जुबिली न्यूज डेस्क
हरियाणा में बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई है। आलम यह है कि हर दस में से चार लोग बेरोजगार हैं। इस समस्या से निपटने के लिए खट्टर सरकार ने एक नया रास्ता निकाला है।
बेरोजगारी दूर करने के लिए खट्टर सरकार ने निजी कंपनियों में 75 फीसदी आरक्षण स्थानीय लोगों को देने का फैसला किया है।
नए घटनाक्रम में निजी क्षेत्र में 75 फीसदी नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने संबंधी अध्यादेश के प्रारूप को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। इसके तहत स्थानीय आबादी की बेरोजगारी की समस्या को प्राथमिकता दी गई है।
फिलहाल यह कानून 50 हजार रुपये मासिक वेतन तक की नौकरियों पर ही लागू होगा। नये कानून के मुताबिक अब सभी कंपनियों को तीन महीने के भीतर सरकार को बताना होगा कि उनके यहां 50 हजार तक की तनख्वाह वाले कितने पद हैं और इन पर हरियाणा से कितने लोग काम कर रहे हैं।
कंपनियों को यह जानकारी सरकार के पोर्टल पर देनी होगी। कंपनी को हर तीन महीने में इसकी स्टेटस रिपोर्ट सरकार को देनी होगी।
मालूम हो भाजपा ने 2019 के चुनाव में स्थानीय लोगों की बेरोजगारी दूर करने के लिए वादा किया था कि उनकी सरकार उन उद्योगों को विशेष सुविधा प्रदान करेगी तो 95 प्रतिशत रोजगार उन्हें देगी।
फिलहाल सरकार के इस घोषणा को विपक्ष से लेकर जानकार इसे पूरी तरह से राजनीतिक बता रहे हैं। उनका कहना है कि भाजपा सरकार का यह कदम उन कोशिशों से बिलकुल विपरीत है जिसके तहत राज्य में निवेश और रोजगार सृजन के लिए काम किया जा रहा है।
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केंद्र के एक सर्वे के मुताबिक निजी कंपनियों में 97 प्रतिशत स्टाफ 50 हजार से कम तनख्वाह लेने वाला होता है। इससे स्थानीय लोगों को ज्यादा नौकरी के मौके मिलेंगे।
फिलहाल ऐसा कानून बनाने वाला हरियाणा एकमात्र राज्य नहीं है। इससे पहले आंध्र प्रदेश ने 2019 में इसी तरह का कानून बनाने की कोशिश की थी, लेकिन संवैधानिक आधार पर चुनौती मिलने के बाद सरकार इसे अमल में नहीं ला पाई।
इस मामले में सेंटर फॉर इंप्लायमेंट स्टडीज के रवि श्रीवास्तव ने बताया कि संविधान में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। यही वजह है कि ज्यादातर सरकारें इसकी वकालत तो करती हैं पर इस तरह का कदम उठाने से गुरेज करती हैं।
रवि ने कहा कि यह भारत की लेबर मार्केट के लिए ठीक नहीं होगा। लेबर के काम की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह पर जाने से राज्यों के बीच मौजूद वित्तीय व भौगोलिक असमानता काफी हद तक दुरुस्त होती है।
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रवि आगे कहते हैं, 80 के दशक के बाद से सरकारें नौकरी पर कम ध्यान दे रही है। सरकारी कंपनियों में नौकरियां वैसे भी कम सृजित हो रही हैं। इसी वजह से आरक्षण का दायरा निजी कंपनियों की तरफ बढ़ रहा है।
उनका कहना है कि इसके गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं। इस तरह के राज्यों में सबकुछ नौकरशाही ही तय करती है। इससे हरियाणा में लाइसेंस परमिट राज फिर से अपना सिर उठा सकता है। सरकारी मशीनरी के भी इससे भ्रष्ट होने के चांस बढ़ेंगे, क्योंकि कानून बनेगा तो उसमें सेंध लगाने के रास्ते भी बनेंगे।
रवि ने कहा कि हरियाणा जैसे औद्योगिक रूप से समृद्ध राज्य का इस तरह का कदम बिहार यूपी के लिए परेशानी का सबब बनेगा। वहां की ज्यादातर लेबर काम की तलाश में हरियाणा जैसे राज्यों का रुख करती है।
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