सुरेंद्र दुबे
कर्नाटक में भाजपा तथा कांग्रेस-जेडीएस के बीच शह और मात का खेल कई दिनों से जारी है। जहां भाजपा की कोशिश है कि वह सदन में बहुमत साबित करने के लिए 224 सदस्यीय विधानसभामें 113 सदस्यों का जुगाड़ कर ले। वहीं, हरदनहल्ली देवगौड़ा कुमारस्वामी मुख्यमंत्री पद का त्याग करके भी कांग्रेस जेडीएस गठबंधन को बनाए रखना चाहते हैं।
उनकी कोशिश है किे भले ही वे मुख्यमंत्री न रहें और कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष सिद्धारमैया के पास मुख्यमंत्री की कुर्सी चली जाए पर भाजपा के बीएस येदियुरप्पा मुख्यामंत्री न बनने पाए। कुमारस्वामी को ऐसा लगता है कि एक बार अगर बीएस येदियुरप्पा के हाथ में सरकार गई तो फिर भाजपा बड़ी संख्या में कांग्रेस-जेडीएस खेमे में सेंध लगाने में कामयाब हो जाएगी और फिर भाजपा से सत्ता छीनना बड़ा मुश्किल हो जाएगा।
संकट की इस घड़ी में राहुल गांधी मौन हैं और यह उनकी राजनैतिक मजबूरी भी है। सोनिया गांधी भी खुले रूप से शह और मात की शतरंज में शामिल नहीं हो पा रही हैं। एक तरफ कांग्रेस पार्टी में गैर गांधी अध्यक्ष की तलाश की मुहिम जारी है तो दूसरी ओर कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस सरकार पर संकट के बादल मण्डरा रहे हैं। जब सोनिया गांधी और राहुल गांधी कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं, तो कांग्रेस के दिग्गज नेता भी कोई पहल करने से कतरा रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी की हालत बिना ड्राइवर की रेल गाड़ी जैसी हो गई है, जब कोई ड्राइवर ही नहीं है तो रेलगाड़ी किस तरफ जाएगी। इसी गाड़ी में सवार कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष सिद्दारमैया कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने के लिए दांव पर दांव चले जा रहे हैं।
सिद्दरमैया पहले भी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री पद दिये जाने के पक्ष में नहीं थे परंतु महागठबंधन के तमाम नेताओं के दबाव व सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बाद वह कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए बेमन से राजी हो गए थे।
कर्नाटक सरकार में कांग्रेस कोटे के 22 और जेडीएस कोटे के 12 मंत्री हैं, जिस समय सरकार का घटन हुआ था उस समय भी सिदधारमैया कि मुख्यमंत्री के लिए लार टपक रही थी। परंतु भाजपा को सत्ता को दूर रखने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने जेडीएस से हाथ मिलाकर कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी।
तभी से सिद्धारमैया इस घात में थे कि कब मौका मिले और कुमारस्वामी को हटा कर वह स्वयं मुख्यमंत्री बन जाए। राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस में उत्पन्न स्थिति सिद्धारमैया को अपनी चालें चलने के लिए सबसे मुफीद समय लगा।
कांग्रेस पार्टी के सभी 22 मंत्रियों ने कर्नाटक सरकार से इस्तीफा दे दिया है। साथ ही जेडीएस के भी सभी मंत्रियों ने अपना इस्तीफा कुमारस्वामी को सौंप दिया है। माना जा रहा है कि कुमारस्वामी भी इस्तीफा दे सकते हैं और कर्नाटक की गठबंधन सरकार को बचाने के लिए किसी ऐसे नेता को दोनों दल आगे कर सकते हैं जो बागी विधायकों अपने साथ लेकर चल सके। इसके अलावा बागी विधायकों को मनाने के लिए उन्हें मंत्रिपद का लालच भी दिया जा सकता है।
इससे पहले कांग्रेस पार्टी के 11 विधायकों और जेडीएस के तीन विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। साथ ही खबर आ रही है कि कांग्रेस के सात और विधायक अपना इस्तीफा दे कर बागी खेमे में जा सकते हैं। पहले 11 बाकी विधायकों को मंत्री बनाने की योजना थी, पर अब इनकी संख्या बढ़कर 18 बताई जाती है। इसके अलावा निर्दलीय विधायक नागेश ने अपना मंत्रीपद छोड़ दिया है और बीजेपी को समर्थन देने का एलान कर दिया है।
इस समय सारा खेल सिद्धारमैया व येदियुरप्पा के बीच चल रहा है। आज ये मामला लोकसभा में भी उठा जहां भाजपा पर कर्नाटक सरकार में तोड़फोड़ करने का आरोप लगा, जिसका खंडन करते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि कर्नाटक मामले से भाजपा का कोई लेना देना नहीं है।
उन्होंने इन आरोपों का भी जोरदार तरीके से खंडन किया कि उनकी पार्टी ने कर्नाटक सरकार गिराने के लिए किसी तरह की हॉर्सट्रेडिंग की है। उन्होंने कहा कि इस्तीफों की शुरूआत राहुल गांधी ने की है और उन्हीं का अनुसरण कर कांग्रेस के विधायक इस्तीफे दे रहे हैं।
आइये अब समझने की कोशिश करते है कि कर्नाटक की 224 सदस्यीय विधानसभा में किस पार्टी की कितनी हैसियत है। इस समय भाजपा के 105 विधायक है, जो उन्हीं के साथ हैं अब एक निर्दलय विधायक नागेश, जो कुमारस्वामी सरकार में मंत्री थे और अब इस्तीफा देकर भाजपा समर्थन देने की घोषणा कर चुके हैं। इस तरह खुले तौर पर भाजपा के पास 106 विधायक हैं और उसे विधानसभा में बहुमत प्राप्त करने तथा सरकार बनाने के लिए 113 विधायकों की जरूरत है।
कांग्रेस के 18 विधायक विधानसभा से इस्तीफा दे चुके हैं और इन्हीं विधायकों के भाजपा के पाले में जाने या कहें भाजपा द्वारा खरीद लिए जाने की चर्चा राजनैतिक गलियारे में है। अगर इन 18 विधायकों का इस्तीफा और जेडीएस के जिन तीन विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया है उनके इस्तीफे अध्यक्ष स्वीकार कर लेते हैं तो विधानसभा में विधायकों की संख्या घटकर 203 रह जाएगी।
यानी कि भाजपा को सरकार बनाने के लिए कुल 102 विधायकों की दरकार होगी, जबकि 105 विधायक तो भाजपा के अपने ही हैं। कहते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है इसलिए भाजपा कुछ और सदस्यों से इस्तीफा दिलाकर या अन्य किसी तिकड़म से इतने विधायक इकट्ठा कर लेना चाहती है कि उसे किसी भी स्थिति में फजीहत का सामना न करना पड़े।
जुबिली पोस्ट के पाठकों को याद होगा कि मई 2018 में कर्नाटक में जब सरकार बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई तो भाजपा की अधिक सीटें होने के कारण भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने का निमंत्रण मिला। जोड़तोड़ व धनबल के धनी येदियुरप्पा ने भाजपा आलाकमान को अस्वस्त किया कि वह हरहाल में अपना बहुमत सिद्ध कर लेंगे।
परंतु येदूरप्पा बहुमत नहीं जुटा पाए इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा जिसके कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विशेष रूप से तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की बड़ी किरकिरी हुई। यह पहला मौका था जब अमित शाह जो सरकार गिराने और बनाने में सिद्धहस्त माने जाते हैं, उन्हें मुंह की खानी पड़ी। इसलिए इस बार भाजपा कोई गलती नहीं करना चाहती। इसीलिए सरकार को गिराने और नई सरकार बनाने में फूंक-फूंक कर कदम उठा रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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