरोहा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द आम्र से लिया गया है, जिसका मतलब होता है आम। अमरोहा अपने आम के उत्पादन के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि इस शहर की स्थापना लगभग 3,000 ई0 पूर्व हुई थी। इस्लामी शासन काल से पहले यहां पर त्यागियों ने शासन किया। आम और मछली यहां प्रचुर मात्रा में पायी जाती है।
ऐसे पड़ा अमरोहा नाम
इसके अलावा ऐसा भी कहा जाता है कि जब जनाब हजरत शरफुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह इस जगह पर आये थे तब स्थानीय लोगों ने उन्हें आम और मछली पेश की थी। इसके बाद ही से इस जगह को अमरोहा के नाम से जाना जाने लगा। अमरोहा स्थित प्रमुख स्थलों में वासुदेव मंदिर, तुलसी पार्क, बायें का कुंआ, शाह नसरूद्दीन साहिब का मज़ार (जो कि अमरोहा के सबसे पुराने सूफी बुज़ुर्ग थे), दरगाह भूरे शाह और मजार शाह विलायत साहिब आदि स्थित है।
अमरोहा का ऐतिहासिक भवन किले की दीवारों से शुरू होता है जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं। सैयद अब्दुल माजिद खान द्वारा बनवाया मुरादाबादी दरवाजा उसका एकलौता वर्तमान दरवाजा है। यहां दिल्ली सल्तनत और मुगल काल में बनवाए गए कई ऐतिहासिक स्मारक हैं। बाबा फरीद के वंशज आज भी इस क्षेत्र में बसे हुए हैं। अमरोहा जिला मुगल वंश की सबसे पुरानी बस्तियों का घर रहा है। अमरोहा के आखिरी नवाब शासक शेख अनवर उल हक थे।
आबादी/शिक्षा
अमरोहा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर 5 विधान सभा क्षेत्र आते है, जिसमें धनौरा (एस.सी.), नौगावां सादत, अमरोहा, हसनपुर, गढ़मुक्तेश्वर शामिल है। 2,321 वर्ग किलोमीटर में बसे इस शहर में 1,840,221 की आबादी बसी है। इसमें से लगभग 53 प्रतिशत पुरुष और 47 प्रतिशत महिलाओं की आबादी है।
वर्तमान में यहां के कुल मतदाताओं की संख्या 1,544,245 है जिनमें महिला मतदाता की संख्या 714,712 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 829,444 है। यहां लिंगानुपात 1000:910 है, यानि यहां प्रति 1000 पुरुषों पर 910 महिलाएं हैं। यहां की औसत साक्षरता दर 63.84 प्रतिशत है जिनमें पुरुषों की साक्षरता दर 74.54 और महिलाओं की 52.10 प्रतिशत है।
राजनीतिक घटनाक्रम
अमरोहा में पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ जिसमें कांग्रेस को जीत मिली। 1952 से लेकर 1971 तक इस सीट पर शुरुआती तीन बार कांग्रेस और फिर लगातार दो बार सीपीआई ने जीत दर्ज की थी। 1977 और 1980 लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी ने जीत दर्ज की तो 1984 में कांग्रेस और 1989 में एक बार फिर जनता दल ने यहां जीत दर्ज की।
1991, 1998 में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी की तरफ से पूर्व क्रिकेटर चेतन चौहान सांसद चुने गए। इस लोकसभा क्षेत्र की विधानसभा सीटों में वर्चस्व रखने वाली समाजवादी पार्टी सिर्फ 1996 में यहां से चुनाव जीत पाई है।
1999 में बहुजन समाज पार्टी के राशिद अल्वी ने चुनाव जीता। 2004 में इस सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी हरीश नागपाल विजयी रहे। वहीं 2009 लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के नेता देवेन्द्र नागपाल ने कब्जा जमाया लेकिन 2014 के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी ने कब्जा जमाया और कंवर सिंह तंवर सांसद बने।