पॉलिटिकल डेस्क
मेरठ, उत्तर प्रदेश राज्य का एक शहर है। मेरठ लोकसभा क्षेत्र उत्तर प्रदेश का दसवां निर्वाचन क्षेत्र है। मेरठ को खेल का शहर भी कहते हैं। यह खेल के सामानों के उत्पादन के सबसे बड़े शहरों में से एक है और संगीत के उपकरणों का सबसे बड़ा उत्पादक है। यह एक बहुत ही प्राचीन शहर है और इस क्षेत्र में सिन्धु घाटी सभ्यता की बस्तियों के भी सबूत मिलते हैं।
मेरठ देश की राजधानी दिल्ली से केवल 70 किलोमीटर दूर है और यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। मेरठ से ही अंग्रेजी औपनिवेशक नियम के विरुद्ध 1857 के विद्रोह की शुरुआत यही से हुई थी।
आबादी/ शिक्षा
मेरठ में भारतीय सेना की एक छावनी भी है। मेरठ का सर्राफा एशिया का नंबर 1 का व्यवसाय बाजार है। शहर में कुल चार विश्वविद्यालय हैं, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, शोभित विश्वविद्यालय एवं स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय।
मेरठ के पर्यटन स्थलों में मुख्य रूप से पांडव किला, रोमन कैथोलिक चर्च, हस्तिनापुर तीर्थ, शहीद स्मारक, जैन श्वेतांबर मंदिर, सेन्ट जॉन चर्च, नंगली तीर्थ, सूरज कुंड, हस्तिनापुर सेंचुरी हैं।
यह उत्तर प्रदेश के सबसे तेजी से विकसित और शिक्षित होते जिलों में से एक है। मेरठ जिले में 12 ब्लॉक, 34 जिला पंचायत सदस्य, 80 नगर निगम पार्षद है। मेरठ शहर का क्षेत्रफल 141.94 वर्ग किलोमीटर है और यहां की जनसंख्या 1,420,902 है जिसमें से 752,893 पुरुष और 668,009 महिलाएं हैं।
यहां की साक्षरता दर 76.28 प्रतिशत है। वर्तमान में यहां के कुल मतदाताओं की संख्या 1,764,388 है जिसमें महिला मतदाता 792,318 और पुरुष मतदाताओं की कुल संख्या 971,956 है।
राजनीतिक घटनाक्रम
मेरठ लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधान सभा क्षेत्र आते हैं जिसमें किठोर, मेरठ छावनी, मेरठ, दक्षिण मेरठ और हापुड़ (अनुसूचित जाती के लिए आरक्षित) शामिल है। 1952 में मेरठ में पहला लोकसभा चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के शाहनवाज खां को जीत मिली। नवाज खान लगातार 3 बार इस सीट से जीते और 15 सालों तक यहां के सांसद रहे।
1967 में हुए चुनाव में इस सीट पर संयुक्त सोशल पार्टी ने कब्जा जमाया। 1971 में मेरठ फिर से कांग्रेस के हाथों में आ गया और नवाज खान फिर से सांसद बन गये। 1977 में जनता पार्टी के कैलाश प्रकाश से नवाज खान को करारी हार मिली और उनके हाथ से मेरठ की सीट हमेशा के लिए चली गयी।
1980 में एक बार फिर यह सीट कांग्रेस की झोली में आ गई और मोहसिना किदवई लगातार दो बार यहां से सांसद चुनी गई। मोहसिना खाद्य व रसद विभाग में राज्य मंत्री और हरिजन व सामाजिक कल्याण मंत्रालय के साथ कई और मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री भी रहीं।
1989 में एक बार फिर जनता ने जनता दल पर विश्वास जताया और हरीश पाल को सांसद चुना। भारतीय जनता पार्टी ने 1991 लोकसभा चुनाव में यहां अपना खाता खोला और 1998 के चुनाव तक इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा।
1999 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की लेकिन अगले चुनाव 2004 में इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने जीत दर्ज की। 2009 में भाजपा ने वापसी की और अगले चुनाव 2014 में भी इस सीट को बचाने में कामयाब रही।