Tuesday - 29 October 2024 - 1:20 AM

करोड़ों खर्च फिर भी क्षिप्रा मैली

रूबी सरकार

मध्यप्रदेश की क्षिप्रा की अविरलता एवं निर्मलता को लेकर अब तक करोड़ों रूपये खर्च किये गये, लेकिन नदी अविरल नहीं हुई, जिसका मुख्य कारण सरकार की मंशा और समाज की भागेदारी का अभाव है। 21वी सदी में जल संकट के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए जल साक्षरता की व्यापक आवश्यकता है।

क्षिप्रा नदी के कलकल बहने और उसमें खान नदी के प्रदूषण को कम करने की योजना व प्रयासों के परिप्रेक्ष्य में जल पुरूष राजेन्द्र सिंह के नेतृत्व में क्षिप्रा जल बिरादरी का गठन किया गया, जो क्षिप्रा को पुनर्जीवित करने के काम में लगे सभी लोगों को मिलाकर एक कार्ययोजना तैयार करेगा। सभी मिलकर नदी को पुर्नजीवित करने के लिए सामुदायिक स्तर से लेकर प्रशासनिक स्तर तक कार्य करेंगे। इस जल विरादरी में परमार्थ सेवा संस्थान के संजय सिंह भी शामिल होंगे।

यह भी पढ़ें : अंजामे गुलिस्ता क्या होगा?

हालांकि क्षिप्रा नदी को लेकर लोकनिर्माण विभाग के मंत्री सज्जन सिंह वर्मा बताते हैं कि उन्होंने विगत सालों में काफी प्रयास किये, जिससे क्षिप्रा नदी कलकल बहे और उसे साफ किया जा सके, लेकिन वे असफल रहे। उन्होंने माना, कि वे क्षिप्रा नदी में प्रदूषण की समस्या को दूर नहीं कर पाए। वर्मा मानते हैं, कि इसके लिए हम सब दोषी है। उन्होंने कहा, कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री की स्वीकृति से बजट में कटौती करके क्षिप्रा की सफाई की योजना बनाने का आदेश जारी किया है। अपने संकल्प को दोहराते हुए उन्होंने कहा कि वे क्षिप्रा को अविरल और निर्मल बनाकर रहेंगे।

इसी क्षिप्रा नदी को कलकल बहने और प्रदूषण मुक्त करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने पहल करते हुए खरगौन जिले के बड़वाह से नर्मदा नदी का जल लाकर इंदौर के पास क्षिप्रा के उद्गगम स्थल ग्राम उज्जैनी के कुण्ड में विसर्जित कर प्रदेश की पहली सबसे बड़ी नदी जोड़ो योजना का शुभारंभ इस उम्मीद के साथ किया था, कि नदी जोड़ो का पहला चरण 2014 में पूरा कर लिया जायेगा। साथ ही नदी जोड़ो परियोजना के पूरा होने पर प्रदेश के 80 शहरों में नर्मदा की कलकल ध्वनि सुनाई देगी।

यह भी पढ़ें : तो दीपिका का PR बैक फायर कर गया !

इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत पहले चरण में 4 नदियों कालीसिंध, पार्वती, क्षिप्रा और गंभीर में नर्मदा का पानी छोड़े जाने की बात की गई थी। इस तरह 5 नदियों का जल एक-दूसरे में समाहित होने से चारों नदियों में 450 क्यूबिग मीटर यानी प्रति सेकंड 18 लाख लीटर पानी छोड़ने की योजना को राज्य सरकार ने सैद्धान्तिक मंजूरी दे दी थी।

नदी जोड़ो नीति को पेश करते समय यह तर्क दिया गया था, कि इस परियोजना के लागू होने के बाद देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ की गंभीर समस्या और कुछ हिस्सों में अकाल की समस्या से निजात मिलेगी। लेकिन न तो क्षिप्रा कलकल-छलछल बहने लगी और न पूरे मालवा में हरियाली आई, बल्कि क्षिप्रा और मैली होती गई।

पूर्व मुख्यमंत्री ने 18 लाख हेक्टेअर सिंचाई का वादा भी किया था, लेकिन आज सरकार के पास सिंचाई के सही आंकडे भी उपलब्ध नहीं है । पहली ही ऐसी स्कीम थी, जो फेल हो गई। पूर्व मुख्यमंत्री ने इस तरह 27 रिवर लिंग बनाने की योजना बनाई थी। अब क्षिप्रा-2 योजना पर काम चल रहा है। पिछले दिनों क्षिप्रा की यह स्थिति हो गई थी, कि दर्शनार्थी नदी में नहा भी नहीं पाये, जिसके चलते कलेक्टर, कमिश्नर का स्थानांतरण कर दिया गया था।

इधर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने नर्मदा-पार्वती सोनकक्ष और भीलटदेव स्कीम को आगे बढ़ाने की दिशा में काम शुरू किया, लेकिन केंद्र से राशि आवंटित न होने से यह काम भी आगे नहीं बढ़ रहा है । हालत यह है, कि कहां तो 50 हजार करोड़ देने की बात कही गई थी, लेकिन 5 हजार करोड़ भी रिलीज नहीं कर पाये।

मैगसेस अवार्ड से सम्मानित राजेन्द्र सिंह बताते हैं, कि सरकारें जन कल्याण के मुद्दे पर संवेदनहीन हो चुकी हैं। 21वीं सदी के लिए सबसे बड़ा संकट है, जल संकट, लेकिन सरकारें उनसे कमाई करने में लगी हुई हैं। राजेन्द्र बताते हैं, कि कुम्भ व इस तरह के दूसरे धार्मिक आयोजन जो नदियों के किनारे लगते है उसका बहिष्कार होना चाहिए। उन्होंने सरकार से कहा, कि यदि हम नदियों को साफ नहीं कर सकते है तो हमें कोई हक नहीं है, कि हम किसी भी नदी के किनारे किसी कार्यक्रम का आयोजन करे। जब नदियों का पानी न पीने के लायक बचा है न ही आचमन लायक तो सरकार को चाहिए कि कुम्भ जैसे मेलों का आयोजन बंद कर दे।


वहीं जल जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह बताते है, कि क्षिप्रा सहित देश की 101 नदियों को अविरल बनाने के लिए जल जन जोड़ो अभियान सक्रिय है। उन्होंने कहा कि मानव के लालच ने नदियों से यह अविरलता एवं निर्मलता छीन ली है।

यह भी पढ़ें : …तो ईरान की गलती से गई 176 यात्रियों की जान

मध्यप्रदेश में नदियों की हालत यह है, कि मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश में बहने वाली बरूआ नदी, जो तालबेहट के बेतवा नदी से निकल कर जामनी नदी में मिलती है। यह नदी करीब 16 किलोमीटर लंबी है। इसमें पहले 12 चेक डैम बने थे, जिन्हें रेत माफियाओं ने तोड़ दिए। इसी तरह मध्य प्रदेश में बहने वाली बछेड़ी नदी छतरपुर के देवपुर से शुरू होकर धसान नदी में टीकमगढ़ में मिलती है। इस नदी में पानी नहीं रहता है। बालू खनन की वजह से नदी सूख गई है। नदी में चेक डेम थे, जो टूट चुके हैं। नए चेक डैम बनवाने का प्रस्ताव है। फिलहाल, बोरी बांध कर पानी रोका गया है।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com