जुबिली न्यूज डेस्क
केंद्र सरकार के मंत्री भले ही किसानों से बातचीत को लेकर बयान दे रहे हों, लेकिन दूसरी तरफ से इस आंदोलन को कहीं न कहीं नए रंग देने की कोशिश भी हो रही है। अब सरकार के मंत्रियों ने भी आंदोलन को नक्सलवाद और माओवाद से जोड़ना शुरू कर दिया है।
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि अगर प्रदर्शन को नक्सलियों और माओवादियों से मुक्त किया जाता है तो हमारे किसान जरूर समझेंगे कि ये कानून उनके और देश के हित में हैं। पीयूष गोयल के अलावा विवादों में रहने वालीं बीजेपी नेता प्रज्ञा ठाकुर ने तो किसानों को ही नकली बता दिया है।
पहले केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के बयान की बात करते हैं। पीयूष गोयल ने कहा कि,
“मुझे विश्वास है कि ज्यादातर किसान इन कानूनों के पक्ष में हैं। केंद्र 24 घंटे बातचीत करने को तैयार है। अगर प्रदर्शन नक्सलियों और माओवादियों से आजाद होता है तो हमारे किसान जरूर समझेंगे कि कानून देश और उनके हित में हैं। बातचीत से ही हल निकलने वाला है। मीटिंग के टेबल ऐसे छोड़ने से ये आंदोलन उनके हाथों से चला जाएगा।”
गोयल ने कहा कि पीएम मोदी की लोकप्रियता आज इतनी ज्यादा है क्योंकि उन्होंने देश के और किसानों के हितों के लिए काम किया है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए काम किया है। उसके लिए देश को खुले मन से नई व्यवस्थाओं को अपनाना पड़ेगा। पुरानी जंजीरों से किसानों को मुक्त करना है। 18 राजनीतिक दलों ने कोशिश की, लेकिन फिर भी भारत बंद नहीं हुआ।
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अब मालेगांव बम धमाकों की आरोपी और बीजेपी की हिंदू ब्रांड नेता प्रज्ञा ठाकुर के बयान की बात करते हैं. प्रज्ञा ठाकुर ने हमेशा की तरह इस बार भी विवादित बयान दे डाला. उन्होंने कहा कि ये किसान नहीं बल्कि वामपंथी हैं. प्रज्ञा ठाकुर ने अपने बयान में कहा,
“ये किसानों के वेष में वामपंथी छिपे हैं। जो देश विरोधी लोगों को इकट्ठा करके किसानों को भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे लोगों को जल्द से जल्द जेलों में डालना चाहिए। ये देश के विरुद्ध खड़े हो जाते हैं। सिर्फ वामपंथी और कांग्रेसी आंदोलन में भाग ले रहे हैं। ये किसानों के वेष में आकर भ्रम फैला रहे हैं। कृषि कानूनों पर किसी भी तरह के सुधार की जरूरत नहीं है।”
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने टिकरी बॉर्डर पर शरजील इमाम के पोस्टर का मसला उठाया। उन्होंने आरोप लगाया कि एमएसपी, एएमपीसी और अन्य मुद्दे किसानों से संबंधित हैं, लेकिन ये पोस्टर किसान का मुद्दा कैसे हो सकते हैं। यह खतरनाक है और यूनियनों को इससे खुद को दूर रखना चाहिए। यह सिर्फ मुद्दों को हटाने और विचलित करने के लिए है।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को भी लगता है कि किसान आंदोलन को हाइजैक किया जा रहा है। उन्होंने आंदोलनकारियों के हाथों में उमर खालिद, शरजील इमाम जैसे लोगों की रिहाई की मांग वाले प्लेकार्ड्स होने के पीछे साजिश की बात कही।
प्रसाद ने कहा, ‘इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि टुकड़े-टुकड़े गैंग अजेंडे को टेकओवर करने की कोशिश कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि किसान संगठनों के विरोध का फायदा उठाने के लिए उनकी तस्वीरें प्रदर्शित की जा रही हैं। शायद ऐसे तत्वों की मौजूदगी के कारण ही सरकार के साथ बातचीत सफल नहीं हो रही है।
वहीं, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, “सरकार किसान संगठनों से बातचीत के लिए तैयार है। सरकार ने किसानों की कई मांगें मान ली हैं लेकिन जब बातचीत में उनकी मंशा प्रकट हुई कि शरजील इमाम जैसे लोगों की रिहाई हो। मुझे लगता है कि किसान संगठन की जगह अब आंदोलन देश को तोड़ने वाले हाथों में चला गया है।”
केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे ने बुधवार को दावा किया कि किसानों के विरोध-प्रदर्शनों के पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है। उन्होंने कहा कि अब किसानों को बताया जा रहा है कि नए कानूनों के कारण उन्हें नुकसान होगा।
उन्होंने कहा, “जो आंदोलन चल रहा है, वह किसानों का नहीं है। इसके पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है। इस देश में मुसलमानों को पहले भड़काया गया। (उन्हें) क्या कहा गया? एनआरसी आ रहा है, सीएए आ रहा है और छह माह में मुसलमानों को इस देश को छोड़ना होगा। क्या एक भी मुस्लिम ने देश छोड़ा?”
केंद्रीय मंत्री ने कहा,” वे प्रयास सफल नहीं हुए और अब किसानों को बताया जा रहा है कि उन्हें नुकसान सहना पड़ेगा। यह दूसरे देशों की साजिश है।” दानवे उपभोक्ता मामलों, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में राज्य मंत्री हैं।
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नेताओं के इन बयानों के बीच खुफिया सूत्रों के अनुसार किसान आंदोलन से जुड़ी एक रिपोर्ट सरकार को भेजी गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अल्ट्रा-लेफ्ट नेताओं और प्रो-लेफ्ट विंग के चरमपंथी तत्वों ने किसानों के आंदोलन को हाईजैक कर लिया है। जानकारी के मुताबिक इस बात के विश्वसनीय खुफिया इनपुट हैं कि ये तत्व किसानों को हिंसा, आगजनी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए उकसाने की योजना बना रहे हैं।
बता दें कि हजारों की संख्या में किसान दिल्ली और उसकी सीमाओं पर पिछले 17 दिनों से से डटे हैं। इस बीच मोदी सरकार और किसानों के बीच 5 चरणों में बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
केंद्र से बातचीत के बाद उन्हें संशोधन का एक प्रस्ताव सौंपा गया, लेकिन किसानों ने इसे खारिज कर दिया। इसके बाद से ही अब आंदोलन को लेकर कई तरह की बातें शुरू हो चुकी हैं। हाल ही में शरजील इमाम और उमर खालिद के पोस्टर दिखने के बाद भी सोशल मीडिया पर इस आंदोलन को लेकर सवाल उठाए गए थे। किसानों का कहना है कि सरकार उनके इस आंदोलन को कमजोर करने की हर कोशिश कर रही है।