शनिदेव को यम, काल, दु:ख, दारिद्रय तथा मंद कहा जाता है। किसी भी परेशानी, संकट, दुर्घटना, आर्थिक नुकसान के होने पर यह मान लेते है कि शनि की अशुभ छाया पड़ी है।
भगवान शनिदेव की नाराजगी और प्रसन्नता दोनों ही खतरनाक मानी जाती है क्योंकि अगर वह अपने भक्तों से नाराज या प्रसन्न हो गए तो वह सीधे उन्हें देख लेंगे और तब भक्त का नाश तय है।
शनिदेव प्रसन्न रहें, इसके लिए लोग शनि की पूजा करते हैं। लेकिन शनिदेव कि पूजा के समय कुछ बातों का ध्यान आपको अवश्य रखना चाहिए। ताकि शनि की कुदृष्टि आप पर ना पड़ने पाएं। शनि की पूजा के लिए शास्त्रों में कुछ खास नियम बताए गए हैं।
शनिदेव की उपासना से पहले इन बातों का रहें ध्यान :-
- सूर्य उदय के पहले और सूर्यास्त के बाद ही शनिदेव की पूजा की जानी चाहिए।
- शनिदेव की मूर्ति या प्रतिमा कभी घर में नहीं रखनी चाहिए। उनकी पूजा या तो मंदिर में करें अन्यथा मन में स्मरण कर घर में उन्हें पूजें।
- शनिदेव को जल या तेल चढ़ाने के लिए कभी भी किसी अन्य धातु का प्रयोग न करें। उन्हें हमेशा लोहे के पात्र में ही जल या तेल का अपर्ण करें। तांबे का प्रयोग तो भूल कर भी न करें।
- जब भी शनिदेव पर तेल चढ़ाएं याद रखें वह उन पर ही गिरे न की आसपास बिखरने पाए।
- शनिदेव को लाल रंग की कोई चीज न चढ़ाएं। न फूल न कपड़ा बल्कि उन्हें हमेशा काले रंग से जुड़ी चीजें ही अर्पित करें।
- शनिदेव को तेल जब भी चढ़ाएं उसमें काला तिल जरूर हो। खाली तेल नहीं चढ़ाया जाता।
- शनिदेव की पूजा करते समय कभी सीधे से उनका दर्शन नहीं करना चाहिए। साइड से उनका दर्शन करें और पूजा भी।
- शनिदेव के पूजा वहीं जा कर करें जहां वह शिला के रूप में विराजमान हों।
- शनिवार को पीपल के पेड़ में जल और दीपक जलाएं। लेकिन ये काम शनिवार को करें।
- शनिदेव को हमेशा तिल या सरसों का तेल ही चढ़ाएं और इसी का दीपक भी जलाएं।