उत्कर्ष सिन्हा
जैसे जैसे दिल्ली में चुनावों की गर्मी बढ़ रही है वैसे वैसे इसकी रोचकता भी बढ़ती जा रही है । एक तरफ मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अपनी सियासी गोटियाँ बिछा चुके हैं तो दूसरी तरफ उन्हे घेरने में जुटी कांग्रेस और भाजपा ने भी केजरीवाल को कड़ी चुनौती देने का मन बनाया हुआ है ।
हालाँकि फिलहाल का सच तो ये है कि केजरीवाल को चुनौती देने के लिए कांग्रेस और भाजपा के पास कोई उस कद का नेता नहीं है लेकिन प्रत्याशी की तलाश में दोनों पार्टियों की सोच एक ही बिन्दु पर जाती दिखाई दे रही है ।
सियासी हलको में उड़ती खबर को माने तो कांग्रेस और भाजपा केजरीवाल के खिलाफ बेटियों को उतारने वाली हैं । भाजपा जहां दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज की बेटी बाँसुरी स्वराज के नाम पर विचार कर रही है तो वहीं कांग्रेस भी दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय शीला दीक्षित की बेटी लतिका दीक्षित को मैदान में उतारने को तैयार है ।
ये बात दीगर है कि अगर इन्हे टिकट मिलता है तो इन दोनों बेटियों का राजनीति में पहली बार प्रवेश होगा ।
शीला और सुषमा दोनों दिल्ली की राजनीति को लंबे समय तक प्रभावित करती रही है । सुषमा दिल्ली की सीएम भी रही और बतौर विदेश मंत्री उनकी मानवीयता से भारी छवि ने सबको प्रभावित किया। शीला दीक्षित की पकड़ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे 15 सालों तक दिल्ली की सीएम बनी रही और दिल्ली के कायाकल्प करने का श्रेय भी उन्हे दिया जाता है ।
भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप हमेशा लगाती रही है लेकिन उसके कई बड़े नेताओं के बच्चे भी राजनीति में उतर चुके हैं । दिल्ली के पूर्व सीएम साहब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा न सिर्फ सक्रिय राजनीति में हैं बल्कि इस बार वे मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार भी माने जा रहे हैं । बाँसुरी के मैदान में आने के बाद राजनीति में परिवारवाद के खिलाफ भाजपा के रुख पर भी सवाल खड़े होंगे ।
बाँसुरी पहली बार जनता की नजर में तब आई थी जब सुषमा स्वराज की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके सर पर हाँथ फेर कर उन्हे सांत्वना दी थी ।
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शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित पहले से ही राजनीति में हैं , वे दिल्ली से संसद रह चुके हैं। जब शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री थी उसी वक्त संदीप ने दिल्ली में सांसद का चुनाव लड़ा और जीता था लेकिन लतिका अब तक सियासत से दूर रही हैं।
अरविन्द केजरिवाल नई दिल्ली से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार हैं । नई दिल्ली की सीट अभिजात्य वर्ग की सीट मानी जाती है। इस इलाके में सरकारी अफसरों की बड़ी तदात वोटर है । भाजपा और कांग्रेस का सोचना है कि अरविन्द के गरीबों के वोट बैंक पर नई दिल्ली का अभिजात्य वर्ग भारी पड़ सकता है और इसी लिए बाँसुरी और लतिका का नाम भी चर्चा में आया है ।
ओपिनियन पोल्स के आधार पर माना जा रहा है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की वापसी में कोई बड़ी दिक्कत नहीं है लेकिन विपक्षी दल भी इतनी आसानी से हार मानने को तैयार नहीं है इसलिए वे केजरीवाल को उनकी सीट पर बड़ी चुनौती देने का मन बनाए हुए हैं।
हालकि केजरीवाल ने भी महिलाओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है । कामकाजी महिलाओं को मुफ़्त मेट्रो और बसों में सफर उनका एक कामयाब दांव माना जा रहा है जिसकी असल परीक्षा चुनावों में होने वाली है ।
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बाँसुरी और लतिका के जरिए ये पार्टियां सहानुभूति वाले वोटों को भी आधार बनायेंगी । सुषमा और शीला दोनों के मुरीद पूरी दिल्ली में हैं , इसलिए न सिर्फ एक सीट बल्कि पूरी दिल्ली में इसका असर हो सकता है ।
अगर ऐसा हुआ तो दिल्ली में चुनावी जंग हाई प्रोफाईल भी होगी और रोमांचक भी ।
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