Saturday - 26 October 2024 - 3:59 PM

एक राजा जो बन गया बुन्देलों का भगवान

डॉ अभिनन्दन सिंह भदौरिया

यूँ तो बुंदेलखंड में अनेक राजाओं ने राज किया लेकिन कोई भी राजा हरदौल के जैसा बुंदेलखंड के आम जन के मन का राजा न बन सका, लाला हरदौल को बुंदेलखंड के लोंगो द्वारा राजा नहीं बल्कि भगवान माना जाता है और इतिहास में राजा तो कई रहे लेकिन भगवान कोई नहीं बन सका।

आज भी बुंदेलखंड में विवाह के अवसर पर लाला हरदौल भगवान के रूप में पूजे जाते है, बुंदेलखंड के प्रत्येक गाँव के बाहर लाला हरदौल का मंदिर सहज ही मिल जाता है। लाला हरदौल बुंदेलों के भगवान कैसे बने ये इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज है……

जिस समय भारत मे मुगल बादशाह अकबर का शासन चल रहा था, उस समय बुन्देलखण्ड की राजधानी ओरछा में सम्राट वीर सिंह जूदेव शासन कर रहे थे सोलह सौ आठ ईस्वी में वीर सिंह जूदेव की तीसरी संतान के रूप में लाला हरदौल का जन्म हुआ, हरदौल के ज्येष्ठ भ्राता का नाम जुझार सिंह था, हरदौल के एक बहन भी थी जिसका नाम कुंजावती था वीर सिंह जूदेव लाला हरदौल को राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। लेकिन पिता के निधन के बाद हरदौल ने अपने बड़े भाई जुझार सिंह को राज्य सौंप कर अपने त्याग का परिचय दिया।

हरदौल जुझार सिंह से ज़्यादा पराक्रमी थे और कई बार मुगलों से भी भिड़ जाते थे। हरदौल ने शाहजहाँ की ओर से ओरछा में धर्म प्रचार के लिये आये फ़ारसी पठान मेहंदी हसन को मार दिया। इससे हरदौल के शौर्य की चर्चा चारों ओर धीरे धीरे फैलने लगी। 1627 में मुगलो का भीषण आक्रमण ओरछा में हुआ, हरदौल ने इस महासमर में अब्दुल्ला खां, महावत खां को घायल कर मार गिराया और विजय हासिल की।

इस समय हरदौल की आयु 19 वर्ष थी हरदौल की ख्याति से जहाँ एक ओर मुगल खुश नहीं थे वहीं जुझार सिंह मन ही मन हरदौल से ईर्ष्या करते थे, जुझार सिंह के दरबार के कुछ मुस्लिम अधिकारियों ने जुझार सिंह के मन मे हरदौल के प्रति संदेह पैदा करना शुरू किया। और हरदौल के मृत्यु को मूर्त रूप देने के लिये षड़यंत्र करना प्रारंभ कर दिया, हरदौल अपनी भाभी चम्पावती को माँ के रूप में प्यार करता था।

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मुस्लिम अधिकारियों ने जुझार सिंह को हरदौल और चम्पावती के अवैध संबंधों की झूठी कहानी में फ़साना शुरू क़िया, और इस तरह उन्होंने राजा जुझार सिंह से चम्पावती द्वारा हरदौल को विष देने का निश्चय करवा लिया। जुझार सिंह ने चम्पावती से हरदौल और उसके अवैध संबंधों के बारे में चर्चा की और कहा कि यदि तुम निर्दोष हो तो आज भोजन में विष मिला के खिला दो। चम्पावती ने जुझार सिंह को बहुत बहुत समझने की कोशिश की लेकिन जुझार सिंह नहीं माना।

चम्पावती ने भोजन में जहर मिलाया और हरदौल के सामने प्रस्तुत किया ऐसा भी कहा जाता है कि रानी ने हरदौल से इस बारें में सब कुछ बता दिया था लेकिन फिर भी हरदौल ने अपने और भाभी माँ के रिश्ते की पवित्रता एवम रक्षा के लिए जानबूझ कर जहर मिला भोजन ग्रहण कर लिया। इस तरह 1631 ईस्वी में हरदौल की मृत्यु हो गयी ओरछा नगरी शोकमग्न हो गयी चारों ओर हाहाकार मच गया। प्रकृति ने भी अकुलश और पुनीत हृदय हरदौल की मृत्यु का शोक मनाया। और इस तरह ओरछा का पराभव (विनाश) प्रारंभ हो गया। उनकी बहन कुंजा वती को भी हरदौल की मृत्यु का बहुत दुख हुआ।

लाला हरदौल और चम्पावती की ये कहानी सन 1875 में विंसेट स्मिथ की किताब पर आधारित है लेकिन सच्चाई कुछ और है ऐसा लगता है कि विंसेट स्मिथ को ये कहानी किसी ने सुनाई और उसने किताब में बिना जाँच पड़ताल किये कहानी ज्यों की त्यों लिख दी, स्मिथ ने उक्त घटना का जिक्र करते हुये सत्यता की जाँच बिल्कुल भी नहीं की, उसने ये भी पता लगाने की कोशिश नहीं कि हरदौल के जन्म के समय वीर सिंह देव 66 वर्ष के थे, वहीं जुझार सिंह 45 वर्ष के वहीं चम्पावती की उम्र 39 वर्ष थी। चम्पावती का लड़का विक्रमाजीत 19 वर्ष तथा विक्रमाजीत का लड़का हरदौल के जन्म के कुछ दिनों बाद ही पैदा हुआ था, जुझार सिंह के हरदौल से मतभेद थे लेकिन उसने यह कभी नहीं सोचा था कि उसकी पत्नी के हरदौल से अवैध संबंध हैं। इस संबंध में एक जो कहानी प्रचलित है वो गलत है। हरदौल के संबंध में एक मज़ेदार कथा प्रचलित है।

हरदौल के जन्म के कुछ दिनों बाद जब उनकी माँ का देहांत हो गया तब उन्हें दूध पिलाने का दायित्व कमलकुमारी पर था, जब हरदौल को दूध पिलाने के लिये लाया जाता था तब बकायदा सूचित किया जाता था कि कक्का जू पधार रहे है, कमलकुमारी ससम्मान घूँघट डालकर खड़ी हो जाती थी और हरदौल को गोद में लेकर दूध पिलाकर तथा ससम्मान विदा करती थी। वात्सल्य का इतना विलक्षण उदाहरण कहीं देखने को नहीं मिलता है। घटनाओं से यह निश्चित है कि हरदौल की मृत्यु जहर देने से हुई थी और जहर जुझार सिंह ने ही दिलाया था। लेकिन कारण कुछ और था।

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जब शाहजहाँ मुगल शहंशाह बना तो उसने तख्तपोशी रस्म के लिये जुझार सिंह को भी निमंत्रण भेजा। हरदौल, बुंदेला, चम्पत राय और सरदारों ने आगरा जाने का विरोध किया, उस समय जुझार सिंह अपनी पारिवारिक समस्याओं से परेशान थे और वह भाइयों के विद्रोह को दबाने के लिये सत्ता का सहयोग चाहते थे। जिसकी आशंका थी अंततः वही हुआ शाहजहाँ ने जुझार सिंह की कैद करने की योजना बना ली लेकिन जुझार सिंह को योजना का पता चल गया और वो वहाँ से भाग निकले। शाहजहाँ ने महावत खां को जुझार सिंह के पीछे लगा दिया, महावत खां सतारा नदी के तट पर पहुँच गया वहाँ पहले ही हरदौल ने अपनी सेना लगा रखी थी भयंकर युद्ध हुआ लेकिन महावत खां को कुछ हासिल नहीं हुआ। अंत में महावत खां ने जुझार सिंह को लालच देकर शाहजहाँ के यहाँ जाने के लिए तैयार कर लिया, अंत में जुझार सिंह को अपनी रिहाई के बदले में फिरौती के रूप में 15 लाख रुपये, 40 हाथी तथा करेरा का परगना देना पड़ा। इसके अलावा दक्षिण में मुगल सेना के साथ जाने की नौकरी भी करनी पड़ी।

सन 1629 में खानजहान लोधी भी जुझार सिंह की तरह शाहजहाँ की कैद से बचने के लिये अपनी सेना सहित आगरा से भाग आया। मुगल सेना उसे रोक नहीं पाई वह बुन्देलखण्ड की सीमा से होता हुआ दक्षिण की ओर चला गया, उस समय जुझार सिंह दक्षिण में थे, ओरछा में हरदौल थे खानजहान लोधी बुंदेलों का सहयोगी रहा इसलिए हरदौल ने उसे नहीं रोका और अपने राज्य की सीमा से जाने दिया, शाहजहाँ को जुझार सिंह पर बरसने का मौका मिल गया। उसने जुझार सिंह को हुकुम दिया कि कैसे भी हो खानजहान लोधी को जिंदा या मुर्दा उसके सामने पेश करो, मजबूर हो कर जुझार सिंह ने अपने लड़के विक्रमाजीत को खान जहान लोधी को पकड़ने के लिये भेजा। काफी परेशानी के बाद विक्रमाजीत ने खानजहान के भाई दरियाखान व उसके लड़के को मारने में सफलता प्राप्त की। इस युद्ध में 200 बुंदेला सैनिक भी मारे गये जुझार सिंह का ऐसा मानना था कि यह सब उन्हें हरदौल के कारण झेलना पड़ा और उन्होंने हरदौल को अपने रास्ते से हटाने का निर्णय लिया।

लाला हरदौल की मृत्यु के पश्चात उनकी बहन कुंजावती ने अपनी पुत्री का विवाह किया जिसमें कुंजावती के समक्ष ऐसी परिस्थितियां आयी जिसके चलते कुंजावती परेशान हो उठी। तब लाला हरदौल ने अपनी बहन को स्वप्न दिया और बहन से शादी में भात लेकर आने को कहा और लाला हरदौल ने अपनी मृत्यु के पश्चात शादी के रस्म के तय समय पर पहुँच कर बहन का दुःख दूर किया। इन्ही सब विशेषताओं के कारण राजा हरदौल को बुंदेलखंड में आज भी भगवान के रूप में विवाह के शुरूआत में याद किया जाता है और उनसे शादी सफल होने की कामना मांगी जाती है।

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(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)

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