जुबिली न्यूज डेस्क
कोटा में पिछले 10 सालों में 100 से ज़्यादा छात्र अपनी जान ले चुके हैं. इस साल अभी तक 25 छात्रों की मौत हो चुकी है, जो कि अब तक सबसे ज़्यादा संख्या है. पिछले साल ये आंकड़ा 15 का था. एक विश्लेषण के मुताबिक मरने वालों में ज़्यादातर पुरुष छात्र थे जो नीट की तैयारी कर रहे थे. कई छात्र गरीब और लोअर मिडिल क्लास परिवारों से थे.
एक आंकड़े के मुताबिक कोटा में ज़्यादातर छात्रों की उम्र 15 और 17 के बीच में है. उनके लिए शहर में अकेले रहना, परिवारों की उम्मीदें, हर दिन 13-14 घंटों की पढ़ाई, टॉपर्स के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा के दबाव के साथ रहना आसान नहीं. आदर्श के चाचा के मुताबिक़, इससे पहले उन्होंने कोटा में आत्महत्या के बारे में कभी नहीं सुना था और उन्होंने कभी भी आदर्श पर कोई दबाव नहीं डाला.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, भारत में साल 2021 में लगभग 13 हज़ार छात्रों ने आत्महत्या की थी. ये आंकड़े साल 2021 के आंकड़े से 4.5 प्रतिशत ज़्यादा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, हर साल करीब सात लाख लोग आत्महत्या करते हैं और 15-29 साल के उम्र में आत्महत्या मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण है.
कोविड भी एक वजह?
कोटा के साढ़े तीन हज़ार हॉस्टलों और हज़ारों मकानों में करीब दो लाख छात्र रहते हैं. कोटा में कई जिंदगियां थम गईं, लोग दुखी हैं और इस साल आत्महत्या की बढ़ी संख्या के लिए कोविड को भी ज़िम्मेदार बता रहे हैं. एक सोच है कि कोविड के दौरान छात्रों की पढ़ाई को काफ़ी नुकसान पहुंचा और जब वो कोटा पहुंचे तो बेहद कड़े मुकाबले के बीच कई छात्र निराशा का शिकार हो गए.
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक?
मनोचिकित्सक डॉक्टर एमएल अग्रवाल कहते हैं, “सभी के हाथ में स्मार्ट फोन आ गया. कुछ बच्चों ने उसका दुरुपयोग किया. उसकी वजह से बच्चों को इंटरनेट एडिक्शन हो गया. उसकी वजह से बच्चे बंक मारने लगे, वो पिछड़ने लगे. जब बच्चे पिछड़ जाते हैं, फिर डिप्रेशन में चले जाते हैं, फिर सुसाइड की ओर जाते हैं. यहां कोचिंग बड़ी तेज़ चलती है. एक दो चार दिन आपने बंक मार दिया तो फिर आप पढ़ाई को पकड़ नहीं पाते हैं.”
अगर एक बार आप 200-300 छात्रों से भरी कक्षा में पीछे छूट गए तो सिलेबस को वापस पकड़ना आसान नहीं और फिर स्ट्रेस बढ़ता जाता है. उसका असर टेस्ट में दिखता है जो और तनाव बढ़ाता है.
हेल्पलाइन और काउंसिलिंग
एक व्यापार संगठन के मुताबिक शहर की अर्थव्यवस्था पांच हज़ार करोड़ से ज़्यादा की है और ये अर्थव्यवस्था यहां आने वाले छात्रों पर निर्भर है. कोटा हॉस्टल एसोसिएशन प्रमुख नवीन मित्तल की मानें तो शहर में आत्महत्या के बढ़े मामलों के बावजूद व्यापार पर असर नहीं पड़ा है और छात्रों का कोटा आना जारी है.
मुकाबला कड़ा है और परिवारों का दर्द गहरा. आत्महत्याओं को रोकने के लिए शहर में कार्यक्रम हो रहे हैं, लोगों को मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूक करने की बातें की जा रही हैं, लेकिन आत्महत्याएं जारी हैं. कई परेशान छात्र शहर की एक होप हेल्पाइन पर कॉल करते हैं.
हेल्पलाइन काउंसिलर प्रमिला सखाला के मुताबिक, ”फ़ोन पर परेशान बच्चे बात करते-करते रोने लग जाते हैं. बहुत दुख होता है उनको देखकर. फिर उनके पेरेंट्स से बात की जाती है. हम उनको समझाते हैं वो बच्चों पर इतना दबाव क्यों डाल रहे हैं. क्या वो चाहते हैं कि उनका बच्चा डॉक्टर बने? अगर आपका बच्चा दुनिया में ही नहीं रहा तो वो क्या करेंगे?”
बाज़ारीकरण की क्या है भूमिका?
शिक्षाविद् उर्मिल बख्शी बच्चों की परेशानियों के पीछे कोटा के बढ़ते “बाज़ारीकरण” को ज़िम्मेदार मानती हैं. वो कहती हैं, “कोचिंग क्लासों में बच्चों की संख्या बहुत ज़्यादा होती है. टीचर्स बच्चों के नाम भी नहीं जानते. किसी क्लास में 300 और ज़्यादा बच्चे बैठते हैं. क्या वो उनका नाम जानते हैं? कोई किसी का नाम नहीं जानता. बच्चा एक दूसरे को दोस्त नहीं बना पाता है. बच्चा अकेला छूट जाता है. ये बहुत दुख की बात है.”
“पैसे पैसा, कितना पैसा. कितना पैसा चाहिए? इतना पैसा नहीं चाहिए कि हम बच्चों को ही खो दें. हमको बच्चों को नहीं खोना. हमें बच्चों को कुछ बनाना है. अच्छे इंसान बनाना है.”परिवारों के मुताबिक हर साल इंस्टीट्यूट की फ़ीस एक से डेढ़ लाख रुपए के बीच की होती है.
कोटा में कई जिंदगियां थम गईं, लोग दुखी हैं, लेकिन सपनों की उड़ान रुकी नहीं है. यहां 20-25 हज़ार रुपये महीना किराए के मकान हैं जहां उच्च वर्ग के छात्र रहते हैं, लेकिन ये मकान सब की पहुंच में नहीं. शहर के विज्ञान नगर में संकरे, अंधेरे कॉरीडॉर से होते हुए, सीढ़ियां चढ़कर एक मकान की दूसरी मंज़िल पर हम अर्नव अनुराग के कमरे में पहुंचे.
बच्चों के मन को समझने की जरूरत
जब हम कोटा में थे, तब हमें ख़बर मिली कि वहां के हॉस्टल में रह रही एक और लड़की ने आत्महत्या कर ली है. हॉस्टल के सभी लोग सदमें में थे. केयरटेकर ने कहा, “वो हमारी बेटी जैसी थी.”
इस छात्रा के पिता कोटा के रास्ते में थे जब फ़ोन पर उनसे बात हुई. उन्होंने बताया, ”बेटी ने कोटा में आत्महत्याओं का ज़िक्र किया था, जिस पर हमने बोला कि बेटा इन सब चीज़ों पर ध्यान मत दो.दो बेटी हैं हमारी, एक छोड़ कर चली गई.”
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राजस्थान पुलिस के कोटा स्टूडेंट सेल के इंचार्ज चंद्रशील ने बताया कि आत्महत्याओं को रोकने के लिए उनकी टीम लगातार हॉस्टल आदि जगहों पर जाते हैं और ये पता लगाने की कोशिश करते हैं कि क्या किसी छात्र के व्यवहार में कोई फ़र्क तो बदलाव तो नहीं दिख रहा. वो हॉस्टल वॉर्डन, खाना बनाने वाले लोगों से बात करते हैं.
छात्रों के अकेलेपन को दूर करने, उन्हें घर का खाना और माहौल देने के लिए कई बच्चों की मां उनके साथ यहां रहती हैं. जानकारों के मुताबिक़, ज़रूरी है कि मां-बाप बच्चों के मन को कुरेदें, उनसे बात करें, उनके साथ लंबा वक्त बिताएं ताकि ये बच्चे खुलकर समझा सकें कि उनके मन में क्या चल रहा है.