जुबिली न्यूज डेस्क
लम्पटगंज, एक ऐसा जिला, जहां चोर चोरी सिर्फ इसलिए करता है जिससे पुलिस विभाग को काम मिलता रहे। जहां लोग बीमार भी इसलिए होते हैं जिससे डॉक्टर की रोजी रोटी चलती रहे। ज्यादा पढ़ाई भी नहीं करते,जिससे देश की किसानी बची रहे। जहां हाईस्कूल पास सबल युवा दौड़ लगाकर फौज में भर्ती हो जाते हैं और एमए पास निर्बल बेरोजगारी भत्ता प्राप्त करते हैं। इश्कबाजी की बात करें जो जवानी में खून उछाल मारता है तो बुढ़ापे में हार्मोन। जहां हर लंपटबाज भविष्य में ठरकीपन को प्राप्त होता है। यहां राजनीति में प्रेम भले न मिले लेकिन प्रेम में राजनीति खूब मिलेगी। यहां घर दारू से कम दूध से ज्यादा बर्बाद होते हैं।
कुल मिलाकर स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रेम, राजनीति आदि की विसंगतियों पर आधारित लंपटगंज जिले की ऐसी कहनियाँ जिनके कहन और कथानक दोनों में व्यंग्य है। सारी कहानियों में सस्पेंस छिपा हुआ है। यानी अंत में कुछ ऐसा जो आप सोच नहीं रहे होंगे। आप उछल भी सकते हैं। यही इन कहानियों की विशेषता है। कसम लैमार्क की यूपी बोर्ड की प्रेक्टिकल परीक्षा से निकली कथा है तो घाटमपुर के इलेक्शन गांव में प्रधानी के चुनाव की अंतर्कथा है। ‘ हार्मोन जो न करवाये’ और’ फुन्नी दादा की प्रेम कहानी’ ठरकीपने की कहानियां हैं। लट्ठमार कवि सम्मेलन आज के मंचों की व्यथा कथा कहती है तो ‘बैंड बनाम बैंडेज’ एक झोलाछाप डॉक्टर की सक्सेस स्टोरी है।
लंपटगंज आपको गुदगुदाएगा, हंसाएगा, चुभेगा भी, आनंद भी देगा।
लंपटगंज के बारे में शीर्ष व्यंग्यकारों का मत..
गोपाल चतुर्वेदी
लंपटगंज में न निराशा का भाव है न उपदेश का। वो बारीकी से आस पास के पेशे और धंधे का गंभीर अध्ययन कर उसे कागज के कैनवास से कलम पार उकेरते हैं। न वो किसी के पक्ष में हैं न विपक्ष में। भारत तमाशबीनों का देश है। लंपटगंज में पंकज भी एक तमाशबीन हैं। बस, अंतर इतना है कि वह तमाशे कि तह में जाकर उसके किरदारों को उजागर करते हैं। उनकी हरकतों को कुछ नमक –मिर्च लगाकर बयान करते हैं। उनकी हर कथा में पाठक को जीवन की एक आध ऐसी अंतर्कथा विद्यमान मिलेगी।डॉ ज्ञान चतुर्वेदी, पद्मश्री
“पंकज प्रसून ने इन लंबी हास्य व्यंग्य कहानियों में सारी चुनौतियाँ ले डाली हैं। वे मानो स्वयं को सिद्ध करने निकले हैं। मेरा निवेदन है कि इन कथाओं को ध्यान से पढ़ें। पंकज ज़्यादातर स्वयं को सिद्ध कर पाने में सफल ही हुये हैं, यह मेरा आकलन है। आप अपना आकलन करें”
सुभाष चन्दर
आपसे अनुरोध जरूर करूँगा कि यदि आप एक ढर्रे पर लिखे व्यंग्यों से ऊब चुके हैं और विषय वस्तु और ट्रीटमेंट में कुछ नया ,कुछ खट्टा-मीठा ,कुछ तीखा पढ़ना चाहते हैं तो आप इस पुस्तक को अवश्य पढ़ कर देखे ।मेरा दावा है कि आप निराश नहीं होंगे।
मनोहर पुरी
पंकज प्रसून के राग दरबारी से आगे की कथा ‘ घाटमपुर के इलेक्शन’ में कह दी है