जुबिली स्पेशल डेस्क
जुबली पोस्ट ने यह खबर लगाई थी कि लखनऊ के डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती किए गए कई डाक्टरों को एमसीआई ने किस प्रकार अयोग्य ठहराया था।
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मामला संज्ञान में आने पर मुख्यमंत्री ने एक आदेश जारी किया कि प्रदेश के सभी मेडिकल कालेज और संस्थान में भर्ती किये गये सभी डाक्टरों (एसोसियेट प्रोफेसर/प्रोफेसर) के डॉक्यूमेंट की जांच की जाए। इसके लिए विशेष सचिव, चिकित्सा शिक्षा विभाग ने पत्र सं CM-75/17/2020 दिनांक 22।06।2020 को आदेश जारी किया कि डा।आरएमएलआईएमएस लखनऊ में कार्यरत फैकल्टी के डॉक्टरों के डाक्यूमेंट्स का सत्यापन (वेरिफिकेशन) किया जाए।
शासन के आदेश के परिपालन में 29 जुलाई से लेकर के 31 जुलाई तक प्रात:10 बजे से लेकर दिन के 1 बजे तक अलग-अलग विभागों के डॉक्टरों को अपने डाक्यूमेंट्स प्रस्तुत करके सत्यापन कराने के लिए कहा गया है।
इसमें खास बात सब से यह रही है के सारे डॉक्यूमेंट तो मांगे गए लेकिन रिसर्च पब्लिकेशंस को इसमें छोड़ दिया गया था। जबकि एसोसिएट प्रोफेसर और और प्रोफेसर के लिए रिसर्च पब्लिकेशन अनिवार्य है।
संस्थान की निदेशक ने कहा गलती से छूट गया था
29 तारीख दिन 12 बजे संस्थान की निदेशक डॉ नुजहत हुसैन से जुबली पोस्ट ने बात की तो उनका जवाब था कि गलती से रिसर्च पब्लिकेशंस छूट गया है बाद में संशोधन का आदेश जारी किया गया।
कमेटी में नहीं है कोई नान मेडिको
लोहिया संस्थान में जिन डाक्टरों की भर्ती पर एमसीआई ने आपत्ति की थी और अयोग्य ठहराया था। उनके डाक्यूमेण्ट की जांच में सही तथ्य निकल कर आयेगा इसकी संभावना कम ही नजर आ रही है क्योंकि वेरिफिकेशन कमेटी में कोई भी नान मेडिको अधिकारी नहीं रखा गया है और वह भी सभी संस्थान के हैं। कम से कम जे डीएमएम या अन्य किसी नान मेडिको को भी सदस्य बनाना चाहिये था। इसके अलावा डा।एस डी काण्डपाल को एकल सदस्य बनाया गया है जो अनियमित है।
वैसे भी डाक्युमेण्ट में रिसर्च पब्लिकेशंस को पहले शामिल न करने से संदेह तो पैदा हुआ ही है। सवाल बड़ा है कि जिनके रिसर्च पब्लिकेशंस निर्धारित योग्यता से कम होंगे और जो एक्सपीरियंस आदि योग्यता पूरा नहीं करते हैं क्या उनके नाम सामने आ पायेंगे और क्या उन्हें संस्थान से बाहर किया जायेगा?