पॉलिटिकल डेस्क
राज्य के प्राचीन शहरों में गिना जाने वाला हाथरस ,अलीगढ़ डिवीजन का ही हिस्सा है। इसका इतिहास महाभारत और हिन्दू धर्मकथाओं से जुड़ा हुआ है और यहां ब्रजभाषा बोली जाती है। ये एक ऐसा स्थान है जहां परजाट, कुषाण, गुप्ता और मराठा सबका शासन रहा है। यहां भगवान बलराम का मंदिर है, जिसके लिए यह पूरे देश में जाना जाता है। यहां हर साल दाऊ मेल लगता है जिसे देखने के लिए विदेशी सैलानी भी यहां आते हैं। हाथरस हींग, घी, होली के रंग और कपास उत्पादन के लिए मशहूर है।
आबादी/ शिक्षा
हाथरस का क्षेत्रफल 1,840 वर्ग किलोमीटर है और 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 135,594 है, जिसमें से 52 प्रतिशत पुरुष और 48 प्रतिशत महिलाएं हैं। हाथरस में 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिनके नाम छर्रा, इगलास, हाथरस, सादाबाद और सिकन्दरा राऊ है, जिनमें से इगलास और हाथरस अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। वर्तमान में यहां कुल मतदाताओं की संख्या 1,758,927 है जिनमें महिला मतदाता 788,925 और पुरुष मतदाता की संख्या 969,908 है।
राजनीतिक घटनाक्रम
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण लोकसभा सीट हाथरस पर जाट वोटरों का खासा प्रभाव रहा है । पिछले करीब दो दशक से यहां पर भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व रहा है, ऐसे में एक बार फिर 2019 में बीजेपी को यहां कमल खिलाने की उम्मीद है। हाथरस सीट पर मुस्लिम-जाट का समीकरण हावी रहता है, यही कारण है कि मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी इस सीट पर प्रबल दावेदार रहती है. हाथरस लोकसभा सीट आरक्षित सीटों में आती है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
इस सीट पर 1962 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस पार्टी ने जबरदस्त जीत दर्ज की थी। उसके बाद 1967, 1971 में भी यहां कांग्रेस का परचम लहराया। 1977 में चली सत्ता विरोधी लहर में भारतीय लोक दल ने जीत दर्ज की, जबकि 1984 में भी यहां कांग्रेस ने वापसी की। 1989 में हुआ चुनाव यहां जनता दल के खाते में गया था।
1991 के बाद से ही ये सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रही है। 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में यहां भारतीय जनता पार्टी ने एकतरफा जीत दर्ज की। इस दौरान बीजेपी के कृष्ण लाल दिलेर 1996-2004 तक सांसद रहै। 2009 में यहां राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की, हालांकि तब रालोद-बीजेपी का गठबंधन था। वहीं 2014 में तो बीजेपी के राजेश कुमार दिवाकर ने यहां से प्रचंड जीत दर्ज की।