शबाहत हुसैन विजेता
वन्देमातरम नहीं बोलोगे तो दफ्न होने के लिये ज़मीन नहीं देंगे। भारत माता की जय नहीं बोलोगे तो पाकिस्तान भेज देंगे। तुम्हें अली मुबारक हमारे लिये तो बजरंगबली ही काफी हैं। यह वह जुमले हैं जो आज़ाद हिन्दुस्तान के सियासी लोगों के मुंह से अक्सर सुनने को मिल जाते हैं। चुनाव आते हैं तो इनकी रफ़्तार तेज़ हो जाती है।
ऐसे नेताओं की शक्लें देखने को मिलती हैं जो जीतने के बाद अपने क्षेत्र को ए, बी, सी और डी कैटेगरी में बांटकर उसके विकास की बात करते हैं। यानी जिस इलाके में सबसे ज्यादा वोट उसे ए कैटेगरी और जहाँ सबसे कम वोट उसे डी कैटेगरी और उसका सबसे कम विकास। सीधा सा संदेश है कि वोट नहीं दोगे तो विकास देखने को तरस जाओगे।
मालेगांव ब्लास्ट मामले में 9 साल की जेल काटने के बाद ज़मानत पर रिहा एक साध्वी माननीय बनने का टिकट हासिल कर लेती है। तो मुम्बई हमले में शहीद हुए हेमंत करकरे पर सीधा वार करती है। उनकी मौत की वजह अपना श्राप बताती है। व्हील चेयर पर बैठकर वह इसलिये नामांकन करने जाती है क्योंकि जेल में उस बेगुनाह के साथ इतना ज़ुल्म हुआ कि वह पैदल चलने के लायक नहीं बची।
लेकिन उसी शाम वह तेज़ रफ़्तार में पैदल चलती नज़र आती है। इन नौ सालों में उसने छह साल बीमारी के नाम पर अस्पताल में बिताये हैं। ज़मानत मिलते ही माननीय बनने की राह पर बढ़ चली हैं। जीत गईं तो देश के लिये क़ानून बनाने का काम करेंगी।
चुनावी जनसभा में एक नेता ने हिन्दुओं का आह्वान किया कि सभी मुसलमानों को हिन्दू बना देने की ज़रुरत है। उन्होंने कहा कि एक हज़ार साल तक हिन्दुओं पर जो ज़ुल्म हुए हैं उसका बदला हम हज़ार साल में नहीं लेंगे। हमें 50 साल में हालात ऐसे बना देने हैं कि यहाँ सभी हिन्दू हों।
मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान करने वाले इस नेता पर कोई मुकदमा नहीं। उस पर किसी भी तरह के एक्शन की सुगबुगाहट भी नहीं। आखिर हम कौन सी संस्कृति का निर्माण करने में लगे हैं। किस रास्ते पर ले जा रहे हैं हम अपना देश।
जिस गंगा-जमुनी तहजीब को हमने साथ-साथ जिया है। जहाँ बिस्मिल्लाह खान की शहनाई की आवाज़ से खुले है मंदिर के कपाट। जहाँ अवध के नवाब ने बड़े मंगल पर भंडारों की शुरुआत की है। जहाँ आलिया बेगम ने हनुमान मंदिर बनवाया है। जहाँ जगन्नाथ अग्रवाल ने इमामबाड़ा बनवाया है। जहाँ धनिया महरी ने मस्जिद बनवाई है।
वहां की संस्कृति को चंद लोग क्या एक पल में बदल डालेंगे। क्या जिन हज़रत अली को मौला-ए-कायनात कहा जाता है उन्हें सिर्फ मुसलमानों तक सीमित कर दिया जाएगा। क्या हनुमान मंदिर के दरवाज़े मुसलमानों के लिए नहीं खुलने चाहिए।
कौन लोग हैं जो यह सब तय कर रहे हैं। यह सब आखिर किस बुनियाद पर तय किया जा रहा है। हुकूमत खुद आखिर इंसानी बंटवारा क्यों चाहती है। हुक्मरान खुद हिन्दू-मुसलमान क्यों कर रहे हैं। जिनके हाथों में हुकूमत की डोर है उन्हें तलवार की ज़रूरत आखिर क्यों है। आखिर एक शहीद को बेइज्जत करने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है।
हुकूमत सोचे कि उसे यह ज़रूरत क्यों पड़ी है। वह यह सोचे कि क्या वह जिस वादे पर हुकूमत में आयी थी उसे पूरा कर दिया है। क्या सभी स्कूलों की दिक्कतें दूर हो गई हैं। क्या सभी अस्पतालों के पास एम्बुलेंस हैं। क्या अस्पतालों के स्टोर में ज़रुरत भर दवाएं हैं। क्या हर सरकारी अस्पताल के पास एंटी रेबीज़ टीके हैं। क्या अस्पतालों में डाक्टर, स्कूलों में टीचर और अदालतों में ज़रुरत भर जज हैं। क्या थानों से आम आदमी को इन्साफ मिलने लगा है। क्या सूरज डूबने के बाद अपने घर से निकलने वाली लड़की सुरक्षित है।
चुनाव लड़ने वालों के चरित्र क्या इस लायक हैं कि देश के लिए बनने वाले कानूनों में उनको भी शामिल किया जाए। क्या किसान के पास बीज हैं। क्या आवारा पशुओं को खिलाने लायक खाना और पानी हर गौशाला के पास है। क्या लोगों ने भीख माँगना छोड़ दिया है। क्या लूट और डकैती रुक गई है। क्या ऑनर किलिंग के मसले अब सामने नहीं आते हैं। क्या खाप पंचायतें अब सरदर्द पैदा नहीं करतीं।
सवाल बहुत से हैं जो लगातार अपना सर दीवारों पर फोड़ रहे हैं मगर हुकूमतें झूठ के सहारे चुनाव लड़ने में जुटी हैं। ठीक कुछ भी नहीं मगर अमन चैन के नाटक जारी हैं। जो सरकार इन्साफ दिलाने के लिए पैदा होती है उसका दरवाज़ा भी हर कोई नहीं खटखटा सकता। हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं मगर फिर भी सब सही है कि हम अलख जगा रहे हैं।
चुनाव हिन्दुस्तान का है मगर पाकिस्तान का ज़िक्र लगातार जारी है। किसी को पाकिस्तान का डर दिखाया जा रहा है तो किसी से पाकिस्तान को डरा हुआ दिखाया जा रहा है।
वक्त ने हालात को खुद आइना दिखाने की पहल कर दी है। सियासी लोग इस पहल से सीखना चाहें तो उनके हक में खुद बेहतर होगा। जिस पाकिस्तान को महाशक्तिशाली दिखाने की कवायद चल रही है उसकी हकीकत अचानक सामने आ गई है।
पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान चीन पहुंचे तो हवाई अड्डे पर उनका स्वागत करने के लिये बीजिंग की म्युनिस्पल कमेटी की डिप्टी सेक्रेटरी जनरल (डिप्टी मेयर) ली लिफेंग को भेजा गया। चीन पाकिस्तान का सबसे भरोसेमंद देश है। भारत के खिलाफ पाकिस्तान जो भी क़दम उठाता है वह चीन के भरोसे ही उठाता है। इमरान खान की अपने देश में भरपूर बेइज्जती कर चीन ने उसे यह संदेश दे दिया है कि उसके सामने उसकी क्या हैसियत है।
चीन में इमरान की बेइज्जती के बाद भारत को अपने गरेबान में झाँक लेना चाहिये। यह भारत के लिये शर्मनाक है कि उसके नेता जिस देश के नाम पर चुनाव लड़ रहे हैं, उसकी विश्व फ़लक पर क्या हैसियत है। चुनाव में जीत के लिए कब्रिस्तान और पाकिस्तान के नारे लगाने वाले समझ लें कि ‘अपने चेहरे के किसे दाग नज़र आते हैं, आइना वक्त को तस्वीर दिखा देता है’।