न्यूज डेस्क
हालांकि इस समय पूरी दुनिया परेशान है, तो किसी एक की परेशानी की बात करना बेमानी लगता है। लेकिन एक तबका ऐसा है जिसकी परेशानी पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले वक्त में देश को किस संकट से गुजरना पड़ेगा, इसकी कल्पना आम आदमी नहीं कर सकता। जी हां, हम किसानों की बात कर रहे हैं। कोरोना की वजह हुए लॉकडाउन की वजह से किसान दोहरी संकट से जूझ रहे हैं।
इस समय देश के सामने सबसे बड़ा संकट है कोरोना वायरस। सबकी प्राथमिकता में है कि जल्द से जल्द देश कोरोना मुक्त हो। कोरोना वायरस की लड़ाई में सरकार के साथ किसान भी खड़े हैं लेकिन लॉकडाउन के चलते अधिकतर किसान मुश्किलों में घिरे हैं।
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गर्मियों का मौसम देश के अधिकतर किसानों के लिए मुश्किलों से भरा होता है, लेकिन इस बार गर्मियों से पहले ही कोरोना ने दस्तक दे दिया जिसकी वजह से किसानों के सामने कई तरह की समस्याएं आ गई हैं। अधिकतर किसान इस समय तैयार फसल को बेंच न पाने से मायूस हैं।
पूरे देश में पिछले 25 मार्च से लॉकडाउन लागू हैं। यह अभी 3 मई तक रहेगा। यह तालाबंदी देशभर के किसानों के आर्थिक नुकसान का सबब बन रहा है। विशेषकर सब्जी और फल उत्पादक किसानों की मुसीबतें अधिक बढ़ गईं हैं।
कई राज्यों में जहां गेहूं की फसल किसान नहीं बेंच पा रहेे हैं तो वहीं नासिक के किसान खेतों में पके अंगूर न बेंच पाने की वजह से परेशान हैं। नासिक के आसपास के क्षेत्र मे अंगूर की खूब खेती होती है। इन दिनों अंगूर खेतों मे पक कर तैयार है।
इन किसानों की परेशानी यह है कि इसे तोड़ दें तो बेचें कहां, और अगर खेतों में इसे यूं ही कुछ दिनों के लिए छोड़ दिया जायगा तो फसल बर्बाद हो जायेगी। इनके सामने एक संकट यह है कि ये अंगूर को किसी कोल्ड स्टोरेज में भी नहीं रखवा सकतेे, क्योंकि अधिकतर कोल्ड स्टोरेज पहले से ही भरे पड़े हैं।
इन क्षेत्रों में सिर्फ अंगूर ही नहीं बल्कि केला, संतरा, आम और अनार जैसे फल उगाने वाले किसान भी परेशान हैं। वहीं नांदेड़ जिले के अधिकांश किसान जिन्होंने अपने खेतों में हल्दी और सब्जी उगाई है, वह चिंतित हैं। वे अपनी फसल बेच नहीं पा रहे हैं। वहीं प्याज की खेती करने वाले नासिक जिले के कोसवान क्षेत्र के किसान रामलखन गायकवाड कहते हैं, जो प्याज लॉकडाउन के पहले 1800 से 2000 रुपए क्विंटल बिक रहा था वह अब 400 से 800 रुपए के आस पास है।
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सप्लाई चेन बाधित
दरअसल यह सारी समस्या सप्लाई चेन बाधित होने की वजह से है। लॉकडाउन की वजह से बाजार तो बंद है ही साथ ही ट्रकों के पहिए भी थम गए हैं। किसानों को अपने उत्पाद दूर दराज के इलाके में भेजने के लिए ट्रांसपोर्ट की समस्या आ रही है। ऐसा नहीं है कि इन उत्पादों की मांग नहीं है। मांग होने के बावजूद सप्लाई नहीं हो पा रही है। शहरों मे लोगों को सब्जियों और फलों की कमी हो रही है जबकि खेतों मे फसल बर्बाद हो रहा है।
पूरी दुनिया में मशहूर अल्फांसो आम को लॉकडाउन ने जमीन पर ला पटका है। औसतन 5 हजार रुपए प्रति पेटी का कीमत अब घटकर 2 से 3 हजार रुपए ही रह गई है। कई किसानों को इस भाव पर भी ग्राहक नहीं मिल रहे हैं। संकट के इस दौर मे सरकार का समर्थन करने वाले किसान भी खेतों में खड़ी अपनी फसल को देख मायूस हो रहे हैं। किसान माल ढुलाई के लिए साधन ना मिलने या स्थानीय मार्केट के बंद रहने से परेशान हैं।
लॉकडाउन ने तोड़ी ट्रांसपोर्टर की कमर
कृषि उत्पाद को उपभोक्ता तक पहुंचाने का जो सप्लाई चेन है उसमे ट्रांसपोर्ट एक अहम कड़ी है। लॉकडाउन में यही कड़ी कमजोर हो गई है। लॉकडाउन के दौरान कृषि उत्पाद और इससे जुड़ी सेवाओं को जारी रखने की अनुमति दी गई है, लेकिन शुरुआती दिनों मे इसको लेकर किसी को कोई जानकारी नहीं थी। लॉकडाउन को लेकर शुरू मे स्पष्ट गाइडलाइन नहीं थी जिसके कारण गाडिय़ों को रोक लिया जाता था। जिसका परिणाम यह है कि देश भर में लगभग साढ़े तीन लाख ट्रक जहां-तहां फंसे हैं और उन पर लगभग 35 हजार करोड़ का सामान लदा है।
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ट्रक मालिकों के लिए यह बेहद मुश्किल परिस्थिति है। हजारों करोड़ का सामान सड़कों पर है और ज्यादातर ट्रक राज्यों की सीमा या चेक पोस्ट पर फंसे हैं। लॉकडाउन की वजह से हर दिन कितना नुकसान हो रहा है वह मोटी-मोटा इन आंकड़ों से समझ सकते हैं। एआईएमटीसी के अनुसार रोजाना औसतन प्रति ट्रक 22 सौ रुपए की दर से जोड़ें तो भी अब तक परिवहन उद्योग को 50 हजार करोड़ से ज्यादा की चपत लग चुकी है। नब्बे फीसदी ट्रक खाली खड़े हैं। लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी इस उद्योग को सामान्य हालत में लौटने में दो से तीन महीने का समय लग जाएगा। इन आंकड़ों से सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि कितने लोग प्रभावित हो रहे हैं।
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