शबाहत हुसैन विजेता
तमाम उम्र हम एक दूसरे से लड़ते रहे,
मगर मरे तो बराबर में जा के लेट गए.
सियासत मुंह भराई के हुनर से खूब वाकिफ है,
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है.
हजारों कुर्सियां इस मुल्क में लाशों पे रखी हैं,
ये वो सच है जिसे झूठे से झूठा बोल सकता है.
इस तरह के हजारों शेर हैं जो मुशायरे नहीं बल्कि दिलों को जीत लेते हैं. इन शेरों के खालिक हैं मुनव्वर राना, जो इन दिनों सोशल मीडिया पर ऐसे ऐसों से लताड़े जा रहे हैं जो तमाम उम्र की कोशिशों के बावजूद उनके जैसा लिखने की सोच भी नहीं सकते.
मुनव्वर राना की कलम की खासियत यह है कि वह जितनी अच्छी शेर-ओ-शायरी करते हैं उतने ही अच्छे लेख भी लिखते हैं. सबसे बढ़कर वो उतने ही अच्छे इंसान भी हैं.
मुनव्वर राना आज विवादों में हैं क्योंकि उन्होंने साहित्य अकादमी अवार्ड वापस किया था. मुनव्वर राना आज विवादों में हैं क्योंकि उनकी बेटी सुमैया राना समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. मुनव्वर राना आज विवादों में हैं क्योंकि उनके बेटे तबरेज़ राना का अपने चाचा और चचेरे भाइयों से सम्पत्ति सम्बन्धी विवाद चल रहा है. इसी सम्पत्ति विवाद में हाल ही में रायबरेली में गोली चली थी, जिसमें पुलिस ने बताया कि तबरेज़ ने अपने चचेरे भाइयों और चाचा को फंसाने के लिए खुद ही गोली चलवाई.
रायबरेली गोलीकांड की जाँच पुलिस कर रही है. पुलिस तय करेगी कि इसमें किसकी गलती है और किसे सज़ा मिलनी चाहिए. इस विवाद की वजह से किसी को भी हक़ नहीं है कि वह जज की भूमिका में आ जाए और खुद ही फैसले सुनाने लग जाए.
एक वरिष्ठ पत्रकार ने सोशल मीडिया पर लिखा कि उसके घर में सम्पत्ति को लेकर गोलियां चल रही हैं जिसके हिस्से में सिर्फ माँ आई थी. इस पोस्ट पर तरह-तरह के कमेन्ट देखे जा सकते हैं.
एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा कि अवार्ड चाहे जब वापस करना, पहले भाइयों का हड़पा गया हक़ तो उन्हें वापस करो, बेशर्म फरेबी ड्रामेबाज़.
मुनव्वर राना उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के अध्यक्ष बनाये गए थे. उनके पास एक बीमार शायर की आर्थिक सहायता की एप्लीकेशन आयी. मुनव्वर राना ने अकादमी के चेयरमैन से कहा कि इस शायर को इलाज के लिए जितने पैसों की ज़रूरत हो फ़ौरन दे दिया जाए. इस पर चेयरमैन ने उन्हें बताया कि अकादमी का अध्यक्ष किसी बीमार शायर को मदद के नाम पर सिर्फ 25 हज़ार रुपये ही दे सकता है. मुनव्वर राना ने उसी वक्त यह कहते हुए इस्तीफ़ा दे दिया कि अगर हम एक मरते हुए शायर को भी नहीं बचा सकते तो फिर इस कुर्सी पर क्यों बैठें? अगर मदद 25 हज़ार की ही करनी है तो फिर उर्दू अकादमी का अध्यक्ष क्यों मदद करे मुनव्वर राना भी मदद कर सकता है. मैं एक मुशायरा पढूंगा और उससे मिलने वाले पैसे शायर को दे दूंगा.
मुझे नहीं पता कि मुनव्वर राना वाकई शानदार शख्सियत के मालिक हैं या फिर फरेबी और ड्रामेबाज़ हैं लेकिन जिस सच्चाई का मुझे पता है वो यह है कि मुनव्वर राना के वालिद ट्रक चलाते थे. रायबरेली उनका घर था लेकिन वह ट्रक का स्टेयरिंग थामे पूरा देश घूमते रहते थे. मुनव्वर राना बड़े हुए तो वो स्टेयरिंग खुद थाम लिया और अपने वालिद को घर बिठाकर पूरे घर की ज़िम्मेदारी संभाल ली.
मुनव्वर राना ने कोलकाता में अपना ट्रांसपोर्ट शुरू किया और मुशायरों में देश-दुनिया में घूमने लगे. मुनव्वर राना ने ट्रांसपोर्ट से ज्यादा पैसा मुशायरों से कमाया. उनके वालिद ने एक बार उनसे कहा कि मैं ऐसी गाड़ी खरीदना चाहता हूँ जैसी रायबरेली में दूसरी न हो. मुनव्वर राना ने उनके लिए कोलकाता में टाटा सफारी खरीदी. उन दिनों लखनऊ में भी किसी के पास टाटा सफारी नहीं थी. वह सफारी लेकर रायबरेली गए. उनके वालिद बीमार थे. बीमार बाप के हाथ में गाड़ी की चाबी देकर मुनव्वर राना ने कहा कि अब आप ऐसी गाड़ी के मालिक हैं जैसी दूसरी गाड़ी अभी लखनऊ में भी नहीं है.
कुछ दिन बाद मुनव्वर राना के वालिद की मौत हो गई और वह अपने ख़्वाबों की गाड़ी में नहीं बैठ पाए. वो गाड़ी यूँ ही धूल खाती रही. रायबरेली में मुनव्वर राना के किसी दोस्त की शादी थी वह बारात ले जाने के लिए गाड़ी मांगकर ले गया. मुनव्वर राना वह गाड़ी फिर कभी वापस नहीं लाये क्योंकि उस गाड़ी में गाड़ी का मालिक नहीं बैठ पाया था.
मुझे नहीं पता कि मुनव्वर राना ने भाइयों का हक़ हड़पा या नहीं मगर अपने माँ-बाप से इतनी बेलौस मोहब्बत करने वाला भाइयों का हक़ हड़प सकता है ये भरोसा नहीं होता.
यहाँ जो लिखा है वो किसी ने बताया नहीं है, सब छपा हुआ है. आज से बीस-पच्चीस साल पहले ही छप चुका है. उर्दू अकादमी वाला किस्सा सभी अखबारों में छपा था.
कुछ साल पहले मुनव्वर राना को कैंसर हुआ था, तब पूरे हिन्दुस्तान में उनके लिए दुआएं हो रही थीं. वह कैंसर को हराकर लौटे थे तो जगह-जगह जश्न मनाये जा रहे थे. एक बेईमान के लिए इतनी दुआएं, भाई का हक़ मार लेने वाले के ठीक हो जाने पर इतना जश्न.
भाइयों में विवाद हो सकता है. सम्पत्ति का भी विवाद हो सकता है. तबरेज़ ने हो सकता है कि वाकई वह सब किया हो जो पुलिस ने बताया मगर इसके लिए क़ानून है. पुलिस को कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए. तबरेज़ ने ऐसा किया है तो उसकी कानूनी सज़ा तय होनी चाहिए लेकिन क्या बगैर नोटिस पुलिस आधी रात को किसी के घर में उसी तरह से घुस सकती है जैसे कि मुनव्वर राना के घर में घुसी थी?
कहने वाले कह सकते हैं कि यह सब बायज्ड होकर लिखा जा रहा है. हाँ मैं बायज्ड हूँ. जो मुनव्वर राना पाकिस्तान जाकर यह कह आया हो कि “तुम्हारे पास जितना है, हम उतना छोड़ आये हैं” जिस मुनव्वर राना ने शानदार मुहाजिरनामा लिखा. जिस मुनव्वर राना ने माँ पर शानदार शेर लिखे. माँ पर जितना लिखा किसी ने नहीं लिखा.
माँ पर लिखी किताब से होने वाली आमदनी जो आदमी गरीब माओं के लिए बने ट्रस्ट में दे देता हो. जो आदमी इस किताब की आमदनी से एम्बुलेंस खरीदने की बात करता हो. उसकी शायरी पर मज़ाक बनाना. एक शायर के साथ सियासत करना. जो यह कहता हो कि “मिट्टी का बदन कर दिया मिट्टी के हवाले, मिट्टी को कहीं ताजमहल में नहीं रखा”.
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बेटे का किसी से विवाद हो सकता है, बेटियां कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में जा सकती हैं. हर व्यक्ति एक इकाई होता है और हर इकाई को अपने हिसाब से जीने का हक़ होता है मगर एक शायर तो लोकतंत्र का मज़बूत विपक्ष ही होता है वो तो जनता की आवाज़ सरकार के सामने उठाता ही रहता है. मुनव्वर राना की आलोचना उनकी शायरी को लेकर हो तो किसी को एतराज़ नहीं है. उनसे अच्छा लिखने वाला उन्हें फरेबी कहे तो बुरा नहीं लगेगा. लिखने को बहुत कुछ है, साहित्य पर राजनीति हावी होती नज़र आ रही है. आज नहीं तो कल सही वही साबित होगा जो दिनकर ने नेहरू से कहा था कि जब राजनीति डगमगाती है तो उसे साहित्य ही संभालता है मगर, “तुम्हें भी नींद सी आने लगी है, थक गए हम भी, चलो हम आज ये किस्सा अधूरा छोड़ देते हैं”.