अविनाश भदौरिया
नए नागरिकता कानून को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन जारी है। इस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपनी-अपनी रोटियां भी सेंकने में जुटे हुए हैं। लेकिन कुछ ऐसे समुदाय और लोग भी हैं जिनकी समस्याओं और दर्द पर सोचना जरुरी है। उनकी चिंताओं को दूर करना सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिए।
अपनी इस खबर में हम जिस समुदाय का जिक्र करने जा रहे हैं वह एक ऐसा समुदाय है जिसके साथ खुदा (भगवान) ने भी शायद न्याय नहीं किया लेकिन वो फिर भी सर उठा के शान से जीते हैं। हालांकि इन्हें बचपन से लेकर अपनी मौत तक हर रोज न जाने कितनी जिल्लत और जद्दोजहद का सामना करना पड़ता है फिर भी वो अपनी एक दुनिया में मस्त हैं और खुश हैं। लेकिन यह समुदाय भी बहुत से लोगों की तरह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लेकर भयभीत है।
एक मनोचिकित्सक का कहना है कि एनआरसी की वजह से समूह के सदस्यों की चिंता और तनाव में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। कुछ सदस्यों में डिप्रेशन की भी शिकायतें लगातार आ रही हैं।
दरअसल कुछ व्यावहारिक दिक्कतों का एलजीबीटी समूह को सामना करना पड़ता है। इस वजह से पूरे देश की एनआरसी से उन्हें बाहर किए जाने का खतरा है। इसमें से बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके परिवारों ने उन्हें बेदखल कर दिया है जबकि कुछ ऐसे भी हैं जिनके दस्तावेजों में लिंग को लेकर सवाल उठेंगे। ऐसे में इनके सामने अपनी नागरिकता साबित करने का संकट पैदा हो जाएगा।
कुछ ऐसे सदस्य भी हैं जो अपने साथ हुई हिंसा की वजह से घर छोड़कर आए हैं। उनके पास सिर्फ आधार कार्ड है जबकि दस्तावेजों के लिए दोबारा घर वापस लौटना संभव नहीं है।
बहुत से सदस्य ऐसे हैं जो दस्तावेजों में वह पुरुष हैं। उनके स्कूली प्रमाण पत्र और पहचान पत्र में अलग-अलग पहचान हैं। क्योंकि शुरुआती दिनों में या तो घरवालों को इस बारे में जानकारी नहीं थी और अगर हुई भी तो इसे छुपाया गया। अगर देश में एनआरसी को लागू किया जाता है तो वह खुद को कैसे साबित कर सकेंगे ?
इन लोगों का डर इसलिए भी वाजिब है क्योंकि असम में एनआरसी की वजह से 2000 ट्रांस वुमेन को बाहर कर दिया गया था।
शायद यही वजह है कि रविवार को जंतर मंतर पर एलजीबीटी समूह के सदस्यों ने बड़ी संख्या में एकजुट होकर सरकार का ध्यान अपनी समस्या की ओर खींचने की कोशिश की। अब सरकार को भी चाहिए कि इनकी चिंता दूर करे।
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