न्यूज डेस्क
मस्जिद में नमाज के लिए महिलाओं के प्रवेश को लेकर देश में बहस चल रहा है। कुछ लोग इसके सपोर्ट में हैं तो कुछ विरोध में। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी जिसको कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सीजेआई गोगोई ने कहा, ‘मुस्लिम महिलाओं को ही इसे चुनौती देने दीजिए।’
अखिल भारत हिंदू महासभा की केरल इकाई ने सुप्रीम कोर्ट में मस्जिदों में नमाज के लिए महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के लिए याचिका दाखिल की थी।
8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरूद्ध बोस की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने केरल उच्च न्यायालय के इस आदेश को सही ठहराया कि यह जनहित याचिका प्रायोजित है और ‘सस्ते प्रचार के लिए’ इसका इस्तेमाल हो रहा है।
केरल उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील खारिज करते हुए पीठ ने सवाल किया, ‘आप कौन हैं? आप कैसे प्रभावित हैं? हमारे सामने प्रभावित लोगों को आने दीजिए। ‘
द हिन्दू में प्रकाशित खबर के मुताबिक इस पर याचिकाकर्ता का कहना था कि वे मुस्लिम महिलाओं को अपनी बहन की तरह देखते हैं। उनकी याचिका में कहा गया था कि मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं को प्रवेश और पूजा करने की अनुमति न देना संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
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8 जुलाई को शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में इस तथ्य का उल्लेख किया है कि इस याचिका पर सुनवाई होने से पहले ही इसके बारे में मीडिया में खबरें थीं और यह प्रायोजित याचिका लगती है जिसका मकसद सस्ता प्रचार पाना है।
पीठ ने कहा, ‘हमें उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई वजह नजर नहीं आती है। याचिका खारिज की जाती है।’
अखिल भारत हिंदू महासभा की केरल इकाई के अध्यक्ष स्वामी दतात्रेय साई स्वरूप नाथ ने जब न्यायाधीशों के सवालों का जवाब मलयाली भाषा में देने का प्रयास किया तो पीठ ने न्यायालय कक्ष में उपस्थित एक अधिवक्ता से इसका अनुवाद करने का अनुरोध किया।
अधिवक्ता ने पीठ के लिए अनुवाद करते हुए कहा कि स्वामी याचिकाकर्ता हैं और उन्हेांने केरल उच्च न्यायालय के 11 अक्टूबर, 2018 के आदेश को चुनौती दी है।
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याचिकाकर्ता ने बीती 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सबरीमाला मंदिर मामले में दिए गए फैसले का जिक्र करते हुए कहा था कि तब शीर्ष अदालत द्वारा मंदिर में रजस्वला महिलाओं के प्रवेश पर लगी हुई पाबंदी को हटाया गया था।
इस पर केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, ‘ऐसी कोई परंपरा नहीं है जो मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश से रोकती हो, याचिका में संविधान में बताए गए मूलभूत अधिकारों के हनन की बात कही गई है, लेकिन याचिका में यह नहीं बताया गया कि यह हनन किस प्रकार हुआ।’