स्पेशल डेस्क
लखनऊ। कहते हैं कि राजनीति में सबकुछ जायज है। वोट की खातिर नेताओं को हर चीज रास आने लगती है। इतना ही नहीं राजनीति में जो कल तक दुश्मन हुआ करते थे वो आज दोस्त बन गए है। बात अगर समाजवादी पार्टी की जाये तो यह कहना गलत नहीं होगा कि सपा चुनाव जीतने के लिए अपनी पुरानी दुशमनी को भी भुलाकर बसपा से हाथ मिला लिया है लेकिन सबसे रोचक बात यह है कि मायावती ने मुलायम के लिए प्रचार किया था।
उधर चाचा-भतीजे के झगड़े की वजह रहे कौमी एकता दल के मुखिया रहे मुख्तार अंसारी से एक बार फिर सपा की नजदीकियां देखी जा सकती है। दरअसल सियासत ने एक बार पाला बदल लिया है और मौके की नजाकत को देखते हुए अखिलेश यादव गाजीपुर में अफजाल अंसारी के लिए रैली करते नजर आयेंगे। रोचक बात यह है कि इस रैली में बसपा सुप्रीमो मायावती और अखिलेश यादव एक मंच पर नजर आयेगे। 13 मई को होने वाली रैली को लेकर सपा ने साफ कर दिया है कि इस रैली में अखिलेश यादव भी मौजूद रहेगे।
चाचा और भतीजे की रार की असली वजह रहा है कौमी एकता
साल 2016 में सपा में घमासान देखने को मिला था। उस दौर में अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल यादव के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया था और मुलायम को लेकर भी अखिलेश की जुब़ान तल्ख दिखी थी लेकिन थोड़ा गौर किया जाये तो शिवपाल यादव और अखिलेश के रिश्ते तब और खराब हो गए थे जब चाचा ने कौमी एकता दल का विलय करा दिया था। इसके बाद अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। माना जाता है यही से अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के रिश्ते इतने खराब हो गए थे कि दोनों के बीच टकराव खुलेआम सामने आ चुका हैं।
अखिलेश ने शिवपाल यादव के कौमी एकता के विलय के फैसले को पलट दिया और उसके विलय को रद्द कर दिया था। अखिलेश इतने गुस्से में थे कि चाचा शिवपाल को फौरन प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी कर दी थी जबकि विलय में मुख्य भूमिका निभाने वाले बलराम को मंत्रीमंडल से निकाल बाहर कर दिया था। इसके बाद कौमी एकता ने बसपा में अपना विलय कराकर अखिलेश को चौंका दिया था।
अब माना जा रहा था कि अखिलेश यादव आजमगढ़ से भले ही चुनाव लड़ रहे हो लेकिन अंसारी परिवार से चाहकर भी दूरी नहीं बना पा रहे हैं। जब से अंसारी परिवार को पता चला है कि अखिलेश यहां से चुनाव लड़ रहे हैं तब से अंसारी परिवार उनकी जीत के लिए पूरा जोर लगा रहा है। अब देखना होगा कि अखिलेश इसे कैसे लेते हैं।