मल्लिका दूबे
पूरे देश में लोकसभा चुनावों को लेकर सरगर्मी का दौर चल रहा है। कहां कौन जीतेगा, कौन हारेगा, किसकी सरकार बनेगी, इस पर चर्चाएं हो रही हैं। वहीं, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद में तीन गांव ऐसे भी हैं जिन्होंने मतदान के बहिष्कार का ऐलान कर दिया है। बाढ़ बचाव को लेकर 80 दिन से आंदोलनरत इन गांवों के ग्रामीणों का सब्र का बांध टूटा तो उन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव से खुद को दूर रखने का निर्णय कर डाला।
80 दिन से नदी किनारे चल रहा है धरना
गोरखपुर जिले के दक्षिणांचल में सैकड़ों गांव बाढ़ के समय सरयू नदी की प्रलंकारी धारा की चपेट में आकर बर्बाद हो जाते हैं। ऐसा ही एक संवेदनशील स्थल है बसही। यहां एक कटानस्थल पर बसही, जितवारपुर और बरपरवा गांव के लोग पिछले 80 दिन से धरने पर बैठे हैं। उनकी मांग है कि कटान से बचाव का मुकम्मल इंतजाम करते हुए बांध को सुदृढ़ कराया जाए। ताकि हर साल होने वाली तबाही को रोका जा सके। धरने के दौरान कुछ अधिकारी समय-समय पर ग्रामीणों के बीच पहुंचे लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि जब तक काम शुरू नहीं होगा तब तक धरना खत्म नहीं होने वाला। धरने के दौरान ही लिए गए फैसले के मुताबिक ये लोग घरों पर काला झंडा लगाएंगे और मतदान नहीं करेंगे।
सरकारी आश्वासन नहीं, काम शुरू चाहिए
धरने पर बैठे अखिलेश सिंह, मधुसूदन, रामबृक्ष, मूलचंद, लालबचन, रीता देवी, यशोदा, गुड्डी, राजमती आदि का कहना है कि हमें सरकारी आश्वासन नहीं कटान स्थल पर काम शुरू दिखना चाहिए। धरना शुरू हुआ तो किसी ने नोटिस नहीं ली, लेकिन जैसे-जैसे दिन गुजरते गये प्रशासनिक अमले के लोग यहां दौरा करने लगे।
ग्रामीणों को आश्वासन दिया गया कि सरकार से मंजूरी मिल गयी है, कटान स्थल पर काम शुरू होने जा रहा है। क्षेत्र के कुछ लोग 2 मार्च को सीएम से भी मिले थे। इसके बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि बाढ़ बचाव का काम शुरू हो जाएगा। पर, अब तक काम न शुरू होने से ग्रामीणों ने वोटिंग के बहिष्कार का निर्णय कर लिया। अपने कड़े फैसले के समर्थन में इन ग्रामीणों की बात सोचने पर मजबूर करती है-जिस लोकतंत्र में जनता की आवाज को ही तरजीह न मिले, उस लोकतंत्र के उत्सव में भागीदारी बेमानी है।
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