अशोक कुमार
“सेवानिवृत्त” शब्द का अर्थ है नौकरी या पद से अवकाश प्राप्त करना। यह शब्द उन लोगों के लिए उपयोग किया जाता है जो अपनी कामकाजी जिंदगी पूरी कर चुके हैं और अब काम नहीं करते हैं। सेवानिवृत्ति की उम्र अलग-अलग देशों और संगठनों में भिन्न होती है। भारत में, सरकारी कर्मचारियों के लिए सेवानिवृत्ति की सामान्य उम्र 60-62 वर्ष है।
सेवानिवृत्ति के बाद, लोग कई तरह की गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं, जैसे कि यात्रा करना, शौक पूरा करना, या परिवार के साथ समय बिताना। कुछ लोग अंशकालिक काम करना या स्वयंसेवी कार्य करना भी चुनते हैं।कई देशों में सेवानिवृत्ति की कोई अनिवार्य आयु सीमा नहीं है, खासकर निजी क्षेत्र में। सरकारी क्षेत्र में अक्सर सेवानिवृत्ति की एक निर्धारित आयु होती है, लेकिन यह देश और नौकरी के प्रकार के अनुसार अलग-अलग होती है।
यहाँ कुछ देश दिए गए हैं जहाँ सेवानिवृत्ति की आयु सीमा के बारे में जानकारी उपलब्ध है:
संयुक्त राज्य अमेरिका में, निजी क्षेत्र के अधिकांश कर्मचारियों के लिए कोई अनिवार्य सेवानिवृत्ति आयु नहीं है। हालांकि, कुछ संघीय कानून हैं जो कुछ व्यवसायों, जैसे कि पायलटों और न्यायाधीशों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु निर्धारित करते हैं। कनाडा में, निजी क्षेत्र के अधिकांश कर्मचारियों के लिए कोई अनिवार्य सेवानिवृत्ति आयु नहीं है।
हालांकि, कुछ प्रांतों में कुछ व्यवसायों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु निर्धारित करने वाले कानून हैं।ऑस्ट्रेलिया में, निजी क्षेत्र के अधिकांश कर्मचारियों के लिए कोई अनिवार्य सेवानिवृत्ति आयु नहीं है।हालांकि, कुछ सरकारी क्षेत्रों में सेवानिवृत्ति की आयु निर्धारित करने वाले कानून हैं। यूनाइटेड किंगडम में, निजी क्षेत्र के अधिकांश कर्मचारियों के लिए कोई अनिवार्य सेवानिवृत्ति आयु नहीं है।
सेवानिवृत्ति के बाद पेंशनभोगियों के लिए सीमित कार्य संस्थाओं के लिए कई प्रकार से लाभदायक हो सकता है: अनुभव और विशेषज्ञता: पेंशनभोगी अपने कार्य जीवन के दौरान मूल्यवान अनुभव और विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं। संस्थाएँ इस ज्ञान का लाभ उठा सकती हैं। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में उपयोगी हो सकता है जहाँ अनुभवी पेशेवरों की कमी है। पेंशनभोगियों को आमतौर पर कम प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, क्योंकि उनके पास पहले से ही आवश्यक कौशल और ज्ञान होता है। यह संस्थाओं के लिए समय और धन की बचत करता है।
उच्च विश्वसनीयता और नैतिकता:
पेंशनभोगी अक्सर अपने काम के प्रति अधिक विश्वसनीय और नैतिक होते हैं। यह संस्थाओं में एक सकारात्मक कार्य वातावरण बनाने में मदद कर सकता है। पेंशनभोगी अक्सर अंशकालिक या अस्थायी आधार पर काम करने के लिए तैयार होते हैं। यह संस्थाओं को अपनी कार्यबल आवश्यकताओं को अधिक लचीले ढंग से प्रबंधित करने में मदद कर सकता है। पेंशनभोगियों को रोजगार देने से संस्थाओं की सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है। इससे संस्थाओं की सार्वजनिक छवि बेहतर हो सकती है। कई बार पेंशन भोगी कम वेतन पर कार्य करने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। जिससे संस्थाओं को आर्थिक लाभ होता है। ये युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक और प्रशिक्षक के रूप में कार्य कर सकते हैं।
हालाँकि, संस्थाओं को पेंशनभोगियों के लिए उपयुक्त कार्य वातावरण और लचीले कार्य विकल्पों की पेशकश करने की आवश्यकता होती है। सेवानिवृत्ति के बाद, कई पेंशनभोगियों को अपनी जीवनशैली को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त आय की आवश्यकता होती है। सीमित कार्य उन्हें यह अवसर प्रदान करता है। बढ़ती महंगाई और चिकित्सा खर्चों के कारण, एक निश्चित पेंशन आय पर्याप्त नहीं हो सकती है। सीमित कार्य पेंशनभोगियों को वित्तीय रूप से स्वतंत्र रहने में मदद करता है, जिससे वे अपने खर्चों के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहते हैं। यह उन्हें अपनी बचत का उपयोग करने में सक्षम बनाता है, जिससे वे अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं। कई पेंशनभोगियों के पास वर्षों का अनुभव और मूल्यवान कौशल होता है।
सीमित कार्य उन्हें इन कौशलों का उपयोग करने और समाज में योगदान करने का अवसर प्रदान करता है। यह उन्हें अपनी विशेषज्ञता के लिए उचित मुआवजा प्राप्त करने की अनुमति देता है। सीमित कार्य पेंशनभोगियों को सक्रिय और व्यस्त रखता है, जिससे वे सामाजिक रूप से जुड़े रहते हैं। यह उन्हें अलगाव और अकेलेपन की भावनाओं से बचाता है, जो सेवानिवृत्ति के बाद आम हैं। काम करना पेंशनभोगियों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, क्योंकि यह उन्हें उद्देश्य और उपलब्धि की भावना देता है।
यह उन्हें तनाव और अवसाद से निपटने में मदद करता है। पेंशनभोगी अपने ज्ञान और अनुभव से समाज में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। सीमित कार्य उन्हें ऐसा करने का अवसर प्रदान करता है। वे युवा पीढ़ी को मार्गदर्शन और सलाह दे सकते हैं, जिससे समाज को लाभ होता है। काम करने से पेंशनभोगियों के आत्म-सम्मान में वृद्धि होती है, क्योंकि वे समाज के लिए उपयोगी महसूस करते हैं। यह उन्हें समाज में एक सम्मानित स्थान बनाए रखने में मदद करता है।
कुछ पेंशनभोगियों के लिए स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ सीमित कार्य करने में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं। कुछ क्षेत्रों में, पेंशनभोगियों के लिए उपयुक्त रोजगार के अवसर सीमित हो सकते हैं। कुछ नियोक्ता पेंशनभोगियों को काम पर रखने में हिचकिचा सकते हैं, जिससे उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है।
विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए नियोक्ताओं को पेंशनभोगियों के लिए अंशकालिक या लचीले कार्य विकल्प प्रदान करने चाहिए। पेंशनभोगियों को नए कौशल सीखने और अपनी रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
जागरूकता अभियान:
समाज में पेंशनभोगियों के योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाए जाने चाहिए।
पेंशनधारियों को सेवानिवृत्ति के बाद अपने संस्थान को कुछ घंटे देने के बारे में कई पहलू हैं जिन पर विचार किया जाना चाहिए: पेंशनधारियों के पास वर्षों का अनुभव और ज्ञान होता है जो संस्थान के लिए बहुत मूल्यवान हो सकता है। वे युवा कर्मचारियों को मार्गदर्शन और प्रशिक्षण दे सकते हैं। वे विशेष परियोजनाओं या कार्यों में अपनी विशेषज्ञता प्रदान कर सकते हैं।
कई पेंशनधारी अपने संस्थान के प्रति निष्ठावान होते हैं और उसकी सफलता में योगदान करना चाहते हैं। वे संस्थान के इतिहास और संस्कृति को संरक्षित रखने में मदद कर सकते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद, कुछ लोगों को सामाजिक अलगाव का अनुभव हो सकता है। संस्थान के साथ जुड़े रहने से उन्हें सामाजिक जुड़ाव और उद्देश्य की भावना मिल सकती है।
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कुछ पेंशनधारियों के पास स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं या वे अपने सेवानिवृत्ति के समय का आनंद लेना चाहते हैं। संस्थान को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन पर बहुत अधिक दबाव न डाला जाए। पेंशनधारियों को शामिल करने से युवा कर्मचारियों के लिए विकास और उन्नति के अवसर सीमित हो सकते हैं। संस्थान को युवा और अनुभवी कर्मचारियों के बीच संतुलन बनाना चाहिए। संस्थान को पेंशनधारियों को उनके समय और योगदान के लिए उचित पारिश्रमिक और मान्यता प्रदान करनी चाहिए।
निष्कर्ष:
पेंशनधारियों को अपने संस्थान को कुछ घंटे देने का निर्णय व्यक्तिगत और संस्थागत कारकों पर निर्भर करता है। यदि संस्थान पेंशनधारियों के अनुभव और ज्ञान का उपयोग कर सकता है, और यदि पेंशनधारी ऐसा करने के इच्छुक और सक्षम हैं, तो यह दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद हो सकता है। हालांकि, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि पेंशनधारियों के स्वास्थ्य और समय का सम्मान किया जाए और युवा कर्मचारियों के लिए अवसरों को सीमित न किया जाए।
(लेखक पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर रह चुके हैं)