प्रीति सिंह
देश में लॉकडाउन लागू हुए 15 दिन हो गए है। अब इसका असर दिखने लगा है। किसी को बच्चों की फीस की चिंता सता रही है तो किसी को सैलरी न आने की। सबसे बड़ी चिंता कि यदि लॉकडाउन नहीं खत्म हुआ तो अगले महीने सैलरी मिलेगी भी या नहीं। यह चिंता नौकरीपेशा लोगों की है। जो रोज कुंआ खोदते हैं और पानी पीते हैं उनकी चिंता का तो अंदाजा नहीं लगा सकते हैं। अधिकांश मजदूर कामधाम बंद होने की वजह से शहर छोड़ गांव तो चले गए हैं और जो शहरों में रूके हैं वह लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं। कुछ चार पैसे कमाने के लिए इस महामारी में साग-सब्जी और फल बेंचने को मजबूर हैं। कुल मिलाकर इस लॉकडाउन से सभी के माथे पर चिंता की लकीरे खींच दी हैं।
हम में से कोई ये नहीं जानता कि कोरोना महामारी से पैदा हुआ यह संकट कब खत्म होगा और सरकार इससे कैसे निपटेगी, लेकिन लॉकडाउन की वजह से बेरोजगारी की जो तस्वीर सामने आ रही है, वह सभी को अभी दिखाई देने लगी है। राष्ट्रव्यापी तालाबंदी ने नौकरियों का कितना नुकसान किया है इसे लेकर पहला आंकलन आने के साथ तस्वीर बहुत कुछ साफ हो चली है। नौकरियों के नुकसान के आंकड़े बड़े भयावह हैं। शायद, दुनिया में ऐसा नुकसान पहली बार देखने को मिल रहा है।
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भारत में पिछले दो सप्ताह में जितने लोगों ने बेरोजगार हुए हैं वैसा देश के आर्थिक इतिहास में अब तक देखने में नहीं आया। रोजगार गंवाने वालों का यह आंकड़ा भयावह है। पहले सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इकोनॉमी (सीएमआइई) के आंकड़ों पर गौर करते हैं जो सोमवार को जारी हुए। ये अपनी तरह का अनूठा सर्वेक्षण है जिसमें दैनिक, मासिक तथा तिमाही अवधि के बेरोजगारी के आंकड़े एकत्र किये जाते हैं। सीएमआइई अपने उपभोक्ता सर्वेक्षण के लिए रोजाना रैंडम रीति से चुने हुए 3500 लोगों का साक्षात्कार लेता है। चूंकि 24 मार्च की रात से पूरे देश में लॉकडाउन लागू हो गया इसलिए बाकी चीजों की तरह यह सर्वेक्षण भी बाधित हुआ। सीएमआइई मार्च के आखिरी सप्ताह में सिर्फ 2289 लोगों का ही साक्षात्कार ले पाया था, इसलिए इन आंकड़ों को जारी नहीं किया गया, क्योंकि यह नमूना बहुत ही छोटा था।
सीएमआइई के लिए मौका-मुआयना आधारित सर्वेक्षण को दोहरा पाना भी संभव नहीं था। ऐसे में सीएमआइई के फील्ड स्टॉफ ने 5 अप्रैल के दिन खत्म होने वाले हफ्ते के लिए टेलीफोन पर 9429 लोगों से साक्षात्कार लिये। फोन के सहारे किये गये इस सर्वेक्षण के नतीजे पिछले हफ्ते के सर्वेक्षण से बहुत भिन्न नहीं थे इसलिए सोच-विचार और सत्यापन के बाद सीएमआइई ने इस आंकड़े को सोमवार को जारी कर दिया। सीएमआइई के मुख्य कार्याधिशासी तथा निदेशक महेश व्यास का कहना है, ‘इस हफ्ते बेरोजगारी की दर 23.4 प्रतिशत, श्रम-बल की प्रतिभागिता दर 36 प्रतिशत तथा रोजगार की दर 27.7 प्रतिशत है।’ मतलब, नौकरियों का सीधे-सीधे 20 प्रतिशत का नुकसान हुआ है और इतनी बड़ी तादाद में नौकरियों का खत्म होना किसी भी देश के लिए बड़ी बुरी खबर है। आंकड़े से निकलकर आती सबसे बुरी बात तो ये है कि जिस उम्र को काम-धंधे की उम्र माना जाता है, उस आयु-वर्ग के मात्र 27.7 प्रतिशत लोग ही किसी ना किसी रोजगार में लगे हुए हैं।
सीएमआइई का आकलन है कि तालाबंदी घोषित होने के तुरंत बाद वाले हफ्ते में काम-धंधे के आयु-वर्ग वाली आबादी का मात्र 27.7 प्रतिशत हिस्सा रोजगार में लगा था। ये आंकड़ा 28.5 करोड़ लोगों का होता है। इसके मायने कि मात्र दो हफ्ते के भीतर आय-अर्जन के किसी भी काम में लगे लोगों की संख्या 40.4 करोड़ से घटकर 28.5 करोड़ पर पहुंच गई यानि रोजगार में लगे लोगों की संख्या में दो हफ्ते के भीतर 11.9 करोड़ की कमी।
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वहीं संयुक्त राष्ट्र के श्रम निकाय ने भी चेतावनी दी है कि कोरोना वायरस संकट के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी में फंस सकते हैं। साथ में संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान जताया है कि इस साल दुनिया भर में 19.5 करोड़ लोगों की पूर्णकालिक नौकरी छूट सकती है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने अपनी रिपोर्ट ‘आईएलओ निगरानी- दूसरा संस्करण: कोविड-19 और वैश्विक कामकाज’ में कोरोना वायरस संकट को दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे भयानक संकट बताया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में दो अरब लोग अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं। इनमें से ज्यादातर उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में हैं और ये विशेष रूप से संकट में हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 संकट से पहले ही अनौपचारिक क्षेत्र के लाखों श्रमिकों प्रभावित हो चुके हैं। भारत, नाइजीरिया और ब्राजील में लॉकडाउन और अन्य नियंत्रण उपायों से बड़ी संख्या में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के श्रमिक प्रभावित हुए हैं।’
रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वालों की हिस्सेदारी लगभग 90 प्रतिशत है, इसमें से करीब 40 करोड़ श्रमिकों के सामने गरीबी में फंसने का संकट है। संगठन के अनुसार भारत में लागू किए गए देशव्यापी बंद से ये श्रमिक बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और उन्हें अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर होना पड़ा है। गांवों में रोजगार का क्या विकल्प है यह हम सभी जानते हैं।
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