न्यूज डेस्क
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली करारी शिकस्त के बाद सवालों के घेरे में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हैं। जाहिर है उनकी अगुवाई में दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा गया, तो सवाल उठेगा ही। चुनावों के दौरान उन्होंने राष्ट्रवाद , हिंदू-मुस्लिम, शाहीनबाग जैसे जुमलों से प्रचार का आगाज किया और उनके मंत्री, सांसद उनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मर्यादा की लकीर को तहस-नहस कर दिया।
दिल्ली चुनाव की हार पर अमित शाह ने अपनी बात रखी है। उन्होंने हार की वजह गिनाते हुए कहा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं को ‘गोली मारो’ और ‘भारत- पाकिस्तान मैच’ जैसे घृणा भरे भाषण नहीं देने चाहिए थे और संभव है कि इस तरह की टिप्पणियों से पार्टी की हार हुई।
अब सवाल उठता है कि आखिर अमित शाह कहना क्या चाहते हैं? उन्होंने कहा कि उनके मंत्री, सांसदों के आक्रामक बयान की वजह से दिल्ली में हार मिली। अब सवाल उठता है कि उनके नेताओं को अमर्यादित बयान देने का शह कहा से मिला?
वरिष्ठ पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं शाह का बयान सुना है। उनके बयान में डिप्लोमेसी झलक रही है। दिल्ली चुनाव शाह की अगुवाई में लड़ा गया। कर्ताधर्ता वही थे। विवादित बयान की नींव उन्होंने रखी। उनके मंत्री, सांसद, नेताओं ने तो कुछ ईंटें रखकर दीवाल खड़ी कर दी।
वह कहते हैं, जगजाहिर है कि भाजपा में मोदी-शाह के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, फिर नेताओं की इतनी मजाल की वह इतने बड़े-बड़े बयान दे देेंगे? उन्हें किससे शह मिली हैं उन्हें मालूम है। हां शाह बड़ी खूबसूरती से नेताओं के सिर पर ठीकरा फोड़कर खुद को बचा रहे हैं।
अमित शाह ने हार के कारणों को गिनाते हुए एक और महत्वपूर्ण बात कहा। उन्होंने कहा कि बीजेपी केवल जीत या हार के लिए चुनाव नहीं लड़ती है बल्कि चुनावों के माध्यम से अपनी विचारधारा के प्रसार में भरोसा करती है। तो क्या बीजेपी अपने मंसूबे में कामयाब हो गई?
इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र दुबे कहते हैं कि निश्चित रूप से बीजेपी अपने मंसूबे में कामयाब हुई है। बीजेपी की विचारधारा क्या है सभी को मालूम है। दिल्ली में अपना वोट प्रतिशत बढ़ाकर उसने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया। दिल्ली चुनाव परिणाम के बाद सोशल मीडिया पर लोग बंटे नजर आए। दिल्ली की जनता को मुफ्तखोर के साथ-साथ तमाम तरह की उपमाएं दी गई। देश दो भाग में बंटा नजर आया और यही बीजेपी की विचारधारा है।
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शाह के बयान पर वो कहते हैं, दरसअल शाह ने अपने नेताओं के आक्रामक बयान की निंदा कर अपने कुर्तें पर लगे दाग को साफ करने की कोशिश की है, क्योंकि जो भी गंदे बयान भाजपा नेताओं द्वारा दिए गए वे अमित शाह के इस बयान के बाद दिए गए कि इतनी जोर से ईवीएम दबाईये कि शाहीन बाग में करंट लगे। अब करंट लगने से आदमी हताहत ही होगा। पर भारी पराजय के दबाव में अब यह दर्शाना चाहते हैं कि वे इतने गंदे बयान के समर्थक नहीं है जितने उनके नेताओं ने दिए।
आठ माह पहले जब लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी को प्रचंड जीत हासिल हुई तो कहा गया कि यह अमित शाह की नीतियों की जीत है। उनकी मेहनत की जीत है, लेकिन उसके बाद देश के चार राज्यों में विधानसभा चुनाव हुआ और बीजेपी कहीं भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाई।
महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के बाद से ही केंद्रीय मंत्री अमित शाह पर सवाल उठने लगा था। देश में कोई भी चुनाव हो उसके अगुवा शाह ही होते हैं। महाराष्ट्र, हरियाणा में बीजेपी के लिए थोड़ा अच्छा रहा कि वह बहुमत से भले ही दूर रही लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन झारखंड और दिल्ली के चुनाव ने बीजेपी के चाणक्य की नीतियों पर सवाल खड़ा कर दिया है।
हालांकि शाह ने हार के कारणों को गिनाते हुए खुद को बचाए रखा, लेकिन जनता सब जानती हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि बिहार में शाह अपनी विचारधारा को ही बढ़ाने का काम करेंगे या वहां के स्थानीय मुद्दों को तव्वजों देंगे।
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