खजुराहो। पानी के ज्ञान के लिए भारत दुनिया का गुरू था। क्योंकि हमारे पूर्वजों का मामना था कि जल की बहने वाली धाराओं को स्वतंत्रापूर्वक बहने देना चाहिए तथा बादल से निकलने वाली हर बूंद को रोककर अपने जीवन को चलाइये लेकिन लाभ के लालच में लोगों ने पानी को लाभ का धंध बना दिया। यह बात शुक्रवार को स्थानीय झनकार होटल में परमार्थ समाज सेवी संस्थान द्वारा आयोजित दो दिवसीय छोटी नदी बचाओ राष्ट्रीय कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने कही।
उन्होंने कहा कि मानव जब जोर लगाता है तो पत्थर में भी पानी आ जाता है हम सबका एक सामुदायिक प्रयास दुनिया की तश्वीर बदल सकता है। बताया कि हमें अपने गांवों और कस्बों की ताल-तलैया और छोटी नदियों की याद होगी, जो कभी स्वच्छ जल का बड़ा स्रोत हुआ करती थीं। लेकिन धीरे-धीरे अब ये छोटी नदियां और तालाब राजस्व दस्तावेजों से गायब हो गये हैं।
सरकार की जिम्मेदारी है कि जल स्रोतों को चिहिंत करना, सीमांकन करना और राजपत्र में उसका उल्लेख करना। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने भी 2001 में एक आदेश पारित कर सरकार को यह निर्देशित किया था। बड़ी नदियों को हम तब तक अविरल और निर्मल नहीं बना सकते हैं, जब तक कि सभी सहायक नदियों के संरक्षण के लिए कोई बड़ी मुहिम नहीं चलाई जाती। इस मुहिम की जरूरत आज इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि कई छोटी नदियां, तालाब, पोखर और प्राकृतिक जलस्रोत खत्म होते जा रहे हैं।
उन्होंने समुदाय को आवाहन किया कि इसके लिए समाज को मिलकर प्रयास करने होंगे। कार्यक्रम का शुभारम्भ मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन कर किया गया। तत्पश्चात रमेश भाई के जोशीले गीत जागो रे प्रेम के पथ पर चलकर मूल न कोई हारा, हिम्मत से पतवार संभालों फिर क्या दूर किनारा से किया गया। इससे पहले परमार्थ के सचिव एवं जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक डा0 संजय सिंह ने कार्यशाला के उद्देश्यों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि हम सब आपस में बैठकर जल संरक्षण के काम को और अधिक प्रभावशाली बनायेंगे तथा इस कार्यशाला से निकलकर आये अनुभवों का दस्तावेजीकरण कर आने वाली नई सरकार के समक्ष प्रस्तुत करेंगे।
उन्होंने कहा कि इससे जल जीवन मिशन कार्यक्रम को सफल बनाने में मदद मिलेगी। क्योंकि बहुत सारे क्षेत्र ऐसे हैं जहां छोटी नदियों से ही घरों तक पानी पहुंचाया जा सकता है। कहा कि अब समय आ गया है बिना किसी आरोप प्रत्यारोप के समाज व सरकार को मिलकर इस देश की नदियों के संरक्षण करने का कार्य शुरू कर देना चाहिए। जिसके उदाहरण दुनिया के दूसरे देशों में भी देखने को मिल रहे हैं।
पदम श्री से सम्मानित लक्षमन सिंह जी ने कहा कि छोटी नदियों को बचाने के लिए बरसात के पानी की एक-एक बूंद को बचाना होगा साथ ही इस काम को और आगे बढ़ाने के लिए युवाओं को तैयार करना होगा वही इस काम को आगे ले जायेंगे। पदम श्री से सम्मानित उमाशंकर पाण्डेय ने कहा कि छोटी नदी से ही बड़ी नदी बनती हैं इसके लिए सबसे पहले हर खेत पर मेढ़, हर मेढ़ पर पेड़ की पद्धति को अपनाना होगा। उन्हांेने कहा कि बड़ी नदियों को हम तब तक अविरल और निर्मल नहीं बना पाएंगे।
जल सहेली पुष्पा ने कहा कि परमार्थ समाज सेवी संस्थान द्वारा जल बचाने की जो सीख हमें दी गई उसे हम गांव-गांव तक लेकर जा रहे हैं लोगों को गीत के माध्यम से पानी बचाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। हमारा लक्षय एक लाख जल सहेली तैयार कर इस मुहिम को पूरे बुन्देलखण्ड क्षेत्र में फैलाना है।डब्ल्यूएचएच के भारत के प्रमुख राकेश कटल ने कहा कि आज हमें इस छोटी नदी बचाओं कार्यशाला में सहभागिता करके बहुत अच्छा लगा। आप लोगों ने जो इस कठिन समय में छोटी नदियों को बचाने की मुहिम छेड़ी है वह काफी सराहनीय कदम है। यहां से मिलने वाले ज्ञान को हम पूरे देश तक ले जायेंगे।
परमार्थ की शिवानी सिंह ने अपने प्रस्तुतीकरण में परमार्थ समाज सेवी संस्थान द्वारा जल सहेलियों के सहयोग से किये जा रहे प्रयास का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र की 6 छोटी नदियों को जल सहेलियों ने जिंदा किया। इससे न केवल इस क्षेत्र में 40 प्रतिशत तक सिचाई की सुविधा बढ़ी बल्कि उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी हुई है।
हिमालयन रिवर काउंसिल की चेयरमैन इन्दिरा खुराना, गांधीवादी चिंतक रमेश शर्मा, केद्रीय भूजल विभाग के पूर्व केन्द्रीय निदेशक सुभाष चन्द्र सिंह, पर्यावरणविद गिरीश पाठक, गौतम सोलंकी सीएसपीसी, कावेरी देवीयान आर्ट आफ लिविंग, महेन्द्र मोदी पूर्व डीजीपी उत्तर प्रदेश, प्रो विभूति राय लखनऊ विश्वविद्यालय, पुष्पेन्द्र भाई समाज सेवी, राणा भाई पर्यावरणविद, प्रो रंजीत सिंह, सुरेश भाई आदि ने अपने विचार व्यक्त किये।