नेशनल डेस्क
इस घटना कुछ दिन पहले ही मई 1947 में महात्मा गाँधी ने मनु से कहा था कि उनकी यह इच्छा है कि वो उनके अंतिम वक़्त की गवाह बने। वर्ष 1943-44 में मनु को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गिरफ़्तार किया गया था। जब मनु को गिरफ्ता किया गया था उस वक़्त उनकी आयु सिर्फ 14 वर्ष थी और मनु उस समय के कैदियों में सबसे कम आयु की थी। यही पर उनकी मुलाक़ात महात्मा गांधी से हुई थी और लगभग एक साल गाँधी जी के साथ जेल में व्यतीत किया था।
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जेल में ही मनु ने डायरी लिखना शुरू कर दिया था और यह डायरी 12 खंडों में भारत के अभिलेखागार में आज भी संरक्षित हैं। ये सभी डायरी गुजराती भाषा में लिखी गई थी। जिसमे गांधी के भाषणों और पत्रों का भी जिक्र प्रमुखता से किया गया है। इतिहासकार के अनुसार जब गांधी जी को गोली लगी तो वो मनु पर गिर गए थे। उस वक़्त उनके साथ हमेशा रहने वाली उनकी डायरी अचानक उनके हाथों से छूट गई थी। इसके बाद से मनु ने अपने साथ डायरी रखना बंद ही कर दिया था। मनु ने कई किताबें लिखीं और अपने जीवन के आखिरी पलों में भी वो गांधी के बारे में बातें करती रहीं। उनका निधन 1969 में 42 साल की उम्र में हो गया।
गांधी और उनके सहयोगियों के साथ उनका जेल का जीवन पूरी तरह से उदासीन नहीं थी। मनु ग्रामोफोन पर संगीत सुनती थीं। लंबी सैर पर निकलती थीं। वो कस्तूरबा के साथ कैरम खेलती थीं। उन्होंने इस दौरान चॉकलेट भी बनाना सीखा था। डायरी में कुछ दुख भरी घटनाओं का भी ज़िक्र है। उन्होंने दो मौतों के बारे में लिखा है, जिन्होंने गांधी को अंदर से तोड़ कर रख दिया था। ये मौतें थीं महादेव देसाई और कस्तूरबा गांधी की। महादेव देसाई गांधी के निजी सचिव थे। फ़रवरी 1944 में कस्तूरबा गांधी की मौत हो गई थी। इसके पहले के कुछ दिन काफ़ी दुख भरे थे। एक रात कस्तूरबा अपने पति से कहती हैं कि वो काफ़ी दर्द में हैं और “ये मेरी आख़िरी सांसें हैं।” गांधी कहते हैं, “जाओ, लेकिन शांति के साथ जाओ, क्या तुम ऐसा नहीं करोगी?”