न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। कोरोना वायरस के प्रकोप ने न केवल यूपी के बल्कि देश के कई पुश्तैनी धंधे बंद करवा दिए है। छोटी- छोटी दुकानों से कारोबार चलने वाले इन लोगों की हालत इतनी ख़राब होने की आ गयी कि इन्हें मजबूरी में ठेला लगाना पड़ रहा है।
लॉकडाउन के चलते नाई, धोबी, मोची और हलवाई जैसे हुनर के कई उस्तादों को जीवन यापन करने के लिए सब्जी बेचने का काम करने पर मजबूर कर दिया है। कोरोना के मद्देनजर देशभर में लॉकडाउन लागू होने के कारण इनका काम बंद हो गया है, जिसके कारण उनके परिवार के समक्ष दो वक्त की रोटी की समस्या पैदा हो गई है।
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उस्तरा चलाने पर संतुलन साधने में माहिर हाथ, कपड़े पर इस्त्री के समय सजग दिमाग, तेज और नुकीले औजार से अपनी कला को नया स्वरूप देने वाले तथा अनुभवी हाथों से लजीज व्यंजन तैयार करने वाले लोग इन दिनों सब्जी का ठेला ठेल रहे हैं।
प्रशासनिक सख्ती से न केवल सड़कें सुनसान नजर आ रही हैं बल्कि मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर और गुरुद्वारों में वीरानगी छाई हुई है। पंडित, मौलवी, पादरी और ग्रंथी लोगों को धार्मिक स्थलों में पूजा करने की मनाही है। वे लोगों से अपने घरों में ही अपने आराध्य देव की उपासना करने को कहते हैं। मंदिर के पास कोई फूल बेचने वाला नहीं है और जो किसान फूलों की खेती करते हैं उनसे कोई खरीदने वाला नहीं है।
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यूपी की राजधानी लखनऊ में आज कल ठेला पर सब्जी बेचने वाले नाई उमेश शर्मा ने बताया कि वह शहर के चौक चौराहों पर कुर्सी नहीं लगा पा रहा है। नाईयों का कहना है कि दाढ़ी बनाना और बाल काटना एक निरंतर प्रक्रिया है लेकिन सख्ती के कारण लोगों ने इसके लिए घरों से निकलना बंद कर दिया है।
नाई का मानना है कि सब्जी का व्यवसाय कम पूंजी में हो जाता है और इसे घूम घूम कर बेचने में सख्ती भी नहीं है, जिससे परिवार चलाने लायक कमाई हो जाती है।
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सब्जी बेच रहे मोची राम तीरथ ने बताया कि दफ्तर और परिवहन के साधनों के बंद होने से लोग घर के बाहर कम निकल रहे हैं जिससे पॉलिश का काम बंद हो गया है। वैसे भी सड़क किनारे बैठने पर रोक के कारण वह अपने दोस्त के साथ साझेदारी में सब्जी बेच रहा है।
शारीरिक रूप से कमजोर, लेकिन साफ़ सफाई को लेकर जागरूक कई धोबी ने अपने पुश्तैनी धंधे को छोड़कर ठेला पर फल बेचना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि उनकी चलती फिरती दुकान पर प्रशासन सख्त नहीं है क्योंकि फल और सब्जी रोजमर्रा की जरूरत है।
दुकान के भीतर मिठाई और खाने-पीने का अन्य सामान तैयार करने वाले हलवाई तुरंत नए व्यवसाय को लेकर ठोस निर्णय नहीं कर पा रहे हैं। कबाड़ी, ठेला, रिक्शा चलाने और इस प्रकार के अन्य कार्य करने वाले ज्यादातर लोग साझेदारी में सब्जी बेच रहे हैं।
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मांस- मछली के ज्यादातर बाजार बंद हो गए हैं और अंडे का धंधा अब मंदा हो गया है। मांस-मछली के व्यवसायी अब चिकन बेचने में जुटे हैं। दर्ज़ी का काम कर अपने परिवार की परवरिश करने वाले लोग नए पेशे की तलाश को लेकर उधेड़ बुन में लगे हैं। ई-रिक्शा के चलने पर भी पाबंदी है लेकिन इसे चलाने वाले लोग इसका इस्तेमाल सब्जी बेचने में करते दिख रहे हैं।
घर- घर जाकर काम करने वाली ममता कश्यप का कहना है कि लॉकडाउन हो जाने के बाद हमको सोसाइटी में जाने के लिए मना कर दिया गया, जिसके चलते हमारा चूल्हा बुझ गया। अब मजबूरी में मुझे चौराहे पर सब्जी बेचकर घर चलाना पड़ रहा है।
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