न्यूज डेस्क
लॉकडाउन में सब कुछ थम गया है। जो जहां है वहीं रूका हुआ है। जिसको सरकार से परमिशन मिली है बस वहीं बाहर निकल रहे हैं। बाकी सभी घरों में कैद हैं। तो फिर इस लॉकडाउन में वे लोग कहां रह रहे हैं जिनकी आधी से ज्यादा जिंदगी सड़कों पर गुजरती है।
अर्थव्यवस्था की अहम धुरी ट्रक ड्राइवर और खलासी, जो अपने जीवन का दो तिहाई हिस्सा सड़कों या ट्रकों पर बिता देते हैं, वह भी कोरोना की वजह से जारी देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से देश के विभिन्न हिस्सों में फंस गए हैं। ट्रक मालिकों के लिए यह बेहद मुश्किल परिस्थिति है। हजारों करोड़ का सामान सड़कों पर है। ज्यादातर ट्रक राज्यों की सीमा या चेक पोस्ट पर फंसे हैं।
2018-19 के आर्थिक सर्वे में बताया गया है कि देश में सड़कों से करीब 70 प्रतिशत माल ढुलाई ट्रकों के जरिए होती है। एक तरह से ट्रक और उनके ड्राइवर देश की इकोनॉमी की लाइफलाइन हैं। चूंकि ट्रकों का पहिया थम गया है, शायद इसीलिए देश की इकोनॉमी की लाइफलाइन खतरे में आ गई है।
ट्रक मालिक संगठनों का दावा है कि देश भर में लगभग साढ़े तीन लाख ट्रक जहां-तहां फंसे हैं और उन पर लगभग 35 हजार करोड़ का सामान लदा है। कार कैरियर्स एसोसिएशन के मुताबिक,10 हजार कारों और एसयूवी से लदे 15 हजार से ज्यादा कंटेनर ट्रक सड़कों पर या फैक्टरियों व गोदामों के बाहर खड़े है।
लॉकडाउन की वजह से हर दिन कितना नुकसान हो रहा है वह मोटी-मोटा इन आंकड़ों से समझ सकते हैं। आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) के अनुसार रोजाना औसतन प्रति ट्रक 22 सौ रुपए की दर से जोड़ें तो भी अब तक परिवहन उद्योग को 50 हजार करोड़ से ज्यादा की चपत लग चुकी है। नब्बे फीसदी ट्रक खाली खड़े हैं। लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी इस उद्योग को सामान्य हालत में लौटने में दो से तीन महीने का समय लग जाएगा। इन आंकड़ों से सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि कितने लोग प्रभावित हो रहे हैं।
ट्रक ड्राइवरों बुरे हालात से गुजर रहे हैं। दो-चार दिन की छुट्टी पर गांव गए ड्राइवर लॉकडाउन की वजह और कोरोना के डर से काम पर नहीं लौट पा रहे हैं तो इसी तरह दूरदराज के हिस्सों में सामान पहुंचाने गए ट्रक वहीं फंस गए हैं। उनको खाली लौटने की अनुमति नहीं मिल रही है।
देश का पूर्वोत्तर इलाका तो खाद्यान्नों और दूसरी जरूरी वस्तुओं की ढुलाई के लिए काफी हद तक सड़क परिवहन पर ही निर्भर है। असम की राजधानी गुवाहाटी तक तो ज्यादातर माल रेल मार्ग के जरिए भी पहुंच जाता है, लेकिन इलाके के दूसरे राज्यों में रेलवे नेटवर्क नहीं होने की वजह से यह ट्रक ही एकमात्र सहारा हैं, लेकिन लॉकडाउन से ठीक पहले सामान लेकर इलाके में पहुंचने वाले हजारों ट्रक भी सड़कों पर फंसे पड़े हैं। लॉकडाउन की वजह से तमाम ढाबों के बंद होने से ड्राइवरों और खलासियों के सामने खाने-पीने का संकट भी पैदा हो गया है।
देश के कई हिस्सों में भारी संख्या में ट्रक ड्राइवर फंसे हुए हैं। कोई सामान पहुंचाने गया तो वहां फंस गया तो कोई मंजिल पर पहुंचने से पहले ही रूक गया। ऐसा नहीं है कि इन लोगों ने निकलने की कोशिश नहीं की, कोशित तो की पर पुलिस ने जाने नहीं दिया। इन लोगों के सामने ढाबों के बंद होने से समस्या बढ़ गई है। इनके पास पैसे भी है फिर भी जरूरी सामान नहीं खरीद पा रहे हैं।
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लॉकडाउन के दौरान सिर्फ जरूरी वस्तुओं की ढुलाई को ही छूट है, लेकिन इलाके में ज्यादातर सामान सड़क मार्ग के जरिए ही पहुंचता है। ऐसे चीजें लेकर दूर-दराज के राज्यों से पूर्वोत्तर आने वाले हजारों ड्राइवर और ट्रक फंस गए हैं।
नागालैंड की राजधानी कोहिमा हो या पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता। इन जगहों पर हजारों ट्रक फंसे ड्राइवर और खलासी फंसे हुए हैं। तमाम फैक्टरियों के बंद होने से कई ट्रक तो माल के साथ ही हाइवे पर या टर्मिनस में खड़े हैं। वहां चोरी का भी अंदेशा बढ़ रहा है। इन ट्रकों में दो-पहिया वाहनों के अलावा टीवी, फ्र्रिज और वाशिंग मशीनें जैसे इलेक्ट्रानिक सामान भरे पड़े हैं, लेकिन गोदामों के बंद होने और मजदूरों के नहीं होने की वजह से सामान उतारा नहीं जा सका है।
देश में ट्रक मालिकों के सबसे बड़े संगठन आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) के अध्यक्ष कुलतरण सिंह अटवाल कहते हैं, ” देश के विभिन्न हिस्सों में साढ़े तीन लाख ट्रक फंसे हुए हैं। सरकार को उनकी मंजिल तक पहुंचने की छूट देनी चाहिए। वह कहते हैं, ट्रकों के खड़े होने से ड्राइवरों और खलासियों को तो भारी परेशानी हो ही रही है, कई सामानों के भी खराब हो जाने या चोरी होने का खतरा है। यह आंकड़ा तो अनुमानित है। सिर्फ एक राज्य के भीतर चलने वाले ट्रकों को जोड़ें तो यह तादाद और ज्यादा हो जाएगी। अटवाल कहते हैं कि सरकार कुछ भी कहे, जमीनी स्तर पर समस्या बेहद गंभीर है।
फिलहाल केंद्र सरकार ने परिवहन मालिकों से ऐसे ट्रकों का आंकड़ा मांगा है। वहीं एआईएमटीसी का दावा है कि उसके सदस्यों के पास छोटे-बड़े एक करोड़ ट्रक हैं।
परिवहन कंपनियों पर बड़ा संकट
लॉकडाउन की वजह से परिवहन कंपनियां मुश्किल में आ गई हैं। ऐसी उम्मीद जतायी जा रही है कि यदि यह स्थिति लंबी खिंची तो कई कंपनियां दिवालिया हो सकती हैं। आल इंडिया ट्रांसपोर्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रदीप सिंघल का कहना है कि सरकार को इस उद्योग के लिए वित्तीय पैकेज का एलान करना चाहिए। ट्रकों की किस्तों को छह महीने तक माफ किया जाना चाहिए।
इंडियन फाउंडेशन आफ ट्रांसपोर्टर्स रिसर्च एंड ट्रेनिंग के अनुमान के मुताबिक, विभिन्न राज्यों की सीमाओं पर लगभग पांच लाख ड्राइवर व खलासी फंसे हुए है। इसके अलावा ढाई से तीन लाख ड्राइवर तो चाबियां मालिकों को सौंप कर अपने घर जा चुके हैं। उनके नहीं लौटने की वजह से भारी तादाद में ट्रक इधर-उधर खड़े हैं। एआईएमटीसी ने जरूरी वस्तुओं की सप्लाई में जुटे ट्रक ड्राइवरों और खलासियों के हितों की रक्षा के लिए केंद्र सरकार से उनका 50-50 लाख का बीमा करने की मांग की है।