Tuesday - 29 October 2024 - 3:32 AM

कर्नाटक में सारा खेल पार्टी व्हिप का है

सुरेद्र दुबे 

कर्नाटक में पिछले कई दिनों से कुमार स्‍वामी सरकार का विश्‍वासमत प्राप्‍त करने का खेल बड़े ही रोचक व अजीबो-गरीब तरीके से चल रहा है। कर्नाटक में जेडीएस व कांग्रेस की मिलीजुली सरकार है जो कांग्रेस के 16 विधायकों के पाला बदल लेने के कारण अल्‍पमत में चल रही है। वैसे तो तकनीकी रूप से कांग्रेस के विधायकों ने दलबदल कानून से बचने के लिए पार्टी नहीं बदली है।

पर उनका दिल भाजपा के साथ है इसलिए इन विधायकों ने विधानसभा की सदस्‍यता से इस्‍तीफा दे दिया है। इनकी चाल यह थी कि विधानसभा से इस्‍तीफा देने के कारण ये लोग दलबदल कानून की परिधि में नहीं आएंगे और उपचुनाव होने पर भाजपा की कृपा से मंत्री बन जाएंगे। भाजपा ने इनको ये भी भरोसा दे रखा था कि उपचुनाव के पहले ही इन्‍हें एमएलसी बनाकर या अन्‍य तरीके से मंत्री व उसके समकक्ष कोई पद पहले ही दे दिया जाएगा।

पर राजनीति की शतरंज में कब प्यादा सीधे राजा को चुनौती देने लग जाएगा और कब घोड़ा ढाई घर चलने के बजाय पांच घर चलने लगेगा, ये किसी को नहीं पता होता है क्‍योंकि यहां शतरंज के खेल के नियम लागू नहीं होते हैं बल्कि नियम अपने सुविधा से बनाए जाते हैं और फिर शतरंज का राजनैतिक खेल खेला जाता है।

जब कांग्रेस के बागी विधायकों ने देखा कि विधानसभा स्‍पीकर रमेश कुमार उनके इस्‍तीफों को न तो स्‍वीकार कर रहे हैं और न ही अस्‍वीकार कर रहे हैं तो इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने पहले तो इन बागी विधायकों से कहा कि वे आज ही शाम छह बजे तक स्‍पीकर के सामने उपस्थि‍त होकर तथा स्‍पीकर को कहा की वह इनके बारे मे निर्णय लेकर दूसरे दिन कोर्ट को सूचित करें।

बस उसी दिन से कर्नाटक संविधान विरोधी कार्यों की शुरूआत हो गई। संविधान के तहत स्‍पीकर विधानसभा कार्यवाही को संचालित तथा दलबदल कानून के तहत विधायकों को योग्‍य या अयोग्‍य ठहराने का सर्वोच्‍च अधिकारी है। पर स्‍पीकर ने सुप्रीम कोर्ट से टकराव लेने के बजाए हीलाहवाली का रवैया अपनाया और कोर्ट से कहा कि विधायकों ने किन परिस्थितियों में इस्‍तीफा दिया है इस सबकी जांच में समय लगेगा। इसलिए जल्‍दबाजी में कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता।

उनके इस कथन को बाद में सुप्रीम कोर्ट ने स्‍वीकार किया और अपने अंतरिम आदेश में कहा कि स्‍पीकर विधायकों की योग्‍यता या अयोग्‍यता तथा दलबदल कानून के तहत उन्‍हें अयोग्‍य ठहराए जाने जैसे निर्णय लेने के लिए स्‍वतंत्र हैं। इस संबंध में कोर्ट उनको कोई आदेश नहीं दे सकता। पर एक पच्चड़ लगा दिया कि कांग्रेस विधायकों को इस विश्‍वास मत में भाग लेने या न लेने के लिए बाध्‍य नहीं किया जा सकता। बस यहीं से कर्नाटक में तू डाल-डाल मैं पात-पात का खेल शुरू हो गया।

कुमार स्‍वामी ने विधानसभा में विश्‍वास मत तो पेश कर दिया है पर उस पर वोटिंग कब होगी इस पर सिर्फ अटकलें लगाई जा सकती हैं। अब बगैर किसी संवै‍धानिक अधिकार के राज्‍यपाल वजुभाई वाला ने स्‍पीकर रमेश कुमार को 18 जुलाई को दोपहर डेढ़ बजे तक विश्‍वास मत पर मतदान कराने का आदेश दे दिया। स्‍पीकर कहां मानने वाले थे उन्‍हें तो सरकार बचाना है इसलिए उन्‍होंने राज्‍यपाल की अनसुनी कर दी। पर इससे क्‍या होता है राज्‍यपाल महोदय ने दूसरी डेड लाइन देदी कि शाम छह बजे तक मतदान करा दीजिए।

संवैधानिक व्‍यवस्‍था के अनुसार, राज्‍यपाल विधानसभा में कार्यवाही कैसे संचालित की जाए, इस संदर्भ में कोई आदेश नहीं दे सकता है। स्‍पीकर को विधानसभा के मामले सार्वभौम सत्ता प्राप्‍त है और ये बात राज्‍यपाल भी जानते होंगे परंतु कभी-कभी राजनीतिक मजबूरियां बड़े-बड़े संवैधानिक पदों पर विराजमान महानुभाव भी ऐसी गलतियां करते रहते हैं, जिसकी उनसे अपेक्षा नहीं की जा सकती है।

हां, राज्‍यपाल प्रदेश में संवैधानिक संकट होने के बारे में अपने रिपोर्ट जरूर राष्‍ट्रपति को भेज सकते हैं और फिर अगर केंद्र सरकार उचित समझे तो विधानसभा भंग करने का निर्णय ले सकती है। परंतु ये कदम सरकार इसलिए नहीं उठाना चाहती है क्‍योंकि इससे इसका एक राष्‍ट्र एक चुनाव का सपना टूट जाएगा। क्‍योंकि विपक्ष इसी तरह की अप्रत्‍यशित स्थितियों के मदे नजर एक राष्‍ट्र एक चुनाव का विरोध कर रहा है।

एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने बागी कांग्रेस विधायकों को पार्टी व्हिप से मुक्‍त कर संविधान के दसवें शेड्यूल का मतलब ही खत्‍म कर दिया गया है। इसी के तहत पार्टियों को व्हिप जारी करने और सदस्‍यों को उसे मानने के लिए बाध्‍य होने की व्‍यवस्‍था है। दलबदल कानून का मूल भी यही है, जो विधायक जिस पार्टी से जीतेगा उसे उस पार्टी के आदेशों को मानना होगा और वह यदि ऐसा नहीं करेगा तो उसकी सदस्‍यता चली जाएगी।

इस संदर्भ में ये व्‍यवस्‍था जरूर है कि अगर दो तिहाई विधायक पार्टी छोड़कर कोई अलग गुट बना लेते हैं तो वह दलबदल कानून के तहत अयोग्‍य नहीं ठहराए जाएंगे। इसी तर्क को लेकर कांग्रेस पार्टी सोमवार को सुप्रीम कोर्ट जाने वाली है। वहां उसकी गुहार होगी कि दलबदल कानून के तहत पार्टियां को व्हिप जारी रखने के अधिकार को बहाल रखा जाए।

स्‍पीकर से भी ये अपेक्षा की जाती है कि वह सदन की कार्यवाही का संचालन निष्पक्ष व संवैधानिक व्‍यवस्‍था के अनर्गत करे। परंतु स्‍पीकर रमेश कुमार ऐसा करते नहीं दिख रहे हैं। बागी विधायकों के इस्‍तीफे स्‍वीकार करने के बाजए वह इस प्रयास में लगे मालूम दे रहे हैं कि पहले बागी विधायक व्हिप का उल्लंघन करें और उसके बाद वह इस पर कार्रवाई करें।

जाहिर है इसका सीधा फायदा कुमार स्‍वामी सरकार को ही मिलेगा। क्‍योंकि बागी विधायक अयोग्‍य घोषित होकर विधानसभा के शेष कार्यकाल तक इधर-उधर भटकने के बजाए व्हिप का पालन करना पसंद करेगा। अगर बागी विधायक अयोग्‍य घोषित हो जाते हैं तो उन्‍हें संभावित भाजपा सरकार कोई भी पद नहीं सौंप पाएगी,  तो फिर विधायक बागी ही क्‍यों बने मूल पार्टी में ही वापस लौट जाएं जो उन्‍हें मंत्री पद देने का वादा कर रही है।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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