माना जाता है कि काशी मोक्ष नगरी हैै. यहाँ मरेे तो सीधे स्वर्ग का रास्ता खुलता है .भगवान शिव की नगरी काशी (बनारस) में हर साल लाखों की संख्या में लोग अपने पाप धोने आते हैं तो हजारों मुक्ति पाने। लोगों का मानना है कि तीनों लोकों से न्यारी काशी में निवास करने वाले लोगों को मोक्ष मिल जाता है।
गंगा घाटों में सबसे मशहुर मणिकर्ण घाट जहां दाह संस्कार होता है हर दिन वहां कम से कम 200 लोगों का अंतिम संस्कार होता है। माना जाता है कि मरने के बाद अगर काशी में किसी के शव का अंतिम संस्कार किया जाये तो उसके सारे पाप कट जाते है और उसे मोक्ष मिल जाता है।
मोक्ष का मतलब है जन्म और मृत्यु के चक्र से बाहर निकलना। सफेद कफन और फूलों से ढके मत देह राख में बदल जाता हैं जिन्हें अस्थियों के रूप में नदी में बहा दिया जाता है। घाट पर डोम (श्मशान का व्यवस्थापक) मरने वालों के परिजन को आग देते हैं जिससे चिता में आग जलाई जाती है। इस आग के लिये परिजनों को डोम को मुंह मांगी किमत देनी पड़ती है।
कई लोग अपने जीवन के आखिरी दिनों को काशी में मृत्यु का इंतजार करते हुये बिताते हैं। इनमें देश ही नहीं विदेशों से आये लोग भी हैं। कुछ अपनी खुशी से यहां रहने आते है तो कुछ परिवार के बुरे बर्ताव के कारण यहां अपनी बची जिंदगी बिताते हैं। इनमें से कुछ को गंगा के किनारे बने वृद्धाश्रमों में जगह मिलती है, जहां वे गंगा के तट पर अंतिम संस्कार का सपना देखते हैं। कुछ किराये के घरों में रहते हुये आखिरी सांस लेते हैं।
मुक्ति भवन
ऐसे लोगों के लिये काशी लाभ मुक्ति भवन बनाया गया है। इस भवन में सिर्फ उन्हीं लोगों को जगह मिलती है जिनके जीवन के कुछ ही दिन शेष बचे होते हैं। यहां रहने के लिए हर दिन करीब 75 रुपये देने पड़ते हैं। रोजाना की आरती के लिए एक बुजुर्ग पुजारी आते हैं जो आरती के बाद यहां रहने वालों पर गंगा जल छिड़कते हैं। थोड़ा ज्यादा पैसा खर्च करने वाले लोगों के लिए एक गायक मंडली भी है जो उनके लिए भजन गाती है।
मुक्ति भवन 1908 में शुरू हुआ था औऱ अब तक यहां करीब 15000 लोग अपनी अंतिम सांस ले चुके हैं जिनका गंगा के घाट पर अंतिम संस्कार किया गया।
डेथ होटल
औपनिवेशिक दौर की एक पुरानी इमारत में चलने वाले इस होटल में 12 कमरे हैं। हर महीने करीब 20 लोग यहां भी अपना आखिरी वक्त बिताने आते हैं।
बदलते दौर की काशी
पहले यहां मुक्ति भवन जैसे और भी गेस्ट हाउस हुआ करते थे लेकिन कमाई के लिये आज सामान्य होटलों में बदल दिए गए हैं। क्योंकि यहां आने वाले सैलानी इनमें रहने के लिए अच्छे पैसे देते हैं। बदलते दौर की काशी में मुक्ति भवन जैसे जगह भले ही कम हुये हैं लेकिन आज भी मुक्ति भवन में आ कर मरने की चाहत रखने वाले लोगों की कमी नहीं है।
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