Tuesday - 29 October 2024 - 1:31 PM

जानिए क्या हुआ जब मछलियों को दी गई डिप्रेशन की मेडिसिन

जुबिली न्यूज डेस्क

फ्लोरिडा यूनीवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह जानने की कोश्शि की कि इंसानों को दी जाने वाली दवाओं का जलीय जीवों पर क्या असर होता है। इसके लिए उन्होंने अनूठा प्रयोग किया।

अक्सर दवाएं पानी में बहा दी जाती है। वैज्ञानिकों ने यही पता करने की कोशिश की कि जो डिप्रेशन की दवाएं पानी में बहा दी जाती है उनका पर्यावरण पर क्या असर होता ह्रै।

इसके लिए वैज्ञानिकों ने क्रेफिश या कर्क मछलियों के रहने वाले पानी में डिप्रेशन दूर करने वाली दवाएं डाली। फिर क्या वैज्ञानिकों ने देखा कि मछलियों का व्यवहार बदल गया। वे ज्यादा साहसी हो गईं और अपने छिपने की जगह से ज्यादा तेजी से बाहर आने लगीं व खाना खोजने में ज्यादा समय बिताने लगीं।

सांइस पत्रिका ईकोस्फीयर में यह शोध प्रकाशित हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं ने पाया कि इंसानी दवाएं जलीय जीवों के खान-पान की पूरी व्यवस्था व पारिस्थितिकी को प्रभावित करती हैं।

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इस विषय पर पहले हुए रिसर्च में वैज्ञानिकों ने जानवरों को सीधे-सीधे डिप्रेशन की दवाओं के टीके ही लगा दिए थे, लेकिन तब यह संदेह जताया गया था कि जानवरों को उनके रोजमर्रा की गतिविधियों से इतनी मात्रा में दवा नहीं मिल सकती।

अब अमेरिका स्थित फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चरल साइंसेज की टीम ने नए तरीके से यह शोध किया है।

इस रिसर्च के मुख्य शोधकर्ता एलेग्जेंडर राइजिंगर ने बताया, “हमारा काम साबित करता है कि कुदरती माहौल में भी एक चुनिंदा एंटी डिप्रेसेंट क्रेफिश का व्यवहार बदल सकता है।”

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डिप्रेशन होने पर दी जाने वाली दवाएं, जिन्हें एंटी डिप्रेसेंट्स कहा जाता है, जो सीधे बह जाती हैं या मानव शरीर से निकलती हैं, वे पर्यावरण में मिल जाती हैं। लीक होते सेप्टिक सिस्टम या जल संवर्धन संयंत्र, जिनमें उन्हें छानने की क्षमता नहीं होती, एंटी डिप्रेसेंट के पर्यावरण में मिल जाने का साधन बनते हैं।

कैसे हुआ शोध

फ्लोरिडा विश्वविद्यालय की टीम ने अपने शोध के लिए लैब में ही ताजे पानी की झील जैसा माहौल तैयार किया था। इस शोध के लिए कुछ मछलियों को दो हफ्ते तक एंटी डिप्रेसेंट्स के कुदरती स्तर जितने पानी में रखा गया जबकि कुछ को ताजे पानी में।

मछलियों को एक शेल्टर में रखा गया था जिसका मुंह वाई के आकार का था और अंदर भूल-भुलैया थी। यानी एक छोटा मुंह जो दो रास्तों पर खुलता था। एक रास्ते पर खाने के रसायनिक संकेत छोड़े गए जबकि दूसरे में एक अन्य कर्क मछली के होने के।

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जो मछलियां एंटी डिप्रेसेंट मिले पानी में रह रही थीं, वे अपने शेल्टर से जल्दी निकलीं और भोजने की खोज में ज्यादा देर तक बाहर रहीं, लेकिन उन्होंने उस रास्ते से परहेज किया जहां दूसरी मछली के होने के संकेत थे।

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