प्रमुख संवाददाता
लखनऊ. कानपुर में दस पुलिसकर्मियों की शहादत की इनसाइड स्टोरी बहुत दहलाने वाली है. विकास दुबे ने अपने घर दबिश देने आ रही पुलिस टीम पर हमले की ऐसी व्यूह रचना की थी जिससे बचकर निकल पाना पुलिस अधिकारियों के बस की भी बात नहीं थी.
उत्तर प्रदेश के जाने-माने अपराध संवाददाता विश्वदीप घोष ने जुबिली पोस्ट को बताया कि पुलिस को अपने घर तक वाहनों से पहुँचने से रोकने के लिए विकास दुबे ने सड़क को जेसीबी लगाकर रोक दिया था और पूरे इलाके की लाईट बंद करवा दी थी.
पुलिस अधिकारी जब अपने वाहनों से उतरकर पैदल ही विकास के घर के पास पहुँच गए तो विकास दुबे की छत के अलावा उसके सामने वाले घर की छत से एक साथ पुलिस टीम पर फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस टीम में शामिल डिप्टी एसपी ने जब विकास के सामने वाले घर में घुसकर हमलावरों को पकड़ने की कोशिश की तो छत पर मौजूद बदमाशों में से तीन बदमाश नीचे उतरे और डिप्टी एसपी के सर में असलहा सटाकर गोली मार दी.
विकास दुबे बड़ा अपराधी है. इस पर गंभीर धाराओं में 60 मुकदमे हैं. इसने थाने के भीतर राज्यमंत्री की गोली मारकर हत्या कर दी थी और इसके बाद भी पुलिस ने ही उसके खिलाफ गवाही नहीं थी.
श्री घोष ने बताया कि पुलिस टीम जिस थाना क्षेत्र में दबिश देने गई थी उस थाना क्षेत्र का थानेदार ही पुलिस टीम के पीछे-पीछे था जबकि उसे आगे होना चाहिए था क्योंकि इलाका उसका समझा हुआ होगा.
विकास दुबे और उसके साथियों ने पुलिस टीम पर छतों से जो फायरिंग की थी उससे पुलिस अधिकारियों की लाशें अलग-अलग जगहों पर गिरी थीं जिसे फायरिंग बंद होने के बाद बदमाशों ने विकास दुबे के कैम्पस में जमा किया था. लाशों को एक दूसरे के ऊपर रखा गया. इसके बाद उन्हें जलाने की तैयारी की गई थी ताकि सारे साक्ष्य भी मिट जाएँ लेकिन इसी बीच इस पुलिस टीम की मदद के लिए दूसरी टीम के वहां पहुँचने का सिग्नल मिला और बदमाश वहां से फरार हो गए.
विश्वदीप घोष ने इस तरह की घटनाओं के लिए पुलिस सिस्टम में आये बदलाव को ज़िम्मेदार ठहराया. उनका कहना है कि पहले के दौर में जिले के पुलिसकर्मी पुलिस कप्तान को रिपोर्ट करते थे. पुलिस कप्तान का फैसला फाइनल माना जाता था. कप्तान डीआईजी को, डीआईजी आईजी को और आईजी डीजीपी को रिपोर्ट करता था. अब तो थानेदार भी सीधे आईजी और डीआईजी से बात कर लेता है. थानेदार बड़े पुलिस अधिकारियों की गुड बुक्स में शामिल हो जाता है. ऐसे में पुलिस कप्तान की सुनवाई कम हो गई है, ऐसे में सिस्टम कमजोर होगा ही.
कानपुर की घटना के पीछे पुलिस और राजनीति का नेक्सस है. विकास दुबे सत्ता पक्ष से भी जुड़ा था और दो क्षेत्रीय पार्टियों में भी उसकी पहुँच थी. इसका इतना खौफ था कि यह खुद और इसकी पत्नी सिर्फ नामांकन करके चुनाव जीत जाते थे क्योंकि इनके खिलाफ कोई पर्चा भरने ही नहीं आता.
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विकास दुबे के घर के बाहर दस पुलिसकर्मियों की शहादत के बाद पुलिस विभाग ने सख्ती शुरू की तो विकास दुबे के कजिन अतुल दुबे के पास से जो पिस्टल बरामद हुआ वह पुलिस विभाग को सप्लाई होता है. फिलहाल तहकीकात चल रही है. एक थानेदार को निलंबित किया जा चुका है. उससे STF पूछताछ कर रही है. विकास दुबे दस पुलिसकर्मियों को शहीद करने के बाद फरार हो चुका है. पुलिस उसकी तलाश में जगह-जगह छापे मारने का काम कर रही है.