Monday - 28 October 2024 - 12:25 AM

लॉकडाउन : आम आदमी को नहीं मिली राहत, पेट्रोल पम्पों को भी बड़ा नुकसान

  • पेट्रोल-डीजल की खपत में भारी गिरावट
  • कोरोना की वजह से पेट्रोल पम्पों को हो रहा है भारी नुकसान
  • पिछले 10 साल की सबसे बड़ी गिरावट
  • कोरोना लॉकडाउन से 18 प्रतिशत कम हुई ईंधन की मांग
  • रसोई गैस की मांग बढ़ी

सैय्यद मोहम्मद अब्बास

कोरोना के कहर से कोई नहीं बच पा रहा है। सरकार ने कोरोना को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया है लेकिन यहीं लॉकडाउन अब आर्थिक स्थिति को कमजोर कर रहा है। कोरोना काल में कई उद्योग-धंधों  ने दम तोड़ दिया है। नतीजा यह रहा कि लोग भूखे मरने की कगार पर पहुंच गए है।

कोरोना की चपेट में कई व्यवसाय आ गए है। बात अगर पेट्रोलिया व्यवसाय की करे तो इसको भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। सडक़ पर गाड़ी कम दौड़ रही है। इस वजह से पेट्रोलियम व्यवसाय भी घाटे में चल रहा है।

हाल में एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पेट्रोल-डीजल की खपत में पिछले 10 साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज हुई। इतना ही नहीं कोरोना लॉकडाउन से 18 प्रतिशत ईंधन की मांग कम हो गई है। इसके साथ ही बीपीसीएल और एचपीसीएल ने इसी ओर इशारा किया है और बताया कि लॉकडाउन के दौरान उनकी डीजल और पेट्रोल की बिक्री में 55 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। हालांकि लॉकडाउन में रसोई गैस की मांग बढ़ी है।

यूपी में करीब साढ़े छह हजार पेट्रोल पम्प है लेकिन लॉकडाउन ने इन पेट्रोल पम्पों की हालत खस्ता कर दी है। पेट्रेलियम एसोसिएशन से जुड़े लोगों की माने तो पेट्रोल तथा डीजल की खपत में भारी गिरावट आई है।

उत्तर प्रदेश पेट्रोलियम ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रंजीत कुमार ने जुबिली पोस्ट से बातचीत में बताया कि कोरोना काल में पेट्रोलियम व्यवसाय को हर महीने दो लाख का नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम की खपत शुरुआती लॉकडाउन में केवल 10 से 15 प्रतिशत रह गई थी। हालांकि अब थोड़ा बढक़र 30 प्रतिशत हो गई।

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उन्होंने साफ कहा कि कोरोना ने इस पेट्रोल और डीजल से जुड़े लोगों को 70 प्रतिशत का नुकसान हो रहा है। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान डीएम से बातचीत की थी और उनसे कहा था कि पेट्रोल पम्प को सुबह छह से रात आठ बजे तक खोला जाये लेकिन वो इसके लिए राजी नहीं हुए है। इस वजह से पेट्रोल पम्प पर काम करने वालों को पूरी सैलरी भी देनी पड़ रही है।

उन्होंने कहा ग्रामीणों क्षेत्र में भी फसलों की कटाई होने के बाद सेे किसी भी डीजल-पेट्रोल का ज्यादा उपयोग नहीं किया गया ऐसे में ग्रामीण पंपों पर भी इसकी खपत नहीं है। खेतों में डीजल का प्रयोग होता। इस वजह से वहां डीजल की खपत 10 से 20 प्रतिशत है क्योंकि गांवों में किसान खेतों में का उपयोग करते हैं।

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पूरे भारत में भी हो रहा भारी नुकसान

आलम तो यह है कि पूरे भारत में पेट्रोल-डीजल की खपत में पिछले 10 साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है जबकि कोरोना और लॉकडाउन की वजह से ईंधन की मांग 18 प्रतिशत कम हुई है। दरसअल कोरोना काल में आर्थिक गतिविधियां और आवाजाही न के बराबर है। इस वजह से पेट्रोलियम व्यवसाय को भी तगड़ी चोट पहुंची है।

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पिछले महीने की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के पेट्रोलियम उत्पाद की खपत मार्च में 17.79 प्रतिशत घटकर 16.08 मिलियन टन रह गई, क्योंकि इस दौरान डीजल, पेट्रोल और विमानन टरबाइन ईंधन (एटीएफ) की मांग गिर गई।

यही हाल डीजल के साथ भी हुआ है। डीजल में 24.23 प्रतिशत की मांग के साथ 5.65 मिलियन टन की कमी देखी गई। देश में डीजल की खपत में यह सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है। इसके पीछे का कारण केवल यही है कि सडक़ पर लॉकडाउन की वजह से सडक़ पर ट्रक नहीं चल रही है और ट्रेनों पर ब्रेक लगा हुआ है। शुरुआत में जब 21 दिन का लॉकडाउन लगा तो इस दौरान पेट्रोल की बिक्री 16.37 प्रतिशत घटकर 2.15 मिलियन टन रह गई।

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लेकिन रसोई गैस की मांग बढ़ गई है

कोरोना काल में लोगों को घरों पर रहने के लिए कहा जा रहा है। लॉकडाउन की वजह से लोग घर पर है। इस वजह से रसोई गैस की मांग ज्यादा बढ़ गई है। घरेलू रसोई गैस की आपूर्ति में कोई परेशानी न हो इस वजह से एलपीजी का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है।

इंडियन आयल ने हाल में एक बयान जारी किया था और कहा था कि सभी एलपीजी यूनिट संबंधित राज्य सरकार के निर्देश में काम कर रहे हैं और आम लोगों को गैस आपूर्ति में कोई दिक्कत नहीं आएगी। हालांकि इंडियन ऑयल की माने तो पेट्रोल, डीजल, केरोसिन ही नहीं, हवाई जहाज के ईंधन एटीएफ की मांग में भी काफी गिरावट आई है।

कुल मिलाकर देखा जाये तो कोरोना की वजह से भारत की आर्थिक स्थिति लगातार कमजोर हो रही है। हालांकि सरकार कई योजना बनाकर इसे वापस पटरी पर लाने की कोशिशों में है।

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