प्रीति सिंह
एक तरफ कन्हैया कुमार की जन गण मन यात्रा से उभरता हुआ माहौल और अब प्रशांत किशोर का बिहार बदलने का अभियान और इन दोनों का निशाना एक ही है – बिहार की नीतीश सरकार ।
बिहार के ये दोनों किरदार अलग मिजाज के हैं । कन्हैया जनता के बीच संघर्ष कर रहे हैं तो प्रशांत किशोर छवि निर्माण के मास्टर है । दोनों फिलहाल अलग छोर पर दिखाई दे रहे हैं लेकिन लक्ष्य एक है ।
बिहार में चुनावी फसल की बुवाई शुरु हो गई है। एक-एक राजनीतिक दल अपने-अपने एजेंडे के साथ चुनावी रण में उतर रहे हैं। 20 दिनों से बिहार में जन गण मन यात्रा कर रहे जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष व भाकपा नेता कन्हैया कुमार इसके माध्यम से जनता की नब्ज टटोल रहे हैं तो वहीं आज कभी नीतीश कुमार के खास रहे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पटना में अपना राजनीतिक एंजेडा तय कर दिया।
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प्रशांत किशोर के बिहार के सक्रिय राजनीति में आने की घोषणा के साथ ही सवाल उठने लगा है कि वह नीतीश कुमार को किस रूप में चुनौती पेश करेंगे ? जिस तरह से उन्होंने बिहार के विकास की सच्चाई तथ्यों के साथ पेश किया है, क्या उससे नीतीश कुमार को डरने की जरूरत है? इसके अलावा सबसे बड़ा सवाल प्रशांत किशोर नीतीश कुमार से मुकाबला करने के लिए किसका चेहरा आगे करेंगे ? क्या वह खुद नीतीश को चुनौती पेश करेंगे या उनकी सियासी शतरंज का वजीर कन्हैया कुमार होंगे ? या फिर हमे एक बार फिर चौंकने की कोई और वजह मिलेगी ?
बिहार की राजनीति में पीके के आने से ऐसे बहुत सारे सवाल सियासी फिजा में तैरने लगे हैं। पीके के आने से बिहार का सियासी समीकरण बदलने लगा है। दरअसल प्रशांत ने मंगलवार को पटना में भविष्य के बिहार का खांका खीचा साथ ही बिहार की तस्वीर बदलने का लक्ष्य भी रखा। उन्होंने अपना रोडमैप जनता के सामने रखते हुए बिहार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के साथ-साथ राज्य को अगले दस सालों में टॉपटेन में शामिल करने का टारगेट फिक्स किया है। और सबसे बड़ी बात इस लक्ष्य को प्रशांत किशोर युवाओं के कंधे पर सवार होकर हासिल करेंगे।
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बिहार में नीतीश कुमार को चुनौती देने के लिए जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष व भाकपा नेता कन्हैया कुमार बिहार में डेरा डाल चुके हैं। वह जन गण मन यात्रा से बिहार की जनता खासकर युवाओं से रूबरू हो रहे हैं। वह गांधी, भगत सिंह, अंबेडकर के सपनों के भारत की बात कर रहे हैं साथ ही नीतीश और मोदी को भी निशाने पर लिए हुए हैं।
कन्हैया कुमार नीतीश कुमार को कितनी चुनौती दे पायेंगे के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार कुमार भावेश चंद कहते है वर्तमान में बिहार में नीतीश के कद का कोई नेता नहीं है। नीतीश के आगे कन्हैया का कोई राजनीतिक हैसियत नहीं है। इसलिए वह कोई चुनौती पेश नहीं कर पायेंगे लेकिन चुनाव के दौरान यदि वह प्रशांत किशोर के साथ आ जाते हैं और पीके की स्ट्रेटजी के हिसाब से चलते हैं तो निश्चित ही बिहार का समीकरण बदलेगा।
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दरअसल बिहार के सियासी गलियारे में चर्चा है कि कन्हैया का जन गण मन यात्रा प्रशांत किशोर की स्ट्रेटजी का हिस्सा है। प्रशांत नीतीश को युवाओं के सहारे घेरने की कोशिश करेंगे। वह केजरीवाल के फॉर्मूले पर बिहार फतह का सपना देख रहे हैं।
तो क्या पीके बिहार चुनाव कन्हैया कुमार के चेहरे पर लड़ेंगे के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं, अभी इस बारे में कहना बहुत जल्दबाजी होगी। एक बात तो तय है कि पीके ने अपना एजेंडा साफ कर दिया है कि विधानसभा चुनाव में ताल ठोकेंगे और युवाओं को मौका देंगे। जेडीयू में रहते हुए उन्होंने बिहार का मतबूत डेटा तैयार कर लिया था, जो अब उनके काम आने वाला हैं। डेटा के वह पुराने खिलाड़ी है और बिहार विधानसभा चुनाव में वह इसका भरपूर उपयोग करेंगे। उनका एकमात्र उद्देश्य है बिहार की राजनीति की दिशा को विकास की तरफ मोड़ना।
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जातीय फैक्टर को विकास से देंगे चुनौती
प्रशांत किशोर ने मंगलवार को बिहार की बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के बारे में बात की। उन्होंने डेटा के साथ नीतीश पर निशाना साधा। इससे साफ हो गया कि वह चुनाव में नीतीश को विकास के मुद्दे पर घेरेंगे।
दरअसल इसके पीछे की स्ट्रेटजी यह है बिहार चुनाव में जातीय फैक्टर काम करता है। नीतीश कुमार अपने काम और जातीय समीकरण की वजह से ही बिहार की सत्ता में जमें हुए हैं। प्रशांत किशोर ये बात अच्छे तरीके से जानते है कि जातीय समीकरण को सिर्फ मूलभूत जरूरतों जैसे शिक्षा, बिजली, स्वास्थ्य, पानी, सड़क आदि से ही तोड़ा जा सकता है।
प्रशांत दिल्ली चुनाव से भी सबक ले रहे हैं। वह यह मानकर चल रहे हैं कि चुनावी राजनीति में वह नौसिखिया हैं। उनके सामने नीतीश कुमार और लालू यादव जैसे राजनीति के महारथी हैं। उनके सामने टिक पाना उनके लिए आसान नहीं होगा। इसके अलावा बिहार की राजनीति में जातीय फैक्टर भी बड़ा मुद्दा है। इसका जवाब भी पीके बिहार के राजनीतिक इतिहास में ही खोजते हैं जब जेपी के परिवर्तन लहर में जातीयता गौण हो गई थी।
ऐसी परिस्थितियों में वह युवा शक्ति के सहारे बिहार का केजरीवाल बनने की कोशिश करेंगे। उन्हे पता है कि जब दिल्ली में अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि के लोग दिल्ली आकर केजरीवाल को नेता बना सकते हैं तो बिहार में ऐसी संभावना क्यों नहीं बन सकती?
नीतीश कुमार को अपनी छवि का फायदा ठीक उसी तरह से मिलता है जैसे केंद्र में मोदी या दिल्ली में केजरीवाल को मिलता है । बिहार में नीतीश के सामने कौन ? यही वो सवाल है जिसकी काट विपक्षी दलों के पास अभी तक नहीं है ।
कांग्रेस के पास कोई चेहरा ही नहीं है तो तेजस्वी यादव के पीछे लालू राज के बुरे अनुभवों का इतिहास । ऐसे में अगर प्रशांत किशोर विकास और लोकप्रियता का कोई कॉकटेल बना पाते हैं तो नीतीश के सामने चुनौती बहुत बड़ी हो जाएगी।
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