Saturday - 26 October 2024 - 9:55 AM

घोर विपरीत परिस्थितियों में आजीविका के प्रयास

रूबी सरकार

श्योपुर जिला का गंभीर कुपोषण वाला कराहल विकास खण्ड के सिलपुरी गांव की कुछ महिलाएं भरी दोपहरी में खेतों में बैठकर खरपतवार निकाल रही थी। इन्हीं में से एक महिला किरण ने इस संवाददाता को बताया, कि बोआई के बाद देखभाल करने के लिए वह हर रोज आती हैं। उसने कहा, वैसे महिला समूह की दो सदस्य प्रतिदिन यहां देखभाल के लिए आती हैं। शेष महिलाएं अपने घर का या अन्य काम करती हैं।

इनके समूह में कुल 10 महिलाएं हैं, जिन्हें पंचायत की ओर से लगभग एक एकड़ राजस्व भूमि सब्जी आदि बोने के लिए दिया गया है, इसके लाभांश का एक हिस्सा पंचायत को तथा शेष आपस में बांट लेती हैं। खाद्य एवं पोषण सुरक्षा कार्यक्रम के तहत यह चल रहा है।

किरण ने कहा, समूह बनाने से लेकर पंचायत से भूमि दिलवाने का सारा श्रेय परमार्थ स्वयं सेवी संस्थान के कार्यकर्ताओं को है। संस्थान के लम्बे प्रयास के बाद यह भूमि समूह को मिला है।

पोषण सहेली मनवर वर्मा बताती है, कि इस क्षेत्र की महिलाओं के लिए यह काम आसान नहीं था। वह एक महीने तक घर-घर जाकर महिलाओं को समझाती रही। गांव वाले फब्तियां कसते रहे, लेकिन वह हार नहीं मानी, न ही विचलित हुई। उल्टे महिलाओं को लगातार प्रेरित करती रही साथ ही घर के पुरूषों को भी मनाती रही। इस तरह प्रयास करते-करते एक दिन उसे कामयाबी मिल गई और वह 10 महिलाओं को जोड़कर समूह बना डाली। इसके बाद महिलाओं की उन्मुखीकरण के लिए बैठकें करती रही।

इन बैठकों में आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, किशोरी बालिका, गर्भवती और धा़त्री महिलाओं के अलावा रोजगार सहायक और सरपंच आदि सभी उपस्थित रहते थे। बैठक में महिलाओं को योजनाओं की जानकारी देने और उनके समस्याओं का समाधान भी होने लगा। महिलाएं बैठकों में सक्रिय भागीदारी करने लगी। इनकी सक्रियता देखकर जर्मनी की एक संस्था जीआईजेड ने इन्हें खेती के लिए संसाधन उपलब्ध करवाये। एक साल के भीतर समूह ने स्वयं 3 हजार रूपये इकट्ठा कर लिये, जिसमें से एक हजार रूपये का बीज खरीदा और घोर विपरित परिस्थितियों में अपना काम शुरू कर दिया। महिलाएं बच्चों के पोषण के लिए खुद ही खेतों में मेहनत़ करने लगी। ऐसी मिसालें देश के कई हिस्से में मिलेंगे, लेकिन इस पंचायत के लिए यह अनोखी इसलिए है, क्योंकि यहां भील और सहरिया आदिवासी के अलावा अनुसूचित जाति के लगभग 200 परिवार निवास करते हैं।

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मनवर ने कहा, इन्हें समूह बनाने के लिए प्रेरित करने का काम मुश्किलों से भरा और चुनौतीपूर्ण था। फिलहाल मनवर के पास देखरेख के लिए दो गांव है पर्तवाडा और सिलपुरी। वह रोज दोनों गांव का दौरा स्वयं मोटर साइकिल चलाकर करती है। एक युवती मोटर साइकिल चलाकर गांव का दौरा करे, यह भी गांव में पहली बार हुआ है।

समूह की सदस्य गीता कहती हैं, कि लम्बे समय तक लॉकडाउन से गांव लौटे लोगों के सामने भुखमरी के हालात पैदा हो गई थी। रेखा बताती है, कि गांव से पलायन करने वाले अधिकांश लोग छोटी जोत वाले हैं। खेती से पेट न भरने और कुदरत की मार से त्रस्त होकर गांववालों ने दूसरे राज्यों का रुख किया था। पलायन करने वाले अधिकांश मजदूर हैं। रेखा ने कहा, कि ऐसे समय में हमें इस खेत में उगाये टमाटर, पालक, मटर, बैगन, मूली, मिर्च आदि ने बड़ा सहारा दिया। रसोई आसानी से चल निकली। यह सारी सब्जियां जैविक है।

अंजना ने कहा, इस साल यहां केवल एक बच्चा पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती हुआ है। उसकी हालत में सुधार हो रहा है। समूह की सदस्य रानी ने बताया, कि लगभग सभी महिलाओं के पास जॉब कार्ड हैं और सभी को मजदूरी का पैसा भी मिल चुका है।

गौरतलब है कि 5वीं अनुसूचि वाला यह विकास खण्ड वर्ष 2016 के अगस्त और सितम्बर माह में अंतराष्ट्रीय पटल पर तब उभर कर आया, जब इन्हीं दो माह में यहां 116 बच्चों ने कुपोषण के चलते दम तोड़ दिया। यहां के आंगनबाडि़यों के बच्चों के ग्रोथ चार्ट से पता चला था, कि लगभग हर आंगनबाड़ी में एक दर्जन बच्चे गंभीर कुपोषित हैं। प्रायः यहां एनआरसी में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की कतारें लगी रहती थी।

परमार्थ समाज सेवी संस्थान के सचिव संजय सिंह बताते हैं, कि यहां खराब आहार से संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है। कुपोषण के चलते बच्चों का कद भी अपेक्षाकृत कम है। छोटा कद गर्भाशय में शुरू होता है, जो प्रसव के बाद के जीवन के पहले दो वर्षों तक जारी रहता है। इस अवधि में सभी संभावित सुधार किए जा सकते है। अच्छे भोजन और देखभाल से इस स्थिति को बदला जा सकता है। इसी उद्देश्य से हमने इस विकास खण्ड में जर्मनी की संस्था जीआईजेड के सहयोग से काम शुरू किया और जिन पंचायतों ने हमें जमीन उपलब्ध करवाया, वहां महिलाओं का समूह बनाकर उन्हें सब्जी बोने का प्रशिक्षण दिया।

गौरतलब है, कि कराहल विकास खण्ड में 129 गांव है, जिनमें से 121 राजस्व में शामिल है, शेष मजरे-टोले हैं। इस क्षेत्र में लगभग 110 निजी संस्थाएं काम कर रही है। पपीता बाई कहती है, कि किसी संस्था ने कभी यहां की महिलाओं से संपर्क नहीं किया। लेकिन परमार्थ ने सबसे पहले यहां महिलाओं से संपर्क कर उन्हें साथ लेकर काम शुरू किया। आज यहां की महिलाएं इतनी जागरूक हो गई हैं, कि वे बच्चों के साथ-साथ स्वयं के पोषण का ध्यान रखती हैं।

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