राजीव ओझा
बसपा सुप्रीमो मायावती डॉ. भीमराव आंबेडकर के आदर्शों और सिद्धांतों का अनुसरण कर राजनीति के इस मुकाम तक पहुंची हैं। मायावती अनुसूचित जातियों के साथ ही मुस्लिम वोटबैंक को भी आकर्षित करने की लगातार कोशिश कर रहीं हैं।
सीएए, एनआरसी का विरोध और अदनान सामी को नागरिकता देने का विरोध इसी रणनीति का हिस्सा है। लेकिन मायावती जिस दलित-मुस्लिम राजनितिक गठजोड़ की बात करती हैं उस पर डॉ भीमराव आंबेडकर का भरोसा बिलकुल नहीं था।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने पाकिस्तान मूल के गायक अदनान सामी को भारत की नागरिकता देने पर कहा कि जब केंद्र सरकार अदनान सामी को भारत की नागरिकता और पद्मश्री से सम्मानित कर सकती है तो वहां जुल्म-ज्यादती के शिकार बाकी के मुसलमानों को भारत में पनाह क्यों नहीं दे सकती? उन्होंने केंद्र सरकार से एक बार फिर नागरिकता संशोधन कानून पर विचार करने को कहा है।
अगर मायावती की सलाह मान भी ली जाए तो सवाल उठता है कि यह कैसे सिद्ध होगा कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांगलादेश से भागकर आने वाला मुस्लिम शरणार्थी
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धार्मिक प्रताड़ना की वजह से आया है या फिर बेहतर जीवन की तलाश में अवैध तरीके से भारत मे घुसा है। जिस तरह मायावती वंचितों और अनुसूचित जातियों की प्रभावशाली नेता हैं उसी तरह डॉ भीमराव आंबेडकर और जोगेन्द्रनाथ मंडल आजादी के पहले भारत के वंचित वर्ग के प्रभावशाली नेता थे।
1940 में मुस्लिम लीग ने भारत के टुकड़े कर मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बनाने की आवाज उठानी शुरू की और दो-तीन साल के भीतर इस मांग ने बहुत जोर पकड़ लिया। इनके नेता जिन्ना थे। 1942 में हिन्दू अनुसूचित जाति की राजनीति उफान पर थी। 1942 में भीमराव आंबेडकर ने शेड्यूल कास्ट फेडरेशन बनाया। उस समय जोगेन्द्रनाथ मंडल इस फेडरेशन के सबसे प्रभावशाली नेता थे। लेकिन डॉ आम्बेडकर और जोगेन्द्रनाथ मंडल की मुसलमानों के बारे में सोच अलग थी।
हिन्दू और मुसलमानों को अलग अलग जीवन धाराएं मानते थे आंबेडकर
भीमराव आंबेडकर, हिन्दू और मुसलमानों को अलग अलग जीवन धाराएं मानते थे। उनका मानना था कि इस्लाम की नजर से एक सच्चा मुसलमान कभी भी भारत को अपनी मातृभूमि नहीं मान सकता और किसी भी हिन्दू को अपना भाई-बंधू नहीं मान सकता सकता।
वर्तमान सन्दर्भ में भारत के नागरिक मुसलमानों के बारे में डॉ. अम्बेडकर की यह सोच सही नहीं बैठती। लेकिन घुसपैठियों को भी नागरिकता देने की मांग करने वालों को देख यही लगता है कि ऐसे लोगों के बारे में डॉ आंबेडकर का आकलन गलत नहीं था।
दूसरी तरफ जोगेंद्र मंडल समाज को केवल राजनितिक और धार्मिक आधार पर देखते थे। उनका मानना था कि अधिकतर अनुसूचित जातियां और मुसलमान आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए हैं इस लिए एक समान हैं। इस कारण दोनों मिल कर एक राजनितिक ताकत बन सकते हैं। उनकी इसी सोच का फायदा मुस्लिम लीग ने उठाया और 1943 में मुस्लिम लीग ने जोगेंदर मंडल की तरफ सहयोग का हाथ बढाया। जोगेंद्रनाथ मंडल ने अपने सभी प्रभावशाली नेताओं के साथ लीग का समर्थन कर दिया।
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मुस्लिम लीग ने आश्वासन दिया कि पकिस्तान में हिन्दू अनुसूचित जातियों को सामान्य लोगों से से भी ज्यादा अधिकार होंगे। जोगेंद्र नाथ मंडल को लगता था कि मुसलमान कभी भी अपने देश के टुकड़े करने को तैयार न होंगे। लेकिन जब बंटवारा हो गया उसके बाद भी जिन्ना और मुस्लिम लीग का भरोसा कर जोगेंद्र नाथ मंडल पकिस्तान चले गये और पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने।
पाकिस्तान बनने के बाद ही पाकिस्तान में अनुसूचित जाती के हिन्दुओं पर भयंकर अत्याचार शुरू हो गया। जोगेन्द्रनाथ मंडल को अहसास हो गया कि डॉ भीमराव आंबेडकर ठीक कहते थे। इसके अपवाद भी हैं। लेकिन मायावती पाकिस्तान के अत्याचार से परेशान हो कर भारत की शरण में आये हिन्दुओं को, जिनमें बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति के लोग हैं, नागरिकता देने के साथ मुसलमान घुसपैठियों को भी शामिल करने की बात कर रहीं हैं।
मायावती की यह बात तो समझ आती है कि वह मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने के लिए भारत में अवैध ढंग से रह रहे मुस्लिमों के प्रति नरम रवैया रखती हैं और हिन्दू शरणार्थियों के साथ उनको भी नागरिकता देने की बात कर रहीं। मायावती को कोई भी रणनीति बनाते समय डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचार और पाकिस्तान में दलित और अन्य हिन्दुओं के साथ हुए और अब भी हो रहे अत्याचार को जरूर ध्यान में रखना चाहिए।
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(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)