न्यूज डेस्क
हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन एक उत्सव के समान होता है। धूमधाम से पूरे विधि विधान के साथ बाल गोपाल का जन्म उत्सव मनाने की परंपरा है। मंदिरों के साथ-साथ जन्माष्टमी की धूम जेलों में भी खूब देखने को मिलती है। जेलों में कोई त्योहार शायद ही इतनी धूमधाम से मनाया जाता हो जितना जन्माष्टमी का त्योहार।
जेलों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने की तैयारियां कई दिन पहले से होने लगती हैं। जेल के कैदी और अधिकारी सभी रात भर जगकर कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं। यूपी समेत देश भर के कई जेलों में बड़े धूम-धाम से कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। लेकिन प्रदेश में एक ऐसा जेल भी है जहां जन्माष्टमी नहीं मनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश पूर्वी क्षेत्र में बिहार के बॉर्डर के पास कुशीनगर जिले की जेल में जन्माष्टमी मनाना मनहूस माना जाता है। इसके पीछे एक दर्दनाक कहानी है।
चर्चित कहानी के अनुसार, 30 अगस्त 1994 की वो काली रात जिस दिन कुशीनगर जिले के इतिहास में एक काला अध्याय भी जुड़ गया था। उन दिनों उत्तर-प्रदेश और बिहार के बॉर्डर कुशीनगर में जंगलपार्टी के डाकुओं का आतंक हुआ करता था। जिससे पुलिस और आम लोग खौफ खाते थे। 30 अगस्त को ही पुलिस को मुखबिर से एक सूचना मिली की स्थानीय कुबेरस्थान थाने के पचरुखिया घाट इलाके में जंगलपार्टी के डाकू एक बड़ी वारदात को अंजाम देंगे।
सूचना सटीक थी लिहाजा जिले के कप्तान ने स्थानीय कुबेरस्थान थाने के थानेदार और पड़ोसी थाने तरयासुजान के थानेदार को इसकी सूचना दी। उस वक्त अनिल पांडेय जिनकी गिनती सबसे तेज तर्रार दरोगाओं में हुआ करती थी। उन्हीं के पास तरया सुजान थाने की थानेदारी थी। लिहाजा विभाग के आला हाकिम से मिले आदेश के बाद अपने सबसे भरोसे मंद साथी नागेंद्र पांडेय और दूसरे हमराहियों के साथ डाकुओं को दबोचने निकल पड़े।
हालांकि इस घटना के वक्त उस गांव में रहने वाले लोगों की मानें तो जिस मुखबिर ने ये सूचना पुलिस को दी थी वह डाकुओं से मिल गया था। लिहाजा जो पुलिस डाकुओं के खात्मे के लिए निकली थी वह खुद ही उनके जाल में जाकर फंस गए। बताए गए स्थान पर जांबाज थानेदार अनिल पांडेय तो पहुंच गए लेकिन वहां उन्हें कोई भी नहीं मिला। पुलिस जिस मंसूबे से वहां पहुंची थी वह तो नहीं हो सका लेकिन जो किसी ने नहीं सोचा था वह हो गया।
जब अनिल पांडेय अपने साथियों संग नाव से बॉसी नदी पार कर रहे थे, तभी घात लगाए डांकुओं ने पुलिसपार्टी पर हमला बोल दिया और ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई। दरोगा अनिल पांडेय और उनके साथी अभी कुछ समझ पाते तबतक डाकुओं की गोली से नाविक छलनी हो चुका था, जिससे नाव अनियंत्रित होकर पलट गई और उसमें बैठे पुलिसवाले नदी में गोते खाने लगे।
इस बीच दो सिपाही और नागेंद्र पांडेय तैर कर बाहर आ गए लेकिन अनिल पांडेय को तैरना नहीं आता था और वह पानी के बीच फंस गए। अपने साथी नागेंद्र पांडेय को नदी पार देख बीच मजधार में फंसे अनिल पांडेय रोते हुए बोले ‘मित्र नागेंद्र तुम भी मेरा साथ छोड़ दोगे।’ यह बात उनके साथी नागेंद्र पांडेय को इतनी चुभी कि उसने बिना कुछ सोचे नदी में छलांग लगा दी। उसके बाद दोनों एक साथ नदी में समा गए। तभी से जिले की पुलिस लाइन और थानों में जन्माष्टमी मनाने की परम्परा बंद हो गई।
जय और वीरु की दोस्ती तो आपने रील रोल में खूब देखी होगी लेकिन अनिल पांडेय और नागेंद्र पांडेय की दोस्त रियल लाइफ में मिसाल थी। इलाके के लोगों की मानें तो दरोगा अनिल पांडेय को पानी से बहुत डर लगता था। नागेंद्र जैसे ही उन्हें बचाने नदी में कूदे उसी वक्त अनिल पांडेय ने उन्हें तेज से जकड़ लिया और नागेंद्र भी पानी के आगोश में फंस गए। जिससे न तो वह खुद बच सके और न ही अपने जिगरी यार को बचा सके और दोनों एक साथ इस दुनिया से रुखसत हो गए।
ये घटना वहां की पुलिस और लोगों के जेहन में आज भी जिंदा है, 30 अगस्त 1994 और 31 अगस्त 2018 लगभग 25 साल बीत चुके हैं, जब इन पुलिसकर्मियों की शहादत हुई थी तब भी बांसी नदी अपने ऊफान पर थी। इस दुखद घटना को 24 साल बीत चुके हैं लेकिन आज भी कुशीनगर पुलिस इसे मनहूस मानती है और श्री कृष्ण जन्माष्टमी नहीं मनाती है।।